सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अरावली पर्वत श्रृंखला की नई परिभाषा पर पिछले महीने दिए गए अपने ही आदेश पर रोक लगा दी। कार्यकर्ताओं और वैज्ञानिकों का आरोप था कि इस फैसले से नाजुक इकोसिस्टम के बड़े क्षेत्रों में खनन की अनुमति मिल सकती है। मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली अवकाशकालीन पीठ ने कहा, “हम समिति की सिफारिशों और इस न्यायालय के निर्देशों को स्थगित रखना जरूरी समझते हैं। (नई) समिति के बनने तक यह रोक लागू रहेगी।“
न्यायालय ने केंद्र सरकार और चार संबंधित राज्यों- राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और गुजरात को नोटिस जारी किया और विशेषज्ञों के एक नए पैनल के गठन का निर्देश भी दिया। अगली सुनवाई की तारीख 21 जनवरी तय की गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अरावली पर्वतमाला पर पहले बनाए गए पैनल की तरफ से की गई सिफारिशों का पर्यावरण पर क्या असर पड़ेगा, इसकी जांच विशेषज्ञों की एक समिति की ओर से की जानी चाहिए, यह देखते हुए कि पिछला पैनल मुख्य रूप से नौकरशाहों से बना था।
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भारत के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और ए.जी. मसीह की बेंच ने अरावली क्षेत्र पर हाल के फैसले पर रोक लगाते हुए यह टिप्पणी की। यह फैसला खनन गतिविधियों को रेगुलेट करने के उद्देश्य से अरावली पर्वतमाला को परिभाषित करने के लिए बनाई एक समिति की सिफारिशों पर आधारित था।
न्यायालय ने केंद्र सरकार और अरावली क्षेत्र के चार राज्यों - राजस्थान, गुजरात, दिल्ली और हरियाणा को भी नोटिस जारी कर इस मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लेते हुए दायर किए गए मामले पर उनकी प्रतिक्रिया मांगी है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अरावली पर्वतमाला पर पिछली समिति की रिपोर्ट या अदालत के फैसले को लागू करने से पहले एक निष्पक्ष और स्वतंत्र विशेषज्ञ मूल्यांकन जरूरी है, जिसमें गंभीर पर्यावरण और नियामक चिंताओं का हवाला दिया गया है।
शनिवार को सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की नई परिभाषा को लेकर हुए विरोध पर खुद से संज्ञान लिया। केंद्र सरकार ने नई परिभाषा जारी की, जिस पर कार्यकर्ताओं और वैज्ञानिकों ने आपत्ति जताई कि इसे बिना ठीक से जांच या लोगों से राय लिए बनाया गया। उन्होंने कहा कि इससे अरावली के बड़े हिस्से पर अवैध खनन का खतरा बढ़ सकता है।
क्या था नवंबर वाला आदेश?
नवंबर में कोर्ट ने केंद्र को इलाके में नई खनन गतिविधियों से पहले टिकाऊ खनन का पूरा प्लान बनाने को कहा था। आज सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र की ओर से कहा कि कोर्ट ने पिछले महीने यह प्लान मान लिया था। लेकिन चीफ जस्टिस ने कहा कि समिति की रिपोर्ट और कोर्ट की टिप्पणियों का गलत मतलब निकाला जा रहा है। कुछ स्पष्टीकरण जरूरी हैं। लागू करने से पहले निष्पक्ष विशेषज्ञ की राय लेनी चाहिए।
चीफ जस्टिस ने कहा कि यह कदम जरूरी है ताकि साफ मार्गदर्शन मिले। यह देखना होगा कि नई परिभाषा से गैर-अरावली इलाकों का दायरा बढ़ा है या नहीं, जिससे बिना नियंत्रण खनन जारी रहे। हम एक उच्च स्तरीय समिति बनाएंगे जो रिपोर्ट की जांच करेगी। इससे बाहर होने वाले इलाकों की पहचान करेगी और पर्यावरण को नुकसान का खतरा बताएगी।
क्रिसमस के दिन केंद्र ने अरावली में नई खनन पट्टों पर पूरी रोक लगा दी। पहले से चल रहे खननों के लिए राज्यों को पर्यावरण नियमों का सख्ती से पालन कराना होगा, कोर्ट के आदेश के मुताबिक।
अरावली 670 किलोमीटर लंबी पर्वत श्रृंखला है, जो दिल्ली के पास से शुरू होकर हरियाणा, राजस्थान और गुजरात से गुजरती है। यह भारत की सबसे पुरानी मोड़दार पर्वत श्रृंखला है, जो 20 अरब साल पुरानी है।
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