Akal Bodhan 2025: नवरात्र से कैसे जुड़ा है अकाल बोधन? पढ़ें क्या है यह विधि और क्यों है इतनी खास

cy520520 2025-9-25 18:04:39 views 1272
  Akal Bodhan 2025: अकाल बोधन की पौराणिक कथा





दिव्या गौतम, एस्ट्रोपत्री। शारदीय नवरात्रि माता दुर्गा की आराधना का पवित्र पर्व है, जो पूरे देश में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह समय देवी की शक्ति, सुरक्षा और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। नवरात्रि के आरंभ से ही भक्त मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं, और इस दौरान घर-परिवार में मंगल, समृद्धि और सौभाग्य की कामना की जाती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

  



इस पवित्र पर्व के पूर्वाभ्यास में ही अकाल बोधन का विशेष महत्व होता है। अकाल बोधन का अर्थ है देवी मां को उनके निर्धारित समय से पहले जगाना। शारदीय नवरात्र में अकाल बोधन आमतौर पर षष्ठी तिथि को किया जाता है, जो इस वर्ष 27 सितंबर 2025 को पड़ रहा है। इस दिन भक्त पूरी श्रद्धा और नियम से मां दुर्गा का आह्वान करते हैं, ताकि घर में उनकी शक्ति, सुरक्षा और आशीर्वाद स्थायी रूप से प्रवेश कर सके।


क्या होता है अकाल बोधन? (akal bodhan and navratri)

अकाल बोधन का मतलब है देवी मां को उनके तय समय से पहले जगाना। शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन काल यानी शरद और शीत ऋतु में सभी देवी-देवता आध्यात्मिक नींद (योगनिद्रा) में रहते हैं। इस समय उनकी ऊर्जा शांत और स्थिर होती है। ऐसे में यदि भक्त पूरी श्रद्धा और नियम से मां दुर्गा का आह्वान करते हैं, तो इसे अकाल बोधन कहा जाता है। यह अनुष्ठान घर में मां की शक्ति, सुरक्षा और आशीर्वाद पाने का विशेष तरीका है।


कैसे हुई अकाल बोधन की शुरुआत?

वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब भगवान श्रीराम लंका विजय के लिए जा रहे थे, तब उन्होंने शरद ऋतु में मां दुर्गा का आह्वान किया। यह आह्वान सामान्य समय से पूर्व किया गया था, इसलिए इसे अकाल जागरण (अकाल बोधन) कहा गया। जब श्री राम को पूजा के लिए 108 नील कमल चाहिए थे लेकिन उनके पास केवल 107 ही कमल थे। तब उन्होंने अपनी एक आंख अर्पित करने का निश्चय किया, क्योंकि वह कमल जैसी नीली थी।



जैसे ही उन्होंने बाण से अपनी आंख निकालने की कोशिश की, देवी दुर्गा प्रकट हुईं और उनकी भक्ति देखकर प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया कि रावण के साथ युद्ध में उनका जीत अवश्य होगी। इसके बाद ही युद्ध आरंभ हुआ और दसवें दिन रावण का वध हुआ। इसी दिन को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है। जिसे बंगाल में विजयादशमी और अन्य जगहों पर दशहरा कहा जाता है।
कैसे किया जाता है अकाल बोधन?
कलश स्थापना:

सबसे पहले घर या पूजा स्थल को पवित्र रूप से तैयार किया जाता है। सफाई, दीप और अगरबत्ती से वातावरण को शुद्ध किया जाता है। फिर कलश स्थापना की जाती है। कलश को देवी का प्रतीक माना जाता है, इसलिए इसे बहुत ध्यान और श्रद्धा से सजाया जाता है।Harsingar ke upay, Harsingar Flower Benefits, Harsingar, Night-flowering jasmine, पारिजात के उपाय, remedies for Parijat, Parijat Phool Ke Upay, Parijat Ke Upay, Navratri 2025, shardiya navratri 2025, Harsingar remedies, हारसिंगार के उपाय, Navratri 2025 Harsingar Ke Upay


कलश में सामग्री:

कलश में जल, अक्षत (चावल) और अन्य शुभ सामग्री जैसे हल्दी, कुमकुम और फूल रखे जाते हैं। यह सब सामग्री देवी मां की शक्ति और पवित्रता का प्रतीक होती है। भक्त इन चीज़ों को रखकर मां से आशीर्वाद की कामना करता है।
कलश का स्थान:

कलश को बेल वृक्ष के पास रखा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि बेल का पेड़ देवी दुर्गा को अत्यंत प्रिय है। बेलपत्र और पेड़ का स्थान मां के स्वागत और आह्वान के लिए विशेष महत्व रखता है।


मंत्र और प्रार्थना:

कलश स्थापना के बाद भक्त विशेष मंत्रों और प्रार्थनाओं के माध्यम से देवी मां का आह्वान करता है। यह समय बेहद पवित्र होता है। भक्त का मन और हृदय पूरी श्रद्धा और भक्ति से मां की ओर केंद्रित होता है। मंत्र उच्चारण और प्रार्थना से देवी की ऊर्जा घर में प्रवेश करती है।
बंगाल में अकाल बोधन की परंपरा

बंगाल में अकाल बोधन को बहुत ही श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है। यहां इसे विशेष रूप से नवरात्रि के पहले दिन या आश्विन शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है। बंगाली लोग घर और मंदिरों को साफ-सुथरा सजाते हैं और कलश स्थापना करके मां दुर्गा का आह्वान करते हैं। नवपत्रिका पूजा को विशेष महत्व दिया जाता है, जिसमें नौ पवित्र पौधों में देवी की शक्तियों का स्वागत किया जाता है।



इस दिन को बंगाल में विजयादशमी की पूर्व संध्या के रूप में भी देखा जाता है और भक्त पूरे भक्ति भाव के साथ मां की आराधना करते हैं। बेल पत्र, दीप और फूलों से मां का शृंगार किया जाता है और विशेष मंत्रों से देवी को आमंत्रित किया जाता है। बंगाली संस्कृति में अकाल बोधन न केवल पूजा का अवसर है, बल्कि यह घर-परिवार में सुख, समृद्धि और सुरक्षा लाने का प्रतीक भी माना जाता है।

यह भी पढ़ें- Shardiya Navratri 4th Day: मां कूष्मांडा को मालपुआ का लगाएं भोग, अर्पित करें बेला का फूल



यह भी पढ़ें- Shardiya Navratri में शिवलिंग पर चढ़ाएं ये चीजें, जीवन में मिलेंगे सभी सुख, बरसेगी महादेव की कृपा

लेखक: दिव्या गौतम, Astropatri.com अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए hello@astropatri.com पर संपर्क करें।
like (0)
cy520520Forum Veteran

Post a reply

loginto write comments
cy520520

He hasn't introduced himself yet.

410K

Threads

0

Posts

1310K

Credits

Forum Veteran

Credits
132884

Get jili slot free 100 online Gambling and more profitable chanced casino at www.deltin51.com, Of particular note is that we've prepared 100 free Lucky Slots games for new users, giving you the opportunity to experience the thrill of the slot machine world and feel a certain level of risk. Click on the content at the top of the forum to play these free slot games; they're simple and easy to learn, ensuring you can quickly get started and fully enjoy the fun. We also have a free roulette wheel with a value of 200 for inviting friends.