गरबा और डांडिया में क्या है अंतर?
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। देशभर में इस समय नवरात्र की धूम देखने को मिल रही है। यह हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस दौरान नौ दिनों तक माता रानी के नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही की लोग इस दौरान व्रत-उपवास भी रखते हैं। पूरे देश में इस त्योहार को धूमधाम से मनाया जाता है। खासकर गुजरात में इसकी खास धूम देखने को मिलती है। यहां इस त्योहार को गारंग नृत्य, संगीत और भक्ति के साथ मनाया जाता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
इस दौरान किए जाने वाले सबसे लोकप्रिय नृत्य में गरबा और डांडिया रास शामिल हैं। वर्तमान में सिर्फ गुजरात ही नहीं, बल्कि पूरे देख में इन नृत्यों की धूम देखने को मिलती है। गरबा और डांडिया नवरात्र के दौरान ही किए जाते हैं और यही वजह है कि कई लोग इन्हें एक भी मानते हैं। हालांकि, दोनों की एक-दूसरे से काफी अलग होते हैं। आज इस आर्टिकल में हम आपको इन दोनों के बीच अंतर के बारे में ही बताएंगे। आइए जानते हैं कैसे एक-दूसरे से अलग है गरबा और डांडिया-
डांडिया रास क्या है?
डांडिया रास, जिसे अक्सर डांडिया भी कहा जाता है, नवरात्र के दौरान किया जाने वाला एक लोकप्रिय नृत्य है। इसे गुजरात का “तलवार नृत्य“ (sword dance) भी कहा जाता है, क्योंकि इस डांस में इस्तेमाल की जाने वाली लाठियां तलवारों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
- डांडिया करने के लिए हर एक व्यक्ति दो सजी हुई छड़ियां या डांडिया लेकर अपने पार्टनर के साथ ताल से ताल मिलाकर डांस करता है।
- गरबा की तुलना में डांडिया नृत्य काफी तेज और ज्यादा एनर्जी से भरपूर होता है।
- डांडिया अक्सर विजय और खुशी का जश्न मनाने के लिए किया जाता है।
क्या है गरबा?
गरबा एक पारंपरिक गुजराती लोक नृत्य है, जो मिट्टी के दीये (गरबो) या देवी दुर्गा की मूर्ति के चारों ओर एक गोला यानी सर्किल बनाकर किया जाता है। गरबा शब्द गर्भ से आया है, जो जीवन और सृजन का प्रतीक है।dehradun-city-common-man-issues,Dehradun City news,Nanda Shakti Vatika,Kalyan Singh Rawat,environmental conservation,glacier lakes Uttarakhand,deforestation impact,Selakui Inter College,Uttarakhand environment,tree plantation drive,environmental awareness,uttarakhand news
- गरबा ताली बजाकर, हाथों के सुंदर पॉश्चर और रिदम के साथ पैरों को चलाकर किया जाता है।
- इसके गीत आमतौर पर भक्तिमय होते हैं, जिनमें देवी अम्बा या दुर्गा की स्तुति की जाती है।
- गरबा के दौरान महिलाएं चनिया चोली (रंगीन स्कर्ट और ब्लाउज) और पुरुष केडियू (छोटा कुर्ता) पहनते हैं।
गरबा और डांडिया- प्रमुख अंतर
यह दोनों ही नृत्य गुजरात के माने जाते हैं और नवरात्र के दौरान किए जाते हैं। कई लोग इन्हें एक भी समझते हैं, लेकिन इन दोनों में कई सारे अंतर होते हैं। इसके कुछ प्रमुख अंतर निम्न हैं-
- प्रॉप्स: गरबा बिना प्रॉप्स यानी सामान के किया जाता है, जबकि डांडिया के लिए दो डंडियों या छड़ियों की जरूरत होती है।
- स्पीड: गरबा की लय और ताल आमतौर मीडियम या धीमी होती है, जबकि इसके विपरीत डांडिया तेज और ज्यादा एनर्जेटिक होता है।
- महत्व: गरबा भक्ति और जीवन चक्र का प्रतीक है, जबकि डांडिया देवी दुर्गा और महिषासुर (अच्छाई बनाम बुराई) के बीच हुए लड़ाई को दर्शाता है।
- समय: आमतौर पर गरबा आधी रात से पहले किया जाता है, जबकि डांडिया देर रात में होता है।
गरबा-डांडिया का इतिहास
- गरबा (Garba): “गरबा“ शब्द संस्कृत शब्द गर्भ से आया है। इस नृत्य को आमतौर पर एक मिट्टी के मटके के चारों ओर घेरा बनाकर किया जाता है, जिसके अंदर एक दीया होता है। इसे गर्भदीप कहा जाता है, जो गर्भ में पल रहे भ्रूण और जीवन के निरंतर चक्र का प्रतीक है। इस तरह गरबा का संबंध जीवन के चक्र और देवी दुर्गा की शक्ति से है।
- डांडिया (Dandiya): वहीं, बात करें डांडिया की, तो इसका देवी दुर्गा और भगवान कृष्ण दोनों से जुड़ा माना जाता है। पौराणिक कथा के मुताबिक डांडिया देवी दुर्गा और महिषासुर के बीच हुए युद्ध की याद में किया जाता है। इस डांस में इस्तेमाल होने वाली रंगीन छड़ियां या डांडिया देवी की तलवारों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक हैं।
- वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि यह भगवान कृष्ण की दिव्य कथाओं से जुड़ा है। इसकी उत्पत्ति संभवतः रास लीला से हुई है, जो कृष्ण और गोपियों का साथ किए जाने वाला एक नृत्य है। इसे रास लीला भी कहा जाता है। इस नृत्य का नाम इसमें इस्तेमाल की जाने वाली डांडिया की छड़ियों से आया है।
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