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तीन महीने का वक्त और 3700 किलोमीटर... महज क्रेन डिलीवर करने के लिए चीनी कार्गो शिप ने की सबसे लंबी यात्रा

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महज क्रेन डिलीवर करने के लिए चीनी कार्गो शिप ने की सबसे लंबी यात्रा। (फाइल फोटो)



डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। चीन हमेशा से कुछ ऐसे काम करता है, जो वाकई हैरान करने वाले होते हैं। हाल में ही चीन के एक बड़े मालवाहक जहाज ने करीब 19,700 नॉटिकल मील का सफर तय किया। इस जहाज का नाम जेन हुआ 29 है, जो 20 जून को शंघाई से निकला और हिंद महासागर पार करने से पहले दक्षिण चीन सागर से पश्चिम की ओर बढ़ा। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

बता दें कि तीन महीने से अधिक समय समुद्र में व्यतीत करने और तीन महासागरों को पार करने के बाद यह जहाज अक्तूबर में जमैका के किंग्सटन बंदरगाह पर पहुंचा। इसमें रखे गए क्रेन चीन में बने थे। इन क्रेन को जमैका और यूएस गल्फ कोस्ट के बंदरगाहों पर पहुंचाना था।
चीन के इस कदम ने क्यों बढ़ाई अन्य देशों की चिंता

बता दें कि दशकों से इस प्रकार की लंबी यात्राएं ग्लोबल ट्रेड का एक रुटीन हिस्सा रही हैं। जैसा की भारी मशीनरी दुनिया के एक हिस्से में बनाई जाती है और महाद्वीपों के पार भेजी जाती है और हजारों किलोमीटर दूर इंस्टॉल की जाती है। हालांकि, द वाशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार, जेन हुआ 29 की यात्रा ने बहुत लंबे शिपिंग रूट्स के बारे में चिंता पैदा कर दी है।

ध्यान दिया जाना चाहिए कि अमेरिका में रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक दोनों सरकारों ने चीन में बनी क्रेनों पर निर्भर रहने पर चिंता जताई है। अमेरिका की सरकारों ने माना है कि चीन में बने क्रेन पर निर्भर रहना जोखिम भरा हो सकता है। हालांकि, अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि अमेरिकी बंदरगाहों पर लगभग 80 प्रतिशत शिप-टू-शोर क्रेन चीन में बने हैं।
व्हाइट हाउस कर रहा ये तैयारी

बता दें कि व्हाइट हाउस अब अमेरिकी बंदरगाहों से चीन के अलावा दूसरे देशों से क्रेन खरीदने और घरेलू क्रेन मैन्यूफैक्चरिंग को फिर से शुरू करने के लिए कह रहा है। लेकिन आंकड़ों पर नजर डालें तो यह बदलाव आसान नहीं हैष लगभग 20 सालों से चीनी क्रेन सबसे सस्ते और आसान नहीं है। लगभग 20 सालों से चीनी क्रेन सबसे सस्ते और आसान ऑप्शन रहे हैं।

चूंकि शंघाई से मिसिसिपी तक का सबसे तेज रास्ता आमतौर पर लगभग एक महीना लगता है, जिसमें प्रशांत महासागर और पनामा नहर से होकर गुजरना पड़ता है। लेकिन जो कार्गो यह ले जा रहा था, उसकी वजह से नहर से गुज़रना नामुमकिन हो गया था।
चीन की जहाज ने क्यों चुना लंबा रास्ता?

बताया जा रहा है कि क्रेन की लंबी भुजाएं, जिन्हें बूम कहा जाता है, जहाज के किनारों से बाहर निकली हुई थीं और नहर अथॉरिटी ऐसे ओवरहैंगिंग कार्गो को अनुमति नहीं देती हैं जो लॉक्स और दूसरे इंफ्रास्ट्रक्चर को नुकसान पहुंचा सकते हैं। नतीजतन, जहाज को दुनिया भर का लंबा रास्ता लेना पड़ा। जेन हुआ 29 की यात्रा का सबसे मुश्किल और खतरनाक हिस्सा अफ्रीका के दक्षिणी सिरे पर केप ऑफ गुड होप के आसपास का था।

वहीं, जहाज के कैप्टन टाइ मैकमाइकल ने कहा कि जहाज़ लगभग दो हफ़्ते तक मोज़ाम्बिक के तट पर और एक और हफ़्ते तक दक्षिण अफ्रीका के तट पर रुका रहा, जब तक कि केप के सिरे पर 12-फुट ऊंची लहरें शांत नहीं हो गईं। आगे कहा कि जहाज 14 अगस्त को अफ्रीका के चारों ओर घूमा और तीन हफ्ते में अटलांटिक पार किया, वेनेज़ुएला के उत्तरी तटों से गुज़रते हुए 11 सितंबर को गल्फपोर्ट, मिसिसिपी पहुंचा।
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