कुदरत की गोद में पालना, हसीन वादियां और पहाड़ों का रोमांच

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पालना डैम की नैसर्गिक सुंदरता सैलानियों को लुभाता है।




संसू, चांडिल। लौहनगरी जमशेदपुर की भागदौड़ से दूर, महज 45 किलोमीटर के फासले पर कुदरत ने अपनी खूबसूरती खुलकर लुटाई है। राष्ट्रीय राजमार्ग-33 के किनारे पहाड़ियों की श्रृंखला और प्रकृति की गोद में बसा पालना डैम बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर खींच लेता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

पानी के ठहराव में पहाड़ों का अक्स और चारों तरफ फैली हरियाली किसी का भी मन मोहने के लिए काफी है, लेकिन अपार संभावनाओं वाला यह मनोरम स्थल आज भी सरकारी उदासीनता के कारण बुनियादी सुविधाओं के अभाव से जूझ रहा है।
सुंदरता ऐसी कि पलकें झपकना भूल जाएं

एक पर्यटक की नजर से देखें तो पालना डैम का नजारा किसी पेंटिंग से कम नहीं लगता। जैसे ही आप यहां पहुंचते हैं, शहरी शोरगुल पीछे छूट जाता है और कानों में सिर्फ हवाओं की सरसराहट और पानी की हल्की लहरों की आवाज गूंजती है।

डैम के चारों ओर खड़े ऊंचे पहाड़ प्रहरियों की तरह लगते हैं, जिनकी हरियाली आंखों को सुकून देती है। दिसंबर की गुनगुनी धूप में यहां का पानी चांदी सा चमकता है।

यह वह जगह है जहां आप घंटों बैठकर सिर्फ प्रकृति को निहार सकते हैं। यहां आने वाले सैलानी इन दृश्यों को अपने कैमरे और यादों में कैद किए बिना नहीं रह पाते।
पिकनिक के लिए सर्वोत्तम, मगर राह देख रहा विकास

दिसंबर और जनवरी के महीने में यहां पिकनिक मनाने वालों का तांता लगा रहता है। वनभोज के लिए यह एक आदर्श स्थान है। खुले आसमान के नीचे, पहाड़ों की छांव में परिवार और दोस्तों के साथ बिताए पल यहां खास बन जाते हैं।

हालांकि, एक कड़वा सच यह भी है कि सुविधाओं की कमी ने यहां पर्यटकों की संख्या को प्रभावित किया है। जो कभी सैलानियों का सबसे चहेता पिकनिक स्पाट हुआ करता था, वह आज रखरखाव की कमी का दंश झेल रहा है।
इतिहास के पन्नों में पालना डैम

इस डैम का इतिहास भी पुराना है। इसका उद्घाटन वर्ष 1983 में संयुक्त बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा ने किया था। उस समय उम्मीद थी कि यह क्षेत्र पर्यटन के मानचित्र पर एक बड़ा नाम बनेगा।

लेकिन विडंबना देखिए, उद्घाटन के दशकों बाद भी झारखंड सरकार की ओर से यहां पर्यटकों के लिए कोई ठोस सुविधा मुहैया नहीं कराई गई। न तो बैठने के लिए उचित व्यवस्था है और न ही खान-पान के लिए कोई बड़ा इंतजाम।

बावजूद तमाम कमियों के, पालना डैम का जादू आज भी बरकरार है। इसकी प्राकृतिक बनावट और शांत वातावरण इसे खास बनाता है। जरूरत है तो बस थोड़ी सी सरकारी तवज्जो की, ताकि यह हीरा अपनी असली चमक बिखेर सके और पर्यटकों के लिए एक विश्वस्तरीय स्थल बन सके।
कैसे पहुंचें पालना डैम तक?

जमशेदपुर से पालना डैम तक का सफर भी अपने आप में रोमांचक है।
दूरी: जमशेदपुर शहर से लगभग 45 किलोमीटर।
रास्ता: आपको जमशेदपुर से रांची की ओर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग-33 पर चलना होगा।
लैंडमार्क: हाइवे पर चलते हुए बढ़ामटांड़ मोड़ पहुंचें। यहां से बाईं ओर मुड़ते ही महज दो किलोमीटर की दूरी पर पालना डैम आपका स्वागत करता है।
सवारी: यहां तक पहुंचने के लिए निजी वाहन (कार या बाइक) सबसे सुगम साधन हैं। रास्ता हरा-भरा है, जो सफर की थकान महसूस नहीं होने देता।
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deltin33administrator

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