डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। उन्नाव रेप मामले में दोषी करार दिए गए पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को बड़ी राहत मिलने से पहले ही जहां सुप्रीम कोर्ट ने ब्रेक लगा दिया वहीं इस मामले में POCSO एक्ट को लेकर एक बड़ा सवाल भी उठाया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
मुख्य न्यायाधीश सूर्या कांत, न्यायमूर्ति जेके महेश्वरी और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ ने नोटिस जारी करते हुए कहा कि इस मामले में कानून से जुड़े अहम सवाल हैं, खासकर POCSO कानून के तहत \“लोक सेवक\“ की परिभाषा को लेकर।
सेंगर की दलील है कि वारदात के समय वह विधायक था और POCSO अधिनियम की धारा 2(2) के अनुसार ‘लोक सेवक’ की परिभाषा IPC की धारा 21 से ली जानी चाहिए। IPC के अनुसार विधायक को ‘लोक सेवक’ नहीं माना गया है, इसलिए उन पर POCSO के तहत \“एग्रेवेटेड पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट\“ की धारा लागू नहीं होती।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी चिंता जताई। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अगर यह व्याख्या मान ली जाए तो एक कांस्टेबल या पटवारी तो इस अपराध के लिए ‘लोक सेवक’ होगा, लेकिन एक चुना हुआ विधायक या सांसद इससे बाहर हो जाएगा। यही हमें परेशान कर रहा है।
सीबीआई की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि POCSO अधिनियम में ‘लोक सेवक’ की परिभाषा नहीं दी गई है, इसलिए इसे कानून की मंशा के अनुसार समझा जाना चाहिए। उन्होंने POCSO की धारा 42A का हवाला देते हुए कहा कि यह अधिनियम अन्य कानूनों पर प्रधानता रखता है।
उनके मुताबिक, POCSO के संदर्भ में ‘लोक सेवक’ वह व्यक्ति है जो बच्चे पर प्रभुत्व या प्रभाव की स्थिति में हो और उस स्थिति का दुरुपयोग करे। सेंगर उस समय इलाके का प्रभावशाली विधायक था और पीड़िता 16 वर्ष से कम उम्र की थी, इसलिए यह स्पष्ट रूप से एग्रेवेटेड अपराध बनता है।
जब अदालत ने पूछा कि क्या नाबालिग पीड़िता होने की स्थिति में ‘लोक सेवक’ की अवधारणा अप्रासंगिक हो जाती है, तो सॉलिसिटर जनरल ने हाँ में जवाब दिया। उन्होंने कहा कि अपराध घटना की तारीख को ही बन जाता है और बाद में सजा बढ़ाने वाले संशोधन नया अपराध नहीं बनाते, इसलिए यह संविधान के अनुच्छेद 20 का उल्लंघन नहीं है।
वहीं सेंगर की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ दवे और एन. हरिहरन ने इसका विरोध करते हुए कहा कि किसी दंडात्मक कानून में दूसरी अधिनियम की परिभाषा तभी लागू की जा सकती है जब कानून में इसका स्पष्ट प्रावधान हो। IPC में विधायक को ‘लोक सेवक’ नहीं माना गया है, इसलिए POCSO के तहत एग्रेवेटेड वाली धाराएं उन पर लागू नहीं हो सकती हैं।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस कानूनी मुद्दे पर विस्तार से विचार जरूरी है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि आमतौर पर किसी दोषी को मिली जमानत पर बिना सुने रोक नहीं लगाई जाती, लेकिन इस मामले में सेंगर पहले से ही एक अन्य केस में जेल में बंद हैं, इसलिए उन्हें रिहा होने से पहले जमानत आदेश पर रोक लगाई जा सकती है।
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के जमानत आदेश को स्थगित कर दिया है और POCSO कानून के तहत ‘लोक सेवक’ की परिभाषा से जुड़े मुद्दे पर नोटिस जारी कर आगे की सुनवाई तय की है।
गौरतलब है कि सीबीआई की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें सेंगर की सजा निलंबित कर उन्हें अपील लंबित रहने तक जमानत दी गई थी।
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