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कोर्ट की तरह शीर्ष स्कूलों की पढ़ाई का भी हो लाइव प्रसारण, साहिबाबाद की 16 वर्षीय छात्रा ने CJI को लिखा पत्र

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सुदीक्षा सिंह।



जागरण संवाददाता, साहिबाबाद। माननीय मुख्य न्यायाधीश...दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों और कमजोर आय वर्ग से जुड़े बच्चों को भी बेहतर शिक्षा मिल सके। इसके लिए कोर्ट की सुनवाई की तरह ही निजी व सरकारी उच्च स्तरीय शैक्षणिक संस्थानों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का सीधा प्रसारण किया जाए। इससे इन बच्चों का भविष्य क्षेत्र के आधार पर तय नहीं हो सकेगा क्योंकि संसाधनों के अभाव में वह अच्छी शिक्षा से वंचित हैं। गाजियाबाद के वैशाली सेक्टर-छह के डिवाइन वैली अपार्टमेंट में रहने वाली 16 वर्षीय सुदीक्षा सिंह ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर ये मांग की है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
\“ज्ञान की सुनवाई भी समानता के लिए सुलभ होनी चाहिए\“

सुदीक्षा सीएम श्री स्कूल खिचड़ीपुर दिल्ली में कक्षा 11 की छात्रा है। ये विचार छात्रा के दिमाग में उस समय आया, जब उसके पिता मुकेश कुमार सिंह कोर्ट की हियरिंग में ऑनलाइन जुड़े हुए थे। उस दौरान छात्रा को लगा कि जब कोर्ट की सुनवाई सभी लोग देख सकते हैं तो उच्च स्तरीय संस्थानों में होने वाली पढ़ाई की लाइव स्ट्रीमिंग क्यों नहीं की जा सकती। \“ज्ञान का प्रकाश\“ कुछ चुनिंदा संस्थानों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि देशभर, विशेषकर सुदूर गांवों को भी रोशन करना चाहिए। यदि पारदर्शिता के लिए सुनवाई का सीधा प्रसारण किया जा सकता है, तो हमारे देश के शीर्ष विद्यालयों में ज्ञान की सुनवाई भी समानता के लिए सुलभ होनी चाहिए।
बिहार, ओडिशा व लद्दाख का दिया उदाहरण

छात्रा ने पत्र में कहा कि बिहार, ओडिशा या लद्दाख के किसी दूरदराज के गांव में रहने वाला छात्र योग्यता तो रखता है, लेकिन महानगर के किसी प्रतिष्ठित विद्यालय में पढ़ने के लिए उसके पास बुनियादी ढांचा और वित्तीय संसाधन नहीं होते हैं। इससे एक डिजिटल विभाजन पैदा होता है जो आगे चलकर आर्थिक विभाजन में बदल जाता है। लाइव स्ट्रीमिंग एक क्रांतिकारी सेतु का काम करेगी।
छात्रा ने बताए ये बिंदू...

  • हर बच्चा केवल वीडियो को देख पाए। प्रश्न पूछने का अधिकार केवल नामांकित छात्रों को रहे। इससे कक्षा में व्यवधान नहीं होगा।
  • लाइव स्ट्रीमिंग के बजाय रिकार्ड किए गए सत्रों को अपलोड करना चुन सकते हैं। इससे वे अपने छात्रों की गोपनीयता बनाए रखते हुए सामग्री को संपादित कर सकते हैं।
  • शिक्षण कार्य पहले से ही भौतिक रूप से उपस्थित छात्रों के लिए हो रहा है। इसलिए डिजिटल प्रसारण की सीमांत लागत नगण्य है।

छात्रा ने ये सुझाव भी दिए

  • यह प्रस्ताव संस्थानों के आंतरिक प्रबंधन या स्वामित्व अधिकारों में हस्तक्षेप करने का प्रयास नहीं करता है।
  • स्कूलों को अपने डिजिटल द्वार खोलने से कुछ भी नहीं होगा, बल्कि उत्कृष्टता केंद्रों के रूप में उनकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
  • देश में कई शीर्ष स्तरीय निजी विद्यालय सरकार द्वारा रियायती दरों पर उपलब्ध कराई गई भूमि पर संचालित होते हैं।


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