सिर्फ महाकाल ही नहीं, उज्जैन का यह शक्तिपीठ भी है खास, इस वजह से मिला हरसिद्धि का नाम

deltin33 2025-9-28 22:38:21 views 917
  उज्जैन का हरसिद्धि मंदिर इतिहास (Picture Credit- Freepik)





लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। देशभर में नवरात्र की धूम देखने को मिल रही है। 22 सितंबर से शुरू हुआ यह त्योहार हर साल धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही लोग माता रानी के मंदिर जाकर देवी मां का आशीर्वाद भी लेते हैं। देश-विदेश में दुर्गा मां के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, लेकिन इन सभी में 51 शक्तिपीठों क महत्व सबसे ज्यादा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

सिर्फ भारत ही नहीं, ब्लकि दूसरे देशों में भी कई शक्तिपीठ मौजूद हैं और उज्जैन का हरसिद्धि मंदिर इन्हीं में से एक है। यहां नवरात्र के मौके पर हर साल भक्तों का तांता लगा रहता है। आमतौर पर उज्जैन का नाम सुनते ही सिर्फ महाकाल का नाम याद आता है, लेकिन यहां शक्तिपीठ भी मौजूद है। आइए जानते हैं इस मंदिर के इतिहास, मान्यता और यहां पहुंचने के आसान तरीके के बारे में-


मंदिर में मौजूद हैं तीन देवियां

  

उज्जैन एक प्राचीन नगरी होने के साथ-साथ एक पवित्र स्थल भी माना जाता है। यहां कई प्रसिद्ध और मान्यता प्राप्त मंदिर मौजूद हैं और हरसिद्धि देवी मंदिर इन्हीं में से एक है। इस मंदिर में महालक्ष्मी और महासरस्वती की मूर्तियों के बीच हरसिद्धि माता की मूर्ति विराजमान है, जो गहरे सिंदूरी रंग में रंगी हुई है। साथ ही इस मंदिर में शक्ति का प्रतीक श्रीयंत्र भी में स्थापित है।


क्या है मंदिर का इतिहास?

शिव पुराण के अनुसार, जब शिव अग्नि से जलते देवी सती के पार्थिव शरीर को लेकर वियोग में भटक रहे थे, तो भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर के टुकड़े कर दिए, जो धरती पर अलग-अलग जगह जाकर गिरे। पृथ्वी पर जहां-जहां देवी सती के अंग और आभूषण गिरे वहां पर शक्तिपीठ की स्थापना हुई। मान्यता है कि उज्जैन में जहां माता हरसिद्धि का मंदिर स्थित है, वहां पर देवी सती की कोहनी गिरी थी।


कैसे मिला हरसिद्धि नाम?

स्कंद पुराण में देवी चंडी को हरसिद्धि की मिलने की एक रोचक कथा मिलती है। एक बार जब शिव और पार्वती कैलाश पर्वत पर अकेले थे, तो चंड और प्रचंड नामक दो राक्षसों ने बलपूर्वक कैलाश में प्रवेश करने का प्रयास किया। इस पर शिव ने चंडी को उनका नाश करने के लिए बुलाया और चंडी ने ऐसा ही किया। तब प्रसन्न होकर, शिव ने उन्हें \“सबको जीतने वाली\“ यानी हरसिद्धि की उपाधि प्रदान की।


कैस हुआ मंदिर का निमार्ण?

  

उज्जैन के राजा विक्रमादित्य हरसिद्धि माता को अपनी कुलदेवी मानते थे और उन्होंने ही मंदिर का निर्माण करवाया था। वहीं, मराठा काल में इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था। मंदिर के प्रांगण दीपों से सुसज्जित दो खास स्तंभ भी हैं, जो मराठा कला की विशेषताओं को दर्शाते हैं। हर रोज संध्या आरती और नवरात्र के दौरान जलाए गए ये दीपक एक अद्भुत नजारा पेश करते हैं। इसके अलावा यहां परिसर में एक प्राचीन कुआं है, जिसके शीर्ष पर एक कलात्मक स्तंभ मौजूद है।


कैसे पहुंचें?

हरसिद्धि मंदिर पहुंचने के लिए आप बस, ट्रेन या एयरप्लेन, किसी भी ट्रांसपोर्ट की मदद ले सकते हैं। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको उज्जैन पहुंचना होगा। अगर आप ट्रेन से आ रहे हैं, तो आपको उज्जैन जंक्शन पहुंचना होगा। इसके अवाला आप इंदौर से भी उज्जैन आ सकते हैं। इसके अलावा आप फ्लाइट से इंदौर तक आ सकते हैं और फिर यहां से बाईरोड उज्जैन जा सकते हैं।

यह भी पढ़ें- 51 Shakti Peeth: कहां-कहां गिरे माता सती के अंग? जो अब बन गए हैं शक्तिपीठ



यह भी पढ़ें- दुनिया का इकलौता शक्तिपीठ, जहां देवी ने काटा था अपना ही सिर; नवरात्र में आप भी बनाएं दर्शन का प्लान

Source:

  • MP Tourism
like (0)
deltin33administrator

Post a reply

loginto write comments
deltin33

He hasn't introduced himself yet.

1010K

Threads

0

Posts

3210K

Credits

administrator

Credits
324230

Get jili slot free 100 online Gambling and more profitable chanced casino at www.deltin51.com, Of particular note is that we've prepared 100 free Lucky Slots games for new users, giving you the opportunity to experience the thrill of the slot machine world and feel a certain level of risk. Click on the content at the top of the forum to play these free slot games; they're simple and easy to learn, ensuring you can quickly get started and fully enjoy the fun. We also have a free roulette wheel with a value of 200 for inviting friends.