वंदे मातरम: 150 साल पुरानी देशभक्ति की कहानी
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। भारत के इतिहास में कुछ तारीखें अमर हैं, जो देश की आजादी के लिए दिए गए संघर्षों और बलिदानों को लोगों को दिलों में जिंदा रखती हैं। इसी क्रम में 7 नवंबर की तारीख काफी महत्व रखती है। हमारी आजादी की लड़ाई में, सेनानियों में साहस और जोश बढ़ाने में हमारे राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की अहम भूमिका मानी जाती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
यह वह गीत है, जिसे बंकिम चंद्र चटर्जी ने रचा और जिसे बाद में भारत के राष्ट्रीय गीत का दर्जा मिला। राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने के मौके पर 8 दिसंबर को संसद में चर्चा होगी, जिसकी शुरुआत लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे। इसके बाद 9 दिसंबर को राज्यसभा में भी इस पर चर्चा होगी।
राष्ट्रीय गीत के 150 साल पूरे होने के स्वर्णीम अवसर पर यह जानना जरूरी है कि देशभक्ति से ओत-प्रोत इस गीत का जन्म कैसे हुआ और कैसे यह हर भारतीय के लिए आजादी की प्रेरणा का स्त्रोत बना।
वंदे मातरम: रचना की प्रेरणा
जिस समय भारत पर ब्रिटिश हुकूमत का शासन था, बंकिम चंद्र चटर्जी सरकारी सेवा में कार्यरत थे। इसी दौरान में, ब्रिटिश शासन ने एक ऐसा आदेश जारी किया जिसके तहत भारत में \“गॉड सेव द क्वीन\“ नामक विदेशी गीत गाना अनिवार्य कर दिया गया। ब्रिटिश सरकार का यह अड़ियल फैसला बंकिम चंद्र चटर्जी को बिल्कुल स्वीकार नहीं था। उन्हें यह असहनीय लगा कि भारत की धरती पर एक विदेशी शासक के प्रशंसा में गीत गाया जाए। विरोध और राष्ट्रीय स्वाभिमान की इसी भावना ने बंकिम चंद्र को \“वंदे मातरम\“ गीत की रचना के लिए प्रेरित किया।
देशभक्ति और संघर्ष का प्रतीक बना यह गीत
ब्रिटिश हुकूमत के इस कदम से आहत होकर, उन्होंने यह निश्चय किया कि वे एक ऐसा गीत लिखेंगे जो सिर्फ भारत भूमि का गौरवगान करेगा। इस संकल्प को पूरा करते हुए, उन्होंने साल 1875 में \“वंदे मातरम\“ कविता की रचना की। देशप्रेम से ओत-प्रोत यह कविता सबसे पहले उनके विख्यात उपन्यास ‘आनंद मठ’ में प्रकाशित हुई। उनकी यह अमर रचना उस समय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल सेनानियों के लिए असीम शक्ति और प्रोत्साहन का स्रोत बन गई।
राष्ट्रीय गीत का ऐतिहासिक महत्व
बंकिम चंद्र चटर्जी ने इस कविता की रचना साल 1875 में की थी। इस गीत के शुरुआती दो पैरा संस्कृत भाषा में थे, जबकि बाकी की रचना बंगाली में की गई थी। इस गीत को सुर और ताल देने का श्रेय महान कवि रवींद्रनाथ टैगोर को जाता है, जिन्होंने इसे सबसे पहले 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया था। बाद में, अरबिंदो घोष ने इसका अंग्रेजी अनुवाद किया और आरिफ मोहम्मद खान ने इसका उर्दू अनुवाद किया।
आजादी के बाद, 24 जनवरी, 1950 को राष्ट्रगान (‘जन गण मन’) के साथ ही \“वंदे मातरम\“ को भी भारत के राष्ट्रीय गीत का सम्मानजनक दर्जा दिया गया। भारत सरकार के आधिकारिक जानकारी के अनुसार, राष्ट्रीय गीत का आदर और स्थान राष्ट्रगान के बिल्कुल समान ही माना जाता है। ऐसा है हमारा राष्ट्री गीत-
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्
सस्य श्यामलां मातरंम्.
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
शुभ्र ज्योत्सनाम् पुलकित यामिनीम्
फुल्ल कुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम् .
सुखदां वरदां मातरम् ॥
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
कोटि कोटि कन्ठ कलकल निनाद कराले
द्विसप्त कोटि भुजैर्ध्रत खरकरवाले
के बोले मा तुमी अबले
बहुबल धारिणीम् नमामि तारिणीम्
रिपुदलवारिणीम् मातरम् ॥
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
तुमि विद्या तुमि धर्म, तुमि ह्रदि तुमि मर्म
त्वं हि प्राणाः शरीरे
बाहुते तुमि मा शक्ति,
हृदये तुमि मा भक्ति,
तोमारै प्रतिमा गडि मन्दिरे-मन्दिरे मातरम् ॥
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
कमला कमलदल विहारिणी
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्
नमामि कमलां अमलां अतुलाम्
सुजलां सुफलां मातरम् ॥
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्
धरणीं भरणीं मातरम् ॥
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
अरबिन्द घोष ने गद्य रूप इस गीत का भावानुवाद इस प्रकार किया है-
ओ माता, मैं आपके सामने नतमस्तक होता हूं।
ये धरती पानी से सींची, फलों से भरी, दक्षिण की वायु के साथ शांत है।
हे धरती माता! आपकी रातें चांदनी की गरिमा में प्रफुल्लित हो रही हैं,
आपकी जमीन खिलते फूलों वाले वृक्षों से बहुत सुंदर ढकी हुई है,
हंसी की मिठास, वाणी की मिठास,
माता, वरदान देने वाली, आनंद देने वाली।
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Source:
- इस जानकारी को भारत सरकार के पोर्टल पर उपलब्ध सूचना के आधार पर बनाया गया है।
- इंडिया बुक 2020 - एक संदर्भ वार्षिक
- विश्वनाथ मुखर्जी द्वारा लिखित किताब \“वंदे मातरम का इतिहास\“ से भी साभार जानकारियां ली गई हैं।
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