- लोक आस्था के पर्व छठ की गूंज, व्रती महिलाओं के घरों में भक्ति गीतों का स्वर
- चार दिन की भक्ति यात्रा कल से, आस्था और अनुशासन की बहेगी गंगा
संवाद सहयोगी, जागरण : भागलपुर। लोक आस्था और सूर्योपासना का चार दिवसीय महापर्व छठ शनिवार से नहाय-खाय के साथ आरंभ होगा। रविवार को व्रती खरना का व्रत रखेंगे, सोमवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाएगा और मंगलवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ पर्व संपन्न होगा।
तिलकामांझी महावीर मंदिर के पंडित आनंद झा ने बताया कि छठ व्रत में शुद्धता और सात्विकता की प्रधानता होती है। सूर्य देव की उपासना करने से शारीरिक और मानसिक कष्टों का निवारण होता है। व्रती नहाय-खाय से ही अपने शरीर, मन और आत्मा को शुद्ध कर व्रत की शुरुआत करते हैं। इस दिन व्रती अरवा चावल, चने की दाल, सेंधा नमक और कद्दू की सब्जि का भोजन ग्रहण करते हैं। कद्दू को शुद्ध और सुपाच्य माना गया है, जो व्रती को ऊर्जा प्रदान करता है।
व्रती महिलाएं गंगा स्नान कर लकड़ी के चूल्हे पर मिट्टी के बर्तनों में भोजन बनाती हैं, ताकि किसी प्रकार की अशुद्धि न रहे। शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक अब वातावरण पूरी तरह छठमय हो गया है।
शहर के गली-मोहल्लों में कांची के बांस बंगही, बंगही लचकत जाय, चार हो कोना के पोखरिया, जल उमड़ल जाय जैसे पारंपरिक गीतों की गूंज सुनाई दे रही है। जिन घरों में छठ पर्व होता है, वहां का माहौल पूरी तरह भक्ति और उल्लास से भरा है। एक ओर महिलाएं गेहूं सुखा रही हैं, तो दूसरी ओर गीतों की स्वर-लहरियां वातावरण को पवित्र बना रही हैं।
परवैतीन (व्रती महिलाओं) के घर देर रात तक गीत गूंज रहे हैं। सामान की खरीदारी से लेकर प्रसाद तैयार करने तक हर कार्य में अत्यधिक सावधानी और शुद्धता बरती जा रही है।
छठ व्रत के कई ऐसे श्रद्धालू हैं जिनकी कामना पूर्ण होती है, वे श्रद्धा के साथ घर से घाट तक दंडवत करते हुए पहुंचते हैं। इस दृढ़ आस्था और अनुशासन ने छठ को केवल पर्व नहीं, बल्कि जन-जन की आध्यात्मिक पहचान बना दिया है।
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