मेडिकल और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम भी भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हैं।
शैलेश अस्थाना, जागरण, वाराणसी। शिक्षा की भाषा-नीति में आए बड़े बदलाव के बाद अब केंद्र सरकार उच्च शिक्षा और व्यावसायिक जीवन में भी भारतीय भाषाओं के प्रति जुड़ाव को एक नए स्तर पर ले जाने की तैयारी में है। पांचवीं तक मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा देने के साथ ही कालेजों, विश्वविद्यालयों और नौकरी–व्यवसाय में लगे युवाओं को अपनी मातृभाषा या माध्यम भाषा के अलावा कम से कम एक और भारतीय भाषा सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
इसका ही विस्तार है केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर और भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु द्वारा बनाया गया \“भाषा सागर\“ एप और स्वयं पोर्टल पर तैयार किए गए भाषाई कोर्स, जो संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी 22 भारतीय भाषाओं को एक सूत्र में जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।
भाषा सागर एप के जरिए कोई भी व्यक्ति घर बैठे देश की 22 भारतीय भाषाओं को सीख सकता है। यह एप एंड्रायड प्लेटफार्म पर उपलब्ध है। उपयोगकर्ता अपनी मातृभाषा या जिस भाषा में सहज हों, उसे आधार बनाकर दूसरी कोई भारतीय भाषा पढ़ना, लिखना और बोलना सीख सकते हैं। एप में फोनेटिक रिकार्डर की सुविधा भी है, जिससे उच्चारण का अभ्यास संभव है।
भाषा सागर हिंदी, असमी, बांग्ला, गुजराती, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयाली, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, ओड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगु, उर्दू, बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली इन 22 भाषाओं के व्यावहारिक उपयोग को सिखाने के लिए तैयार किया गया है। हर भाषा के लिए 30–40 पाठ हैं और हर पाठ में लगभग 1500–1600 प्रचलित शब्द और वाक्य संरचनाएं दी गई हैं।
‘एक भारत–श्रेष्ठ भारत’ और भाषाई एकता
केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर के निदेशक प्रो. शैलेंद्र मोहन का कहना है कि देश की विविध भाषाओं की सीमारहित ऐक्यता और प्रत्येक भाषा के प्रति सम्मान की भावना ही राष्ट्रीय एकता की सबसे मजबूत कड़ी बन सकती है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ‘एक भारत–श्रेष्ठ भारत’ की परिकल्पना के तहत क्षेत्रों के बीच भाषा-आधारित जुड़ाव पर लगातार जोर दे रहे हैं। इसी सोच का परिणाम है कि मेडिकल, इंजीनियरिंग और अन्य उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों के कई हिस्से अब विभिन्न भारतीय भाषाओं में तैयार किए जा चुके हैं।
लुप्तप्राय भाषाओं के संरक्षण-संवर्धन सहित बाल पुस्तकें तक
केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान केवल मुख्य 22 भाषाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि कई लुप्तप्राय और जनजातीय भाषाओं के संरक्षण–संवर्धन के लिए भी पोर्टल, पाठ्यक्रम, बाल पुस्तिकाएं और मशीन लर्निंग टूल विकसित कर रहा है। छोटे बच्चों के लिए एनसीईआरटी और विभिन्न राज्य शिक्षा परिषदों के सहयोग से बालवाणी जैसी द्विभाषिक पुस्तकें तैयार की गई हैं। काशी-तमिल संगमम् जैसे आयोजनों में संस्थान सक्रिय भागीदारी कर रहा है। यहां लगाए गए स्टालों पर तमिल समेत अन्य भाषाओं को सीखने के आसान डिजिटल और मुद्रित साधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
स्वयं पोर्टल पर भाषा सीखते हुए मिलेंगे अकादमिक क्रेडिट
नई शिक्षा नीति के तहत कई उच्च शिक्षण संस्थानों ने पाठ्यक्रम में \“एक अतिरिक्त भारतीय भाषा\“ सीखना अनिवार्य बनाया है। इसे ध्यान में रखते हुए संस्थान ने स्वयं पोर्टल को मंच बनाया है। भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु के सहयोग से स्वयं प्लेटफार्म पर आठ भारतीय भाषाओं के 12 सप्ताह के क्रेडिट–कोर्स तैयार किए गए हैं।
इन कोर्सों के माध्यम से विद्यार्थी किसी भाषा की बुनियादी संरचना, पठन-लेखन और बोलचाल सीखते हैं और अंत में दक्षता परीक्षा देकर अकादमिक क्रेडिट अर्जित कर सकते हैं, जो उनकी डिग्री में जोड़ा जाता है। अभी तक कन्नड़, मलयाली, उड़िया, बांग्ला, मराठी और पंजाबी के कोर्स उपलब्ध हैं, जबकि जनवरी से तमिल, तेलुगु, संथाली, असमिया, मणिपुरी, डोगरी, गुजराती और मैथिली आठ नई भाषाएं जुड़ जाएंगी। |