रेयर अर्थ में चीन पर निर्भरता खत्म करने के लिए ट्रंप को करना पड़ेगा इंतजार, प्लांट बनाने में ही लगते हैं कई साल

deltin33 2025-10-21 22:07:23 views 677
  

रेयर अर्थ के लिए ट्रंप को करना पड़ेगा इंतजार



नई दिल्ली। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने दुर्लभ (rare earth) और दूसरे महत्वपूर्ण खनिजों (critical minerals) की सप्लाई बढ़ाने के लिए एक डील की है। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन इस क्षेत्र में चीन के दबदबे का मुकाबला करने के तरीके ढूंढ रहा है, और यह डील उसी का हिस्सा है। इस डील से ऑस्ट्रेलिया के खनिज क्षेत्र को अमेरिका से आर्थिक मदद मिलेगी, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका को अपनी सप्लाई चेन से चीन को हटाने और मार्केट में उसका दबदबा कमजोर करने के लिए अभी और इंतजार करना होगा। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

सोमवार को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज (Anthony Albanese) ने इस समझौते पर दस्तखत किए। एक बयान में व्हाइट हाउस ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया में अमेरिकी निवेश से 53 अरब डॉलर के महत्वपूर्ण खनिजों के भंडार की खुदाई हो सकेगी।
समझौते के बाद ट्रंप का महत्वाकांक्षी दावा

इस डील पर दस्तखत होने के बाद ट्रंप ने एक बयान दिया जिसे इंडस्ट्री के जानकार बेहद महत्वाकांक्षी मान रहे हैं। ट्रंप ने कहा, “एक साल में इतने क्रिटिकल मिनरल और रेयर अर्थ होंगे कि आपको समझ नहीं आएगा कि उनका क्या करें।” ट्रंप ने बाद में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यहां तक दावा किया कि उनकी कीमत 2 डॉलर रह जाएगी।

सबसे अधिक मांग वाले प्रोसेस्ड रेयर अर्थ, NdPr ऑक्साइड की बेंचमार्क कीमतें कई सालों की कमजोरी के बाद अगस्त में 40% बढ़कर 88 डॉलर प्रति किलोग्राम हो गई थीं। फिलहाल उनके दाम 71 डॉलर के आस पास हैं।
ट्रंप के दावे से विशेषज्ञों को इत्तेफाक नहीं

सोमवार को हुए इस समझौते के बाद मंगलवार को सिडनी में ग्लोबल माइनिंग इंडस्ट्री के एक्सपर्ट्स इकट्ठा हुए। उन्होंने समझौते का यह कह कर स्वागत किया कि इससे निवेश के मौके खुलेंगे, लेकिन उन्होंने समय को लेकर ट्रंप के दावे पर शक जताया।

ऑस्ट्रेलियाई वित्तीय संस्थान बैरेनजॉय के एनालिस्ट डैन मॉर्गन ने बताया, “विभिन्न प्रोजेक्ट के 2027 तक तैयार होना भी बहुत मुश्किल होगा।“ उन्होंने कहा, आम तौर पर रेयर अर्थ इंडस्ट्री में कुछ भी जल्दी नहीं होता। मुझे नहीं लगता कि अचानक सप्लाई बहुत बढ़ जाएगी। ऐसा कोई तरीका नहीं है कि एक साल में हमें रेयर अर्थ मिलने लगें। हो सकता है कि 5-7 साल में हमारी सप्लाई चेन तैयार हो जाए।
फिलहाल चीन के पास है नियंत्रण

चीन के पास दुनिया के रेयर अर्थ्स की 90% रिफाइनिंग क्षमता है। इनका क्लीन एनर्जी, डिफेंस और ऑटोमोबाइल जैसे सेक्टर में बहुत इस्तेमाल होता है। सप्लाई में रुकावट के खतरों का जिक्र करते हुए गोल्डमैन सैक्स ने सोमवार को एक नोट में बताया कि ग्लोबल रेयर अर्थ माइनिंग के 69% और मैग्नेट मैन्युफैक्चरिंग के 98% हिस्से पर चीन का नियंत्रण है।

वैसे तो रेयर अर्थ धरती पर प्रचुर मात्रा में हैं, चीन ने बेहद कम लागत में इनकी रिफाइनिंग करने में महारत हासिल कर ली है। व्यापार को लेकर तनाव और सुरक्षा संबंधी चिंताएं बढ़ने के साथ अमेरिका और उसके साथी पश्चिमी देश चीन की पकड़ ढीली करने की कोशिश कर रहे हैं। अप्रैल-मई में बीजिंग ने रेयर अर्थ और उनसे बने मैग्नेट के निर्यात पर रोक लगाकर ग्लोबल ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री को चिंता में डाल दिया था। इस महीने की शुरुआत में उसने निर्यात पर नियंत्रण और बढ़ा दिए हैं।

टेरा कैपिटल फंड के हेड एनालिस्ट डायलन केली ने कहा कि यह उम्मीद करना बेमानी है कि कीमतें और गिरेंगी और शॉर्ट टर्म में मार्केट में भरपूर सप्लाई होगी। उन्होंने कहा कि सोमवार की घोषणा से ऑस्ट्रेलियाई प्रोजेक्ट्स में इन्वेस्टमेंट का आकर्षण बढ़ गया है। वहां बहुत कुछ है जिसमें हम हाथ आजमा सकते हैं।
गोल्डमैन सैक्स का खतरे की ओर इशारा

गोल्डमैन सैक्स ने सोमवार को जारी अपनी रिपोर्ट में रेयर अर्थ और दूसरे क्रिटिकल मिनरल्स की ग्लोबल सप्लाई चेन के लिए बढ़ते खतरों की ओर इशारा किया। रिपोर्ट में माइनिंग और रिफाइनिंग में चीन के दबदबे पर जोर देते हुए स्वतंत्र सप्लाई चेन बनाने की कोशिश कर रहे देशों के लिए चुनौतियां बताई गई हैं। चीन ने 9 अक्टूबर को रेयर अर्थ निर्यात पर अंकुश बढ़ाते हुए इस सूची में पांच नए तत्वों को जोड़ दिया। अक्टूबर के अंत में डोनाल्ड ट्रंप और शी जिनपिंग के बीच होने वाली बैठक में इस पर भी चर्चा होने की उम्मीद की जा रही है।
मार्केट छोटा, लेकिन प्रभाव बड़ा

पिछले साल रेयर अर्थ मार्केट की वैल्यू 6 अरब डॉलर थी। यह कॉपर मार्केट के साइज का बस एक छोटा सा हिस्सा है। कॉपर का ग्लोबल मार्केट रेअर अर्थ का 33 गुना बड़ा है। लेकिन रेअर अर्थ तत्वों का प्रभाव बहुत बड़ा है। गोल्डमैन ने चेतावनी दी है कि रेअर अर्थ पर निर्भर इंडस्ट्रीज में 10% की बाधा आई तो 150 अरब डॉलर के इकोनॉमिक आउटपुट का नुकसान हो सकता है।

गोल्डमैन सैक्स ने सैमेरियम, ग्रेफाइट, ल्यूटेटियम और टर्बियम को लेकर चिंता जताई है। सैमेरियम का इस्तेमाल हीट-रेसिस्टेंट सैमेरियम-कोबाल्ट मैग्नेट में होता है, जो एयरोस्पेस और डिफेंस के लिए जरूरी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होने वाले ल्यूटेटियम और टर्बियम की सप्लाई में रुकावट से GDP के नुकसान का भी खतरा है। बैंक ने सेरियम और लैंथेनम जैसे लाइट रेयर अर्थ को भविष्य में प्रतिबंध के टारगेट के तौर पर चिन्हित किया, क्योंकि इनकी रिफाइनिंग और माइनिंग में चीन की अहम भूमिका है।
स्वतंत्र सप्लाई चेन के लिए चुनौतियां

अनेक देश स्वतंत्र रेअर अर्थ और मैग्नेट सप्लाई चेन बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं, लेकिन गोल्डमैन सैक्स ने जियोलॉजिकल कमी से लेकर टेक्नोलॉजी की मुश्किल और पर्यावरण संबंधी चुनौतियों तक का जिक्र किया है। उसने कहा कि चीन और म्यांमार के बाहर भारी रेयर अर्थ एलिमेंट खास तौर पर कम हैं। इनके ज्यादातर डिपॉजिट छोटे, कम ग्रेड के या रेडियोएक्टिव हैं। नई खदानें बनाने में आठ से 10 साल लगते हैं।

बैंक ने कहा कि रेअर अर्थ को रिफाइन करने के लिए एडवांस विशेषज्ञता और इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत होती है, जिसे बनाने में आमतौर पर पांच साल लगते हैं। हालांकि चीन के बाहर अमेरिका, जापान और जर्मनी में मैग्नेट का उत्पादन बढ़ रहा है, लेकिन सैमेरियम जैसे जरूरी इनपुट पर चीन के नियंत्रण की वजह से मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
भारत में दुनिया का 6 प्रतिशत रेयर अर्थ रिजर्व

कोटक म्यूचुअल फंड की एक रिसर्च रिपोर्ट में बताया गया है कि जैसे-जैसे दुनिया में स्वच्छ ऊर्जा की तरफ बदलाव तेज हो रहा है, आधुनिक टेक्नोलॉजी को गति देने वाले खनिजों पर नियंत्रण के लिए एक स्ट्रैटजिक मुकाबला शुरू हो गया है। इलेक्ट्रिक गाड़ियों, विंड टर्बाइन, स्मार्टफोन और डिफेंस सिस्टम के लिए जरूरी 17 तत्वों वाले रेयर अर्थ एलिमेंट्स (REE) नए जमाने का ‘तेल’ बन गए हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के रेयर अर्थ रिजर्व का लगभग 6 प्रतिशत भारत में है जो इस अरबों डॉलर के मौके में एक भरोसेमंद वैकल्पिक स्रोत के तौर पर उभर रहा है। हालांकि अभी ग्लोबल रेअर अर्थ उत्पादन में भारत का हिस्सा एक प्रतिशत से भी कम है। लेकिन केरल, तमिलनाडु, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और गुजरात जैसे तटीय राज्यों में फैली भारत की बड़ी क्षमता भविष्य के लिए बहुत उम्मीदें जगाती है।

नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन (2025) के तहत भारत ने इन जरूरी खनिजों की खोज, खनन और प्रोसेसिंग को प्राथमिकता दी है। हाल ही IREL (इंडिया) लिमिटेड को अमेरिका के एक्सपोर्ट कंट्रोल लिस्ट से हटाया जाना एक अहम कदम है, जिससे ग्लोबल सहयोग को बढ़ावा मिलेगा। विशाखापत्तनम में IREL के प्लांट में समैरियम-कोबाल्ट मैग्नेट बनाया जाएगा। KABIL (खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड) जैसी पहलों और अमेरिका के नेतृत्व वाली मिनरल सिक्योरिटी पार्टनरशिप (MSP) में भागीदारी के जरिए भारत ग्लोबल क्रिटिकल मिनरल इकोसिस्टम में अपनी बढ़ती भूराजनीतिक और आर्थिक अहमियत पर जोर दे रहा है।
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