हिंदी प्रेमियों को शोक में डुबो गए पद्श्री डॉ. रामदरश मिश्र, आज दिल्ली की मंगलापुरी घाट पर होंगे पंचतत्व में विलीन

Chikheang 2025-11-1 10:06:20 views 411
  

पद्श्री से सम्मानित हिंदी के जाने-माने वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. रामदरश मिश्र। फाइल फोटो



जागरण संवाददाता, पश्चिमी दिल्ली। अब इस दुनिया में नहीं रहे। इस वर्ष अगस्त महीने में उन्होंने 101 वर्ष पूरे किए थे। शुक्रवार शाम पुत्र शशांक मिश्र के द्वारका स्थित आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली।शनिवार को उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार पालम स्थित मंगलापुरी श्मशान घाट पर सुबह 11 बजे करना तय किया गया है। उनके निधन से हिंदी के साहित्यजगत में शोक की लहर व्याप्त हो गई है।  विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
कालजयी रचनाओं की लंबी है सूची

डाॅ. रामदरश मिश्र का जन्म गोरखपुर जिले के डुमरी गांव में हुआ था। इसके बाद गुजरात में आठ साल तक उन्होंने शिक्षक के रूप में कार्य किया। इसके बाद वे दिल्ली आए और दिल्ली के ही होकर रह गए। इन्होंने कविता, कथा, आलोचना और निबंध सहित विभिन्न विधाओं में लिखा। हिंदी साहित्य में इनके योगदान को हिंदी आलोचना के स्तंभ के रूप में जाना जाता है।

उनके उपन्यासों में \“जल टूटता हुआ\“ और \“पानी के प्राचीर\“ शामिल हैं। बैरंग-बेनाम चिट्ठियां\“, \“पक गयी है धूप\“ और \“कंधे पर सूरज\“ उनकी अन्य प्रमुख साहित्यिक कृतियों में से हैं। उनकी पुत्री प्रो. स्मिता मिश्र ने बताया कि डाॅ. मिश्र का अंतिम संस्कार पालम स्थित मंगलापुरी श्मशान घाट पर सुबह 11 बजे होगा।
150 से अधिक लिखीं पुस्तकें

डाॅ. रामदरश मिश्र के निधन से पूरा साहित्य जगत शोकाकुल है। डा. मिश्र ने अब तक 150 से अधिक पुस्तकें लिखी थीं। इनकी पुस्तकों को कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है। इसी वर्ष डा. रामदरश मिश्र को साहित्य जगत में अमूल्य योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि अपनी कृतियों के माध्यम से वह सदैव लोगों के मन में जीवित रहेंगे।
हंसमुख और सहज स्वभाव के थे धनी

डाॅ. रामदरश मिश्र उत्तम नगर के वाणी विहार में रहते थे। इस कालोनी में संस्कृत के विद्वान डा रमाकांत शुक्ल भी रहते थे। कालोनी के लोगों को इस बात का गर्व था कि उनके यहां दो दो विद्धान रहते हैं। कुछ महीने पहले ही जब इनका स्वास्थ्य काफी खराब हो गया, तब डा. मिश्र पुत्र के पास द्वारका रहने चले गए। लेकिन कालोनी से इनका लगाव बना रहा। अपने आतिथ्य, हंसमुख व सहज स्वभाव के कारण वे सभी के प्रिय थे।
आलोचनात्मक लेखन की हुई प्रशंसा

रामदरश मिश्र का पहला काव्य संग्रह पथ के गीत 1951 में प्रकाशित हुआ, लेकिन इसके 10 वर्ष पहले से उन्होंने कविताएं लिखनी आरंभ कर दी थीं। उनकी पहली कविता सरयू-पारीण पत्रिका के जनवरी 1941 के अंक में प्रकाशित हुई थी। उनके 30 से अधिक कविता संग्रह प्रकाशित हैं। उन्होंने हिंदी आलोचना का इतिहास लिखा।

भगवतीचरण वर्मा के लेखन पर उनकी आलोचनात्मक लेखन की हिंदी जगत में खूब प्रशंसा हुई थी। उनके 15 उपन्यास और 30 कहानी संग्रह प्रकाशित हैं। उन्होंने ललित निबंध, डायरी, संस्मरण भी लिखी। उनकी आत्मकथा सहचर है समय को भी हिंदी के पाठकों ने खूब पसंद किया। उनकी रचनाओं का गुजराती, मराठी, कन्नड़, मलयालम आदि भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है।

इसके अलावा उनको साहित्य अकादमी सम्मान, सरस्वती सम्मान, दिल्ली सरकार का श्लाका सम्मान, व्यास सम्मान, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का भारत भारती सम्मान समेत अनेकों पुरस्कार मिले।
रचनाधर्मी इतिहास बन गया


साहित्य के पन्नों पर इतिहास रचने वाला रचनाधर्मी इतिहास बन गया। श्रद्धेय रामदरश मिश्र के जाने के समाचार ने स्तब्ध कर दिया। भावपूर्ण श्रद्धांजलि...

-प्रेम जनमेजय, वरिष्ठ साहित्यकार

धीरे-धीरे चलकर पहुंचे मंजिल पर


डॉ. रामदरश मिश्र को अपनी कहानियों और कविताओं के माध्यम से एक व्यापक पाठक संसार मिलाष अपनी मकबूल गजल बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे लिखकर उन्होंने ये बताया कि धीरे-धीरे चलकर भी मंजिल प्राप्त की जा सकती है, यदि मन में अटूट संकल्प हो।

-ओम निश्चल, वरिष्ठ लेखक


यह भी पढ़ें- 101 वर्षीय साहित्यकार पद्मश्री रामदरश मिश्र का दिल्ली में निधन, साहित्यजगत में शोक की लहर
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