उत्तर भारत की लाइफलाइन खुद आईसीयू में! चंडीगढ़ के अस्पतालों में 1,134 पद खाली, स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित, संकट में मरीज, संसद में उठा मुद्दा

LHC0088 2025-12-13 17:07:36 views 577
  

चंडीगढ़ के अस्पतालों में स्टाफ की कमी से दूसरे राज्यों के मरीजों को भी आ रही परेशानी।



जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। पीजीआई, जीएमसीएच 32 और जीएमएसए-16 स्टाफ स्टाफ की भारी कमी के कारण गंभीर सांसें ले रहे हैं। यह हाल किसी छोटे कस्बे के अस्पताल का नहीं, बल्कि चंडीगढ़ हेल्थ सिटी का है। 1,134 पद खाली होने से मरीजों की सांसों पर संकट बना रहा है। इस मुद्दे को कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने लोकसभा में उठाया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

जो पूरे उत्तर भारत के लिए लाइफलाइन माने जाने वाले चंडीगढ़ के अस्पतालों में हर दिन हजारों की संख्या पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू -कश्मीर समेत अन्य राज्यों से मरीज इलाज के लिए आते हैं। यहां के बड़े संस्थानों में पद ही नहीं, जिम्मेदारी भी खाली है। इसके साथ ही किसी की जवाबदेही तय नहीं है।  
ये हैं जिम्मेदार

खाली स्टाफ का मुदा देश के साथ सदन भले ही उठ रहो हो। पर स्वास्थ्य सचिव मनदीप बराड़, स्वास्थ्य निदेशक डाॅ. सुमन सिंह, पीजीआई के निदेशक डाॅ. विवेक लाल, जीएमसीएच के निदेशक डाॅ. जेपी थामी स्टाफ की भारी कम को लेकर बीते कई वर्षों से आंखें मूंद के बैठे हैं।
केंद्र की तरफ से दिया गया जवाब

सांसद मनीष तिवारी से ओर से अस्पतालों में स्टाफ की कमी को लेकर पूछ गए सवाल को लेकर दिए केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर दिए गए जवाब में बताया गया कि शहर के अस्पतालों में 1,134 पद लंबे समय से रिक्त पड़े हैं, जिसके कारण मरीज सेवाओं पर सीधा असर पड़ रहा है।
आउटसोर्स कर्मचारियों पर निर्भरता बढ़ी

स्टाफ के अभाव को पूरा करने के लिए तीनों अस्पतालों में आउटसोर्स कर्मचारियों पर निर्भरता बढ़ रही है। स्टाफ के अभाव को पूरा करने के लिए तीनों अस्पतालों में आउटसोर्स कर्मचारियों पर निर्भरता बढ़ रही है। हालांकि सरकार ने रिक्तियां भरने का दावा किया है, लेकिन किसी निर्धारित समयसीमा का उल्लेख नहीं किया गया है।
आउटसोर्सिंग: स्थायी समस्या पर अस्थायी पट्टी

सांसद मनीष तिवारी की ओर से स्टाफ की कमी को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में सरकार ने खुद माना है कि खाली पदों को भरने की बजाय अस्पतालों में नर्सिंग और पैरामेडिकल कामकाज ठेके पर चलाया जा रहा है। यानी जब स्थायी स्टाफ नहीं मिल रहा, तब पूरे सिस्टम को आउटसोर्सिंग पर टिकाए रखा गया है।

यह व्यवस्था इलाज का समाधान नहीं, बल्कि मूल समस्या पर पर्दा डालने की कोशिश है। सवाल यह है कि वर्षों से जारी स्टाफ की भारी कमी के बीच मरीजों की सुरक्षा, देखभाल और सेवा गुणवत्ता का जिम्मा आखिर किसके भरोसे छोड़ा जा रहा है, और इस माडल पर इतनी निर्भरता कब तक चलेगी।
शहर के अस्पतालों की स्टाफ की स्थिति, स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार

अस्पताल                नर्सिंग पद (स्वीकृत)    (खाली)                 पैरामेडिकल पद (स्वीकृत)         (खाली)
जीएमसीएच             1264                     281                    330                                  86
जीएमसएसएच            154                      30                     233                                  70
पीजीआई                 2597                    247                     856                                120
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