शोले के री-स्टोर वर्जन में क्या है खास
\“अंग्रेजों के जमाने के जेलर\“, \“तुम्हारा नाम क्या है बसंती\“, \“कितने आदमी थे\“, \“चक्की पीसिंग\“, \“बसंती इन कुत्तों के सामने मत नाचना\“, \“बहुत याराना लगता है\“, \“पचास-पचास कोस दूर गांव में जब बच्चा रोता है... इनमें से कोई एक डायलॉग ही काफी है 50 साल पहले रिलीज हुई एक कल्ट क्लासिक की पहचान के लिए, जो अब फिर से सिनेमाघरों में रिलीज हुई है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। शोले की री-रिलीज और भी खास बन गई है क्योंकि फिल्म में लीड रोल निभाने वाले धर्मेंद्र अब इस दुनिया में नहीं रहे। अब इसे इत्तेफाक समझिए या कुछ और लेकिन इस मूवी का फिर से रिलीज होना उनके लिए एक ट्रिब्यूट भी बन गया है। फर्क यह है कि फिल्म में पानी की टंकी पर चढ़कर वीरू ने \“मरना कैंसिल\“ कर दिया था लेकिन दुर्भाग्य से असल जिंदगी में ऐसा नहीं हो पाया। वीरू की यादों के साथ ही इस फिल्म का हर कैरेक्टर, डायलॉग, गाने यहां तक कि कहीं-कहीं पर की गई बातचीत भी दर्शकों के दिलों के काफी करीब है लेकिन क्या इस री-रिलीज से फैंस का प्यार फिल्म को लेकर बढ़ या कम हो जाएगा या फिर मेकर्स को कुछ अलग करने की जरुरत थी।
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50 साल बाद \“अनकट वर्जन\“ की क्या जरुरत?
शोले के अनकट वर्जन में ओरिजिनल क्लाईमैक्स दिखाया गया है जो इमरजेंसी की वजह से बदल दिया गया था। यानि अब गब्बर को ठाकुर ही मारेगा। वहीं कुछ और सीन जो उस वक्त हटाए गए थे वह भी इसमें दिखाए जा रहे हैं। लेकिन क्या सच में इन बदलावों के साथ फिल्म को री-रिलीज करने का जरुरत थी या ऐसा कुछ और हो सकता था जो दर्शकों का ज्यादा खुश करता-शायद जय का जिंदा बच जाना। जय की मौत वीरू ही नहीं दर्शकों के लिए भी एक झटका थी।
किस एंडिंग पर खुश होते दर्शक?
शायद शोले की एकमात्र नया एंडिंग जो फैंस चाहते, वह यह होता कि जय जिंदा रहे और राधा, एक तरह से, दो बार \“विधवा\“ न हो। एक ऐसी फिल्म में जिसका राजनीति से बिल्कुल भी लेना-देना नहीं था, ऐसे समय में जब बहुत ज्यादा सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल थी, क्या बहुत बड़ी मां नहीं थी? हालांकि, सलीम-जावेद शायद बेहतर जानते थे, क्योंकि राधा का दिल को छू लेने वाला दर्द और उसकी वह तस्वीर जब वह लालटेन बुझा रही होती है और एक हैंडसम और शांत जय उसे देख रहा होता है, वही इस कहानी का धड़कता दिल और रिसता हुआ जख्म है।
री-रिलीज में ताजा हुईं ये यादें
रिस्टोरेशन की सबसे खास बात है उस दौर और उस कहानी को फिर से जीना। उस कमाल के साउंडट्रैक की हर खास बारीकी नए सिरे से महसूस होती है, ठाकुर के परिवार की मौत के सीन के साथ आने वाली तीखी आवाज से लेकर, गब्बर की एंट्री पर चट्टान पर चमड़े की बेल्ट की रगड़ तक, जय और राधा के अधूरे प्यार को दिखाने वाले उदास हारमोनिका तक, स्टीम इंजन की आवाज और मालगाड़ी की खड़खड़ाहट तक, उसके घोड़ों की सरपट दौड़ और धीमी चाल तक।
सालों बाद भी जो चीज ताजा है, वह है शोले का ह्यूमर, उसका दर्द, और गब्बर। मिलेनियल्स से भरा एक हॉल, जो शायद अपने माता-पिता की यादों के ज़रिए इस फिल्म तक पहुंचे हैं एक बार फिर से जय-वीरू के दोस्ताना, जय राधा के प्यार, ठाकुर गब्बर की दुश्मनी, वीरू-बसंती के नोंकझोंक से भरे प्यार को फिर से जी रहे हैं।
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