Jagran Vishesh: बिहार में तेज विकास के लिए बदलने होंगे शासन के तौर-तरीके- अमिताभ कांत

deltin33 2025-11-25 02:37:40 views 409
  

पूर्व आईएएस अमिताभ कांत से खास बातचीत।  



जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। पूर्व आइएएस अधिकारी अमिताभ कांत लंबे अरसे तक देश के विकास की नीतियों-योजनाओं का स्वरूप बनाने वाले नीति आयोग के सीईओ पद और जी-20 के लिए भारत के शेरपा पद पर अपनी लंबी सेवा दे चुके हैं। इस दौरान उन्होंने बिहार के आर्थिक हालात को काफी करीब से देखा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

हाल में संपन्न विधानसभा चुनाव में राज्य की आर्थिक बदहाली काफी चर्चा में रही है। अब जबकि बिहार में नीतीश कुमार की अगुआई में राजग फिर से सत्ता में है तो नई सरकार की प्राथमिकताएं क्या होनी चाहिए? कैसे राज्य को आर्थिक बदहाली से निकाला जाए और पलायन रोका जाए। कैसे युवा श्रमिकों को प्रदेश में ही अवसर दिया जाए और राज्य की आर्थिक तस्वीर को बदला जाए। बिहार की आर्थिक दशा-दिशा और भविष्य की संभावनाओं को लेकर अमिताभ कांत से दैनिक जागरण के सहायक संपादक जयप्रकाश रंजन ने लंबी बातचीत की। पेश है मुख्य अंश-
बिहार में राजग मजबूत जनादेश के साथ फिर सत्ता में लौटा है। नीति आयोग के अनुभव के आधार पर आप दशकों से विकास सूचकांक में बिहार के काफी नीचे रहने की तीन प्रमुख वजह क्या मानते हैं?

यह तथ्य कि बिहार में राजग फिर सत्ता में लौटा है और वह भी मजबूत जनादेश के साथ, यह अपने आप में प्रमाण है कि राज्य के परिदृश्य में बदलाव हुआ है। हमने देखा है कि वहां आर्थिक विकास को गति मिली है और बिहार की जनता ने भी साबित किया है कि अच्छा शासन ही अच्छी राजनीति है।

बिहार ने विकास क्यों नहीं किया, इसे समझने के लिए यह भी देखना होगा कि इस राज्य की विकास यात्रा बहुत ही निचले आधार से शुरू हुई है। यह नहीं भूलना चाहिए कि बिहार का औद्योगिक और बिजली उत्पादन का बड़ा हिस्सा झारखंड बनने के साथ अलग हो गया था। फिर भी पिछले डेढ़-दो दशक में बहुत प्रगति हुई है। फिर भी यह सबसे पिछड़े राज्यों में एक है।

तीन गहरी संरचनात्मक बाधाओं की वजह से बिहार की विकास यात्रा प्रभावित हुई है। पहली, राज्य की कमजोर प्रशासनिक क्षमता और निर्णयों की अनिश्चितता। विकास सिर्फ सरकारी खर्च बढ़ाने से नहीं होता; बल्कि इसके लिए कानून का शासन, अनुबंधों को मानने, समय पर मंजूरी देने, बिना देरी के काम पूरा करने वाली कार्यान्वयन मशीनरी जरूरी है।

दूसरी बाधा श्रम बल में संरचनात्मक असंतुलन है। बिहार के लगभग 55 प्रतिशत श्रमिक अभी भी सबसे कम उत्पादकता वाले कृषि क्षेत्र में फंसे हुए हैं। इससे आय वृद्धि, शहरीकरण और औद्योगिक विविधीकरण सभी सीमित हो जाते हैं।

तीसरी चुनौती राज्य स्तर पर बुनियादी ढांचे की कमी है। केंद्र सरकार ने भारी निवेश किया है, लेकिन राज्य स्तर के पूरक ढांचे के अभाव में इस निवेश का पूरा असर नहीं दिख पाता। ये तीनों बाधाएं मिलकर बिहार की उस क्षमता को रोकती हैं जिससे निजी निवेश आए। श्रमिक उच्च उत्पादकता वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित हों और दीर्घकालिक आर्थिक परिवर्तन संभव हो।
बिहार उन राज्यों से क्या सबक ले सकता है जो कभी पिछड़े थे, लेकिन अब उल्लेखनीय प्रगति कर ली है? निजी निवेश आकर्षित करने के लिए बिहार इनसे क्या सीख सकता है?

ओडिशा, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्य यह साबित करते हैं कि जब शासन, बुनियादी ढांचा और निवेश सुविधाएं एक साथ और तेज गति से आगे बढ़ते हैं, तो तेज प्रगति संभव है। बिहार को भी यही रणनीति अपनानी होगी। यानी नीति में स्थिरता, मजबूत प्रशासनिक क्षमता और सख्ती से क्रियान्वयन।

एक स्पष्ट औद्योगिक रोडमैप के तीन प्रमुख केंद्र बिंदु होने चाहिए। बिल्कुल साफ स्वामित्व वाली व सभी सुविधाओं से युक्त औद्योगिक जमीन तैयार करना, विश्वसनीय व सस्ती बिजली सुनिश्चित करना तथा राष्ट्रीय कारिडोर तक मल्टीमाडल कनेक्टिविटी विकसित करना।

राजमार्गों, मालवाहक करिडोरों और हवाई अड्डों तक अंतिम छोर की कनेक्टिविटी की समयबद्ध योजना बने और उनका सख्ती से पालन हो। साथ ही जमीन अधिग्रहण और सभी स्वीकृतियां पूरी तरह पारदर्शी तरीके से होनी चाहिए। लेकिन राज्य सरकार को अपने स्तर पर नियामक ढांचे का पूर्ण सुधार करना होगा।

सभी आवश्यक अनुमतियों की मैपिंग करते हुए बेकार प्रक्रियाओं को पूरी तरह खत्म करना होगा। हर तरह की मंजूरी को आनलाइन एवं सिंगल विंडो सिस्टम के तहत लाना होगा। इनकी कानूनी समय-सीमा भी तय होनी चाहिए और इनका पालन भी अनिवार्य किया जाना चाहिए। यही वह कुंजी है जो एक समय गरीब रहे राज्यों को आज निवेश का पसंदीदा गंतव्य बना चुकी है।
राजग के लिए जीविका दीदी को पैसे देना जीत का फार्मूला कहा जा रहा है। क्या आपको लगता है कि ऐसी योजनाएं वास्तव में बिहार को लाभ पहुंचाएंगी?

महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) ने पूरे भारत को स्पष्ट तौर पर कई तरह के लाभ दिए हैं। बिहार में उन्होंने समुदायों को एकजुट करने, ऋण तक पहुंच बढ़ाने और महिलाओं की स्वायत्तता के संदर्भ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि, सिर्फ ऐसी योजनाएं राज्य की आर्थिक दिशा को बदल नहीं सकतीं। उनका दीर्घकालिक प्रभाव इस पर निर्भर करता है कि क्या बिहार उनको बाजार से लिंक करवा पाता है या नहीं।

साथ ही एसएचजी को औपचारिक मूल्य श्रृंखलाओं में एकीकृत करवाना होगा और उन्हें खाद्य प्रसंस्करण, कृषि-विपणन तथा सेवाओं से जोड़ना होगा। व्यापक आर्थिक विकास और गैर-कृषि रोजगार सृजन के बिना एसएचजी की आय स्थिर ही रहेगी।

बिहार को ऐसे माहौल की आवश्यकता है जिसमें एसएचजी सूक्ष्म उद्यमों से आगे बढ़कर बड़ी आपूर्ति श्रृंखलाओं में भागीदार बने। इन्हें बुनियादी ढांचे, कोल्ड स्टोरेज, कौशल विकास आदि से जोड़ा जा सकता है। ये योजनाएं आवश्यक हैं, लेकिन इनका फायदा तभी होगा जब बुनियादी ढांचे, निजी निवेश और रोजगार सृजन में बड़े सुधार हों।
पिछले कई वर्षों में विशेष पैकेज के रूप में केंद्र से बिहार को वित्तीय सहायता मिली है, फिर भी परिणाम कमजोर ही रहे हैं। मूल समस्या पैसा है, नीति है या कार्यान्वयन तंत्र?

बिहार की मूल बाधा पैसों की कमी नहीं, बल्कि कार्यान्वयन में कमी है। केंद्र से बार-बार बड़ी राशि मिली है, लेकिन नतीजा इसलिए कमजोर रहा क्योंकि प्रशासनिक प्रक्रियाएं धीमी, खंडित और समय-सीमा लागू करने में असमर्थ हैं। इसलिए नई सरकार के पहले 100 दिन कार्यान्वयन क्षमता मजबूत करने पर केंद्रित होने चाहिए।

इसके तहत सभी भू-अभिलेखों का पूर्ण डिजिटाइजेशन और म्यूटेशन को आनलाइन-आटोमेटिक करना चाहिए, भवन निर्माण एवं अन्य स्वीकृतियों की प्रणाली का आधुनिकीकरण करना होगा, हर परियोजना की पारदर्शी डैशबोर्ड-आधारित निगरानी का ढांचा तैयार करना, सड़क-सिंचाई और ऊर्जा परियोजनाओं की समय-सीमा का सख्त पालन करना होगा।

सिविल सेवा को मजबूत करना होगा, महत्वपूर्ण रिक्तियों को तुरंत भरना, जवाबदेही बढ़ाना और जिला स्तर की टीमों को वास्तविक अधिकार देने होंगे। निवेश आकर्षित करने के लिए पुलिस के आधुनिकीकरण और कानून-व्यवस्था में ठोस सुधार भी उतने ही जरूरी हैं। शासन को परिणाम-केंद्रित बनाना होगा। अधिकारियों को लंबा कार्यकाल देना होगा और मैदानी स्तर पर सभी रिक्त पदों को अनिवार्य रूप से भरना होगा।
देश की सबसे अधिक युवा आबादी बिहार में है, लेकिन यहां से पलायन की दर भी सबसे अधिक है। ऐसे में आप जो गैर-कृषि रोजगार बढ़ाने की बात कर रहे हैं, वह कैसे होगा? खास तौर पर तब, जबकि राज्य का शिक्षा व स्वास्थ्य क्षेत्र बहुत उत्साहजनक तस्वीर पेश नहीं करता?

ये दोनों बातें जुड़ी हुई हैं। कृषि से इतर रोजगार के संसाधन तलाशना व पैदा करना सरकार की आर्थिक नीतियों के केंद्र मे होना चाहिए। यह तभी होगा जब परिधान, जूते, खिलौने, लाइट इंजीनियरिंग जैसे श्रम-गहन उद्योगों में बिहार की युवा शक्ति और कम मजदूरी का सबसे अच्छा उपयोग करने की व्यवस्था हो।

इससे पलायन कम होगा। खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के लिए कोल्ड चेन और क्लस्टर बनें तो ग्रामीण क्षेत्रों में हजारों नौकरियां आएंगी। अगर सड़क, सुरक्षा और कौशल विकास की मदद मिले तो धार्मिक व ईको-टूरिज्म काफी रोजगार दे सकता है।

मैं दोहराऊंगा कि बिजली, इंटरनेट व शहरों में बुनियादी सुविधाएं देकर आप आइटी, लाजिस्टिक्स व बैक-आफिस के लिए रास्ता तैयार करेंगे। आपने शिक्षा एवं स्वास्थ्य क्षेत्र की बात कही तो स्कूलों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और जिला अस्पतालों की सभी रिक्तियां तुरंत भरी जानी चाहिए। बगैर स्टाफ के कुछ नहीं होगा।

शिक्षक-प्रशिक्षण, नर्सिंग और मेडिकल कालेजों में अच्छे शिक्षक लाएं, इसका दीर्घकालिक फायदा होगा। विनिर्माण, हास्पिटालिटी, लाजिस्टिक्स, डिजिटल से जुड़े पाठ्यक्रम हर वर्ष अपडेट हो ताकि कौशल विकास में दुनिया के साथ कदम मिलाया जा सके। अगर युवा श्रम की गुणवत्ता व उपयोगिता नहीं बढ़ाएंगे तो युवा जनसंख्या का लाभ नहीं मिलेगा।
बिहार का अपना टैक्स-जीएसडीपी (राज्य का सकल घरेलू उत्पाद) अनुपात बहुत कम है, केंद्र पर भारी निर्भरता है। क्या राज्य अगले पांच वर्षों में अपना राजस्व दोगुना कर सकता है?

मैंने परोक्ष तौर पर यही बताया है कि राज्य की अर्थव्यवस्था की संरचना ऐसी है कि राजस्व कम प्राप्त हो रहा है, इसका कारण टैक्स दर कम होना नहीं है। जब तेज विकास होगा, अर्थव्यवस्था ज्यादा से ज्यादा औपचारिक बनेगी, निवेश बढ़ेगा, औद्योगिक गतिविधियां बढ़ेगीं वैसे-वैसे राज्य का राजस्व बढ़ेगा। उदारण के तौर पर विनिर्माण, फूड प्रोसेसिंग, लाजिस्टिक्स, कंस्ट्रक्शन व अन्य सेवाओं के विस्तार से जीएसटी संग्रह बढ़ेगा।

राज्य सरकार को सारी टैक्स व्यवस्था के डिजिटलीकरण पर जोर देना चाहिए। प्रापर्टी टैक्स सुधार, भूमि मौद्रीकरण, शहरी सेवाओं पर उचित यूजर चार्ज लगाना भी आवश्यक है। जितने नगर निकाय मजबूत होंगे, राजस्व उतना ही बढ़ेगा। टैक्स संग्रह बढ़ाने के लिए गरीबों पर अतिरिक्त टैक्स लगाने की जरूरत नहीं है। ऊंची आय, ज्यादा खपत और ज्यादा आर्थिक गतिविधियों से राजस्व आधार स्वत: दोगुना हो जाएगा।

यह भी पढ़ें: जागरण विशेष: \“जंगलराज विकास का सबसे बड़ा विरोधी, बिहार में अब तक की सबसे बड़ी जीत दर्ज करेंगे\“, बोले जेपी नड्डा
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