फ्रांस के आखिरी अखबार विक्रेता अली अकबर। सोशल मीडिया
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अली अकबर एक ऐसा नाम जिसे फ्रांस में लगभग हर कोई जनता है। फ्रांस की राजधानी पेरिस में वो आखिरी अखबार विक्रेता हैं जो हर रोज कई मील घुमते हैं। एक कैफे से दूसरे कैफे जाते वक्त वो अपने मजाकियां अंदाज में लोगों को सुर्खियां सुनाते हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
पेरिस के बौद्धिक और सांस्कृतिक केंद्र, लेफ्ट बैंक के स्थानीय लोग और पर्यटक उन्हें देख खुश होते हैं। कई रेस्ट्रा के मालिक और वहां काम करने वाले लोगों का कहना है की पेरिस की दीवारें भी अली से बातें करती हैं।
73 साल के दुबले-पतले अकबर अपनी बाह में अखबार दबाये रोजाना सड़कों पर दिखाई दे जाते हैं। एएफपी के मुतबिक वे इतने मशहूर हो चुके हैं की पेरिस में आने वाले पर्यटक भी अब उनके बारे में पूछने लगे हैं, अगर वो सड़क न दिखाई दें तो.
फ्रांस के राष्ट्रपति ने दी \“नाइट\“ की उपाधि
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने अकबर को देश के प्रति समर्पित सेवा के लिए \“नाइट\“ की उपाधि देने का फैसला किया है। यह सम्मान आमतौर पर उन लोगों को दिया जाता है जो नागरिक या सैन्य क्षमता में राष्ट्र के लिए विशेष सेवा देता हैं।rohtas-general,Shahabad police transfer, police officer transfer, Rohtas police, Bhojpur police, Kaimur police, Buxar police, Bihar police transfer, police department, police sub-inspector, assistant police inspector,Bihar news
अकबर ने कहा, “पहले तो मुझे यकीन नहीं हुआ। दोस्तों ने उनसे (मैक्रों) पूछा होगा या शायद उन्होंने खुद ही फैसला कर लिया होगा। जब वह (मैक्रों) छात्र थे, तब अक्सर हमारी मुलाक़ात होती थी।“
साधारण व्यक्ति की असाधारण कहानी
अकबर फ्रांस की सड़कों पर गोल चश्मा, नीली वर्क जैकेट और गैवरोश टोपी पहने अक्सर दिख जाते हैं। मुख्य रूप से फ्रांसीसी दैनिक अखबार \“ला मोंडे\“ की कॉपियां बेचते हैं।
अकबर की जिंदगी काफी सघर्षों से भरी थी, जब वह 20 साल की उम्र में पाकिस्तान में अपने परिवार को पैसे भेजने की आशा में फ्रांस पहुंचे, तो उन्होंने पहले नाविक के रूप में काम किया बाद में वे उत्तरी शहर रूएन के एक रेस्तरां में बर्तन धोने का काम करने लगे।
कैसे बने फ्रांस के आखिरी अखबार विक्रेता?
बाद में पेरिस में उनकी मुलाकात हास्य लेखक जॉर्जेस बर्नियर से हुई, जिन्हें \“प्रोफेसर चोरोन\“ के नाम से भी जाना जाता था। चोरोन ने ही उन्हें अपने व्यंग्यात्मक समाचार पत्र हारा-किरी और चार्ली हेब्दो को बेचने का मौका दिया। अकबर कई समय तक बेघर रहे हैं, उन्होंने बेहद गरीबी का सामना किया। उन पर हमले भी हुए हैं, लेकिन कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
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