गुलदार-बाघ की दहाड़ से सहमे उत्तराखंड के 487 गांव, दहशत में ग्रामीण

cy520520 2025-10-8 16:06:24 views 665
  तस्वीर का इस्तेमाल प्रतीकात्मक प्रस्तुतीकरण के लिए किया गया है। जागरण





केदार दत्त, जागरण, देहरादून। विषम भूगोल वाले उत्तराखंड के गांवों में जहां पहाड़ जैसी समस्याएं मुंहबाए खड़ी हैं, वहीं वन्यजीवों के हमलों ने आमजन की दिनचर्या को बुरी तरह प्रभावित किया है। न घर आंगन सुरक्षित है और न खेत-खलिहान। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

राज्य का शायद ही कोई गांव या क्षेत्र ऐसा होगा, जहां वन्यजीवों का खौफ तारी न हो। वन विभाग के सर्वेक्षण को ही देखें तो वन्यजीवों के हमले की दृष्टि से 487 गांव संवेदनशील श्रेणी में रखे गए हैं। इन गांवों के लोग गुलदार-बाघ की दहाड़ से सहमे हुए हैं।



गांवों से निरंतर हो रहे पलायन के बाद वन्यजीवों के बढ़ते हमले एक बड़ी चुनौती बनकर उभरे हैं। आए दिन बाघ, गुलदार, भालू, हाथी जैसे जानवरों के हमले सुर्खियां बन रहे हैं। विशेषकर, पहाड़ में तो गुलदारों की सक्रियता ने रातों की नींद और दिन का चैन छीना हुआ है।

स्थिति यह है कि शाम ढलते ही गांवों में रहने वाली रौनक अब गायब हो चली है। सूरज ढलने के बाद वहां सन्नाटा पसर जाता है। बावजूद इसके खतरा कम नहीं है। मौत रूपी गुलदार कब घर के आंगन में धमक जाए कहा नहीं जा सकता।



यूं कहें कि पानी अब सिर से ऊपर बहने लगा है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस सबको देखते हुए वन विभाग ने सर्वेक्षण कराया तो बात सामने आई कि वन प्रभागों से सटे 487 गांव बेहद संवेदनशील हैं। इनमें पिथौरागढ़ और गढ़वाल वन प्रभाग से लगे गांवों की संख्या सर्वाधिक है।

जिस तरह गांवों में वन्यजीवों के हमले बढ़ रहे हैं, उससे आने वाले दिनों में यह संख्या बढऩे से इनकार नहीं किया जा सकता। यद्यपि, संवेदनशील गांवों में वन्यजीवों के हमले थामने को कई कई कदम उठाए गए हैं, लेकिन अभी बहुत कुछ करना शेष है।



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संवेदनशील गांव
प्रभागसंख्या
पिथौरागढ़86
गढ़वाल71
बागेश्वर48
कार्बेट टाइगर रिजर्व45
हरिद्वार35
तराई पश्चिमी29
हल्द्वानी26
अल्मोड़ा21

चंपावत
19

टिहरी  
15
लैंसडौन 15

तराई पूर्वी  
15

देहरादून
10
नरेंद्रनगर10
राजाजी टाइगर रिजर्व07


इस वर्ष अब तक वन्यजीवों के हमले
वन्यजीव मृतक
घायल
बाघ1105
गुलदार0873
हाथी0703
सांप0580
भालू0439
जंगली सूअर0018
बंदर-लंगूर0086
अन्य0007


संवेदनशील गांवों में स्थानीय निवासियों के सहयोग से त्वरित प्रतिक्रिया दल बनाए गए हैं। सोलर लाइट की व्यवस्था, कूड़े का उचित प्रबंधन, वन सीमा पर बायो फेंसिंग, गांवों में झाड़ी कटान, लिविंग विद लेपर्ड जैसे कई कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं। जनजागरण पर भी जोर है। संघर्ष थामने को और क्या उपाय हो सकते हैं, इसे लेकर मंथन जारी है। -आरके मिश्र, मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक, उत्तराखंड
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