निर्भया’ कांड के 13 साल भी महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल (फोटो- सुमित साहनी, जागरण ग्राफिक्स)
मेरा नाम निर्भया है। जिसे डरना नहीं चाहिए, पर मैं डरती हूं।
हर रोज़। हर रात। हर सांस के साथ।
स्कूल की बस में ड्राइवर अंकल चॉकलेट देते हैं और उनकी उंगलियां मेरे जिस्म पर रेंगती हैं। मैं चॉकलेट ले लेती हूं। क्योंकि चिल्लाऊंगी तो लोग कहेंगे – “अरे, बस चॉकलेट ही तो दी है!”
कॉलेज में प्रोफेसर कहते हैं, “बैठो मेरे पास, मार्क्स चाहिए ना?” उनका हाथ मेरी जांघ पर होता है। मैं हंस देती हूं। क्योंकि रोऊंगी तो लोग कहेंगे – “करियर खराब मत करो, चुप रहो!”
ऑफिस में मैनेजर सेक्सुअल मजाक करते हैं, अश्लील टिप्पणियां, गंदी बातें उछालते हैं। मैं चुप रहती हूं, मुस्कुरा कर टाल देती हूं। क्योंकि बोलूंगी तो लोग कहेंगे – “बातें ही तो हैं, नौकरी चली जाएगी, चुप रहो!”
रात के नौ बजते हैं। ऑफिस से निकलती हूं तो सड़क के कुत्ते सीटी मारते हैं, गाली देते हैं, अपनी पैंट खोलते हैं। मैं सिर झुका कर तेज चलती हूं। क्योंकि जवाब दूंगी तो लोग कहेंगे – “रात में अकेले क्यों निकली थी?”
मेरा नाम निर्भया है। जिसे डरना नहीं चाहिए था। पर मैं डरती हूं।
पेश हैं निर्भया के 13 साल!!!
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गुरप्रीत चीमा, नई दिल्ली। 16 दिसंबर 2012 की रात, देश की राजधानी दिल्ली में एक बस में 23 साल की फिजियोथेरेपी स्टूडेंट के साथ छह दरिंदों ने न सिर्फ दुष्कर्म किया, बल्कि लोहे की रॉड से उसे इतना बर्बर रूप दिया कि आज भी बेटियां रात में घर से निकलते समय डरती हैं, और जब निकलती हैं तो परिवार की निगाहें केवल घड़ी और दरवाजे पर टिकी रहती हैं।
13 साल पहले हुए इस कांड में पीड़िता की पहचान की गोपनीयता रखने के लिए उसे ‘निर्भया’ नाम दिया गया था। निर्भया उस रात अपने दोस्त के साथ साकेत में स्थित सिलेक्ट सिटी वॉक मॉल में ‘लाइफ ऑफ पाई’ फिल्म देखने गई थीं। इसके बाद ये दोनों घर जाने के लिए प्राइवेट बस में बैठे जहां इस पूरी घटना को अंजाम दिया गया।
निर्भया को इलाज के लिए सिंगापुर के अस्पताल भेजा गया, लेकिन करीब 13 दिन की जंग के बाद उसकी सांसें थम गईं। उसकी मौत ने पूरे देश को झकझोर दिया। सड़कों पर जनआक्रोश फैल गया, कैंडल मार्च निकाले गए, महिलाएं, पुरुष और युवा सभी सड़कों पर उतर आए। इस पूरी वारदात ने न सिर्फ देश को हिला कर रख दिया, बल्कि दुष्कर्म की परिभाषा और कानून को पूरी तरह बदल दिया।
निर्भया कांड के दोषी कौन थे?
दिल्ली में उस रात हुए निर्भया सामूहिक दुष्कर्म के बारे में जिसने भी सुना या पढ़ा, वह दंग रह गया। किसी के लिए भी यह यकीन करना मुश्किल था कि इंसान ऐसी दरिंदगी कर सकते हैं। हर कोई जानना चाहता था कि आखिर ये दरिंदे कौन थे। इस दौरान, जब देश की राजधानी में कानून और व्यवस्था पर सवाल उठ रहे थे, दिल्ली पुलिस ने इस मामले को सिर्फ 72 घंटों में सुलझा लिया।
निर्भया कांड में कुल छह लोग शामिल थे:
- राम सिंह – बस ड्राइवर
- आनंद कुमार (अनंत कुमार) – बस सहायक
- मुकुश सिंह – सहायक
- विनय शर्मा – सहायक
- पीयूष राय – सहायक
- अज्ञात व्यक्ति – नाबालिग
इनमें से ड्राइवर राम सिंह ने जेल में सजा काटते समय आत्महत्या कर ली थी। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, अन्य चार वयस्क दोषियों को 20 मार्च 2020 को तिहाड़ जेल में फांसी दी गई, यानी घटना के लगभग 7 साल और 3 महीने बाद। वहीं, नाबालिग आरोपी को बाल सुधार गृह में 3 साल की सजा दी गई।
दैनिक जागरण समूह के अन्य अखबार, नई दुनिया, में 30 दिसंबर 2012 को पहले पन्ने पर ‘निर्भया’ केस की कवरेज।
निर्भया केस के बाद किन-किन कानूनों में बदलाव हुआ?
क्रिमिनल लॉ (संशोधन) एक्ट, 2013
इसे निर्भया एक्ट के नाम से भी जाना जाता है। निर्भया मामले के बाद इस कानून में कई महत्वपूर्ण संशोधन किए गए थे।
पहले: केवल शारीरिक संभोग को दुषकर्म माना जाता था, बहुत कम देखा गया कि इसमें किसी को मौत की सजा सुनाई गई हो। अधिकतर मामलों में केवल 7 से 10 साल तक की ही सजा सुनाई जाती थी। इसके अलावा पीड़िता का बयान सार्वजनिक होता था। कई केस लंबित रहते थे और सुनवाई लंबी चलती थी।
अब: निर्भया एक्ट बनने के बाद मानसिक, शारीरिक बल और किसी औजार से यौन हिंसा, जबरदस्ती गर्भपात और अन्य प्रकार के यौन अपराध इसमें शामिल किए गए। दोषियों को फांसी या आजीवन कारावास की सजा बनाई गई। गवाही और पीड़िता की पहचान सुरक्षित रखी गई। फास्ट ट्रैक कोर्ट्स बनाए गए, ताकि सुनवाई फौरन हो सके।
POCSO एक्ट, 2012
POCSO अधिनियम का मुख्य उद्देश्य 18 साल तक के बच्चों को यौन अपराधों से बचाना है। इसके तहत बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों की जांच सुरक्षित, तेज और संवेदनशील होना जरूरी है। 2012 से पहले बच्चों के खिलाफ यौन अपराध को रोकने के लिए कोई एक विशेष कानून नहीं था।
पहले: सख्त प्रावधान तो थे, लेकिन निगरानी और सुरक्षा कमजोर मानी गई। किशोर अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई भी सीमित थी। बाल यौन शोषण, पोर्नोग्राफी, यौन उत्पीड़न को अलग कानूनों में बांटा गया था।
अब: बाल यौन उत्पीड़न, दुष्कर्म और शोषण व पोर्नोग्राफी जैसी घटनाएं इसमें शामिल की गई हैं। नाबालिग की पहचान भी गोपनीय रखी जाती है। यहां तक की अपराध और सुनवाई के दौरान बच्चे को मानसिक रूप से सुरक्षित रखा जाता है।
फोटो- अमन सिंह, जागरण ग्राफिक्स
पोश एक्ट, 2013
निर्भया केस के बाद ऑफिस, कॉलेज और संस्थानों में महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए इसे बनाया गया। इससे पहले कार्यस्थल पर महिलाओं के खिलाफ उत्पीड़न के लिए कोई खास नियम नहीं थे। अक्सर देखा जाता था कि शिकायत करने पर महिलाएं दबाव के कारण चुप रहती थीं।
इसके तहत किसी भी संस्थान को इंटर्नल कम्प्लेंट कमेटी (ICC) का गठन करना अनिवार्य है। ICC महिलाओं की शिकायतों को सुनता है और इसका समाधान करता है। इसमें 50 प्रतिशत सदस्यों में महिलाओं का होना आवश्यक है। इसके साथ ही एक सदस्य कोई एक्सपर्ट भी होता है।
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2015
ये एक्ट साल 2000 में बनाया गया था, इसके तहत किसी नाबालिग को हत्या या दुष्कर्म करने के मामले में रीहैबिलिटेशन सेंटर भेजा जाता था। निर्भया केस के दौरान जनता में जनता में असंतोष बढ़ने के बाद इसमें संशोधन किए गए।
अब इसमें बदलाव किए गए। मतलब 16 से 18 साल के किशोर अगर गंभीर अपराध करते हैं तो उन्हें बालिग की तरह सजा सुनाई जाएगी। वहीं छोटे अपराध करने वाले किशोरों को रीहैबिलिटेशन सेंटर भेजे जाने का प्रावधान है। इसमें एक बड़ी बात ये भी है कि नाबालिग अपराधियों और पीड़ित की पहचान गोपनीय रखी जाती है।
13 साल बाद भी डर में ‘निर्भया’
NCRB ने करीब दो महीने पहले 2023 की ‘क्राइम इन इंडिया रिपोर्ट’ जारी की। आंकड़े चौकाने वाले रहे, क्योंकि महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या 2022 में 4,45,256 थी, जो 2023 में और बढ़ गई। यह आंकड़ा प्रति एक लाख महिला जनसंख्या पर 66.2 मामलों का प्रतिनिधित्व करता है।
अधिकतर मामले पति या रिश्तेदारों द्वारा की गई क्रूरता से जुड़े हैं। इसके अलावा महिलाओं की किडनैपिंग, सम्मान भंग करने और दुष्कर्म के मामले भी गंभीर रूप से बढ़े। रिपोर्ट के अनुसार, हर दिन करीब 81 महिलाएं दुष्कर्म का शिकार हो रही हैं।
क्या कहती है NCRB की 2023 की रिपोर्ट?
क्राइम (Crime) |
मामलों की संख्या (Number of Cases) |
कुल अपराधों में प्रतिशत (Percentage) |
पति या रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता (IPC 498A) |
1,33,000 (1.33 लाख) |
29.8% |
महिलाओं की किडनैपिंग और अबडक्शन |
88,000 से ज़्यादा |
20% |
महिलाओं की इज़्ज़त खराब करने के इरादे से हमला |
83,800 से ज़्यादा |
19% |
POCSO एक्ट के तहत मामले |
66,200 |
14.8% |
दुष्कर्म केस (IPC) |
29,670 |
6.62% |
महिलाओं के खिलाफ कुल अपराध |
4,48,000 (4.48 लाख) | |
2023 का सच: आंकड़ों में चीखती महिलाएं
(कुल अपराध 4,48,000)
███████████████████ 29.8% (पति/रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता)
█████████████ 20% (किडनैपिंग)
████████████ 19% (हमला/Assault)
█████████ 14.8% (POCSO)
████ 6.6% (दुष्कर्म)
फोटो- सुमित साहनी, जागरण ग्राफिक्स
... अब और बेटियां रहें सुरक्षित
हमारी बेटी तो हमारे पास नहीं रही,
लेकिन अगर औरों की बेटियां अब सुरक्षित रहेंगी,
तो हमें सुकून मिलेगा।
हमारी बेटी की मौत की कीमत पर भी
अगर दिल्ली और पूरे देश की बेटियों का भविष्य
सुरक्षित और बेहतर हो जाए,
तो हमारा दुख कुछ कम हो जाएगा।
ये शब्द निर्भया के माता-पिता ने उस दिन कहे थे, जिस दिन सिंगापुर में तेरह दिनों तक जिंदगी से लड़ने के बाद उसने आखिरी सांस ली थी।
समाज को किस दिशा में बदलने की जरूरत है?
बीते 13 सालों में कानून और व्यवस्था में कई बदलाव हुए हैं, लेकिन समाज में किन बदलावों की आवश्यकता है, इस पर दैनिक जागरण डिजिटल की टीम ने दिल्ली पुलिस के सेवानिवृत्त एसीपी राजेंद्र सिंह से बातचीत की।
उन्होंने कहा-
सबसे ज़रूरी है पितृसत्तात्मक सोच में परिवर्तन। आज लड़कियां आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं। समाज को इसे स्वीकार और सराहना करनी चाहिए। सेक्स एजुकेशन, सहमति (कंसेंट) की शिक्षा और सह-शिक्षा/सह-अध्ययन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
संभव है कि आने वाले समय में लोगों का माइंडसेट बदल जाए, केवल कानून से समाज की सोच बदलना कठिन है । यह हर व्यक्ति को अपने स्तर पर शुरू करना होगा। अपनी आने वाली पीढ़ी को भी यह सिखाना आवश्यक है।
राजेंद्र सिंह, सेवानिवृत्त एसीपी, दिल्ली पुलिस
निर्भया केस से 13 सालों में समाज ने क्या सीखा?
क्या सीखा?
इन 13 साल में आपने क्या सीखे? यहां ‘आप’ का मतलब ‘समाज’ से है। निर्भया केस ने सभी में जागरूकता बढ़ाई।
आपने सीखा: अगर कोई महिला रात में बाहर निकले तो सावधान रहे, लेकिन समाज नहीं।
आपने सीखा: दुष्कर्म हो तो सड़कों पर मोमबत्तियां जलानी हैं, कैंडल मार्च निकालना है। पोस्टर हाथ में लिए विरोध भी करना है।
आपने सीखा: पिछले तीन सालों में तो आपने सोशल मीडिया जैसे – फेसबुक, इंस्टाग्राम और एक्स पर स्टेटस, हैशटैग लगाना भी सीख लिया।
आपने सीखा: बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ के नारे भी लगाना सीखा, लेकिन बेटों को यह नहीं सिखाया गया कि बेटियों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए।
क्या नहीं सीखा?
सरकारें बदलीं, कानून सख्त हुए, फास्ट-ट्रैक कोर्ट बने, निर्भया फंड बना, POSH एक्ट लागू हुआ, हिंदी सिनेमा ने भी पिंक, आर्टिकल 15, थप्पड़, छपाक आदि जैसी कई फिल्में बना डालीं, लेकिन आज भी NCRB की रिपोर्ट खुलती है तो वही पुराना दर्द चीखता है। चार लाख से ज्यादा मामले हर साल।
छेड़खानी आज भी मजाक समझी जाती है, घरेलू मार को निजी मामला तो दफ्तर में हाथ रखना आज गलतफहमी मानी जाती है। सरकार-प्रशासन या फिर हिंदी सिनेमा इन सभी ने सिखाया तो बहुत कुछ। क्या आपने सीखा? शायद नहीं… सीखा होता तो NCRB की रिपोर्ट के आंकड़ें शायद चौंकाने वाले नहीं होते।
सोर्स:
National Crime Records Bureau की 2023 की रिपोर्ट
Ministry of Law and Justice की आधिकारिक वेबसाइट |