हरित ऊर्जा परियोजनाओं के लिए फंड जुटाने पर विमर्श (फाइल फोटो)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। फरवरी, 2025 में मुंबई में एक प्रेस कांफ्रेस में नवीन व नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा था कि वर्ष 2030 तक पांच लाख मेगावाट क्षमता की बिजली क्षमता जोड़ने की राह में सबसे बड़ी अड़चन वित्त संसाधनों का इंतजाम करना है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
छह महीने बीतने के बावजूद यह समस्या जस की तस है। मंत्रालय ने इस समस्या के समाधान के लिए देश के प्रमुख बैंकों, गैर बैंकिग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) व दूसरे वित्तीय संस्थानों के अधिकारियों के साथ बैठक की है। इसमें वित्तीय संस्थानों की तरफ से कई सुझाव आए हैं जिसको लागू करने का आश्वासन दिया है।
इसमें एक सुझाव यह भी है कि नवीकरणी ऊर्जा परियोजनाओं की परिभाषा को बदला जाए। परिभाषा में बदलाव से हाइब्रिड और स्टोरेज प्रोजेक्ट्स को अधिक फंड मिलने का रास्ता साफ करेगा। इससे रिनीवेबल सेक्टर की एक से ज्यादा क्षेत्रों की परियोजनाओं को एक साथ रख कर वित्तीय संस्थान उनकी संभाव्यता रिपोर्ट तैयार करेंगे।
क्या है लक्ष्य?
इससे ज्यादा कर्ज दिया जा सकेगा। भारत में रिनीवेबल सेक्टर में स्थापित ऊर्जा क्षमता तकरीबन 2.36 लाख मेगावाट है। यानी अगले छह वर्षों में 2.64 लाख मेगावाट क्षमता जोड़ना है। एमएनआरई का आकलन है कि इसके लिए 32 लाख करोड़ रुपये यानी तकरीबन 380 अरब डॉलर की जरूरत है।voter list update,special intensive revision SIR,duplicate voter names,migrant voter tracking,election commission of India,voter list transparency,birth and death registry,voter list irregularities,voter data update,bihar voter list
जबकि पिछले दस वर्षों के दौरान भारत में रिनीवेबल ऊर्जा परियोजनाओं को कुल 80 अरब डॉलर की राशि का कर्ज वित्तीय संस्थानों ने दिया है। अभी तक टैक्स फ्री ग्रीन बांड्स भी जारी किये गये हैं जिससे कई परियोजनाओं का वित्त पोषण हुआ है लेकिन अब सरकार इस श्रेणी के ग्रीन बांड्स को लेकर बहुत उत्साहित नहीं है।
भविष्य पर किया जाएगा विचार
सूत्रों ने बताया कि उक्त बैठक में रिनीवेबल इनर्जीकी परिभाषा बदलने के साथ ही राज्यों को बिजली खरीदने के लिए अधिक प्रोत्साहन देने और बिजली खरीद समझौते (पीपीए) की बाधाओं को दूर करने जैसे कई विकल्पों पर विचार-विमर्श किया गया। खास तौर पर 40 हजार मेगावाट के परियोजनाएं जो तकरीबन पूरी होने के कगार पर हैं लेकिन उनके साथ किसी राज्य का पीपीए नहीं हुआ है, उनके भविष्य पर विचार किया गया है।
राज्यों को प्रोत्साहित करने के लिए सब्सिडी बढ़ाने, राज्यों के उनके जीएसडीपी के 0.5 प्रतिशत अतिरिक्त उधार की छूट के विकल्प पर भी विमर्श किया गया है। कई बार यह देखा गया है कि राज्य अपनी बिजली वितरण कंपनियों की वित्तीय स्थिति को देखते हुए रिनीवेबल परियोजना से बिजली खरीदने से हिचकती हैं। अतिरिक्त उधारी की छूट मिलने से राज्य इन परियोजनाओं से बिजली खरीदने पर विचार करेंगी। |