वाराणसी के सब्‍जी अनुसंधान संस्‍थान में 42 सब्जियों की 6700 जननद्रव्य प्रविष्टियां संरक्षित, 133 प्रजातियां विकसित_deltin51

Chikheang 2025-9-26 21:06:33 views 1253
  संस्थान अल्पदोहित सब्जियों पर भी शोध कर रहा है, जिनमें प्रोटीन और स्टार्च भरपूर मात्रा में होते हैं।





मुकेश चंद्र श्रीवास्तव, वाराणसी। सब्जियां भारतीय कृषि का एक महत्वपूर्ण घटक है क्योंकि ये कम अवधि में तैयार होने वाली, उच्च उपज, पोषण से समृद्ध, आर्थिक रूप से व्यवसायी एवं रोजगार के अवसरों को सृजित करने में पूर्णतः सक्षम है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

सब्जियों को महत्व को देखते हुए वर्ष 1971 में अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना- सब्जी फसलों की स्थापना के साथ ही देश में सब्जी फसलों पर व्यवस्थित अनुसंधान कार्य प्रारम्भ हुआ।



तत्पश्चात्, वर्ष 1986 में इसे सब्जी अनुसंधान निदेशालय (पीडीवीआर) के रूप में उच्चीकृत किया गया, तदोपरांत वर्ष 1991 में इसे दिल्ली से वाराणसी स्थानांतरित किया गया। वर्ष 1999 में सब्जी अनुसंधान निदेशालय को एक राष्ट्रीय स्तर के संस्थान के रूप में स्थापित किया गया।

  

अपनी स्थापना के पश्चात से ही भातरीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्ध भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (आइआइवीआर) , वाराणसी सब्जी अनुसंधान तकनीकी विकास के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर का एक अग्रणी संस्थान के रूप में कार्य कर रहा है।



संस्थान के अन्तर्गत बीज उत्पादन केन्द्र, सरगटिया, कुशीनगर जो कि क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र के रूप में कार्य कर रहा है । इसके अलावा कृषि विज्ञान केन्द्र, कुशीनगर एवं देवारिया जनपदों में स्थापित किया गया जो कि किसानों को उच्च कोटि के बीज, उत्पादन तकनीकी एवं मौसम अनुकूल सम-सामयिक जानकारियां प्रदान कर रहा हैं।

  



टमाटर, बैंगन, मिर्च, मटर, फूलगोभी, मूली, गाजर, करेला जैसी 20 सब्जियों पर चल रहा शोध :  

आइआइवीआर के निदेशक डा. राजेश कुमार ने बताते हैं कि इस समय संस्थान में कुल 20 प्रमुख सब्जियों जैसे टमाटर, बैंगन, मिर्च, सब्जी मटर, फ्राशबीन, लोबिया, फूलगोभी, मूली, गाजर, करेला, पेठा, कुम्हड़ा, परवल, खरबूजा, लौकी, नेनुआ, चिकनी तोरई, खीरा, भिण्डी पर शोध कार्य किये जा रहे है।

इसके अलावा 22 अन्य अल्पदोहित सब्जियों जैसे पंखिया सेम, कलमी साग, कमल, सिंघाड़ा, बथुआ, पोई, चौलाई, केल, शिमला मिर्च, ककड़ी, तरबूज, ककरोल, करतोली, कुन्दरू, टिंडा, सब्जी सोयबीन, ग्वार, लीमाबीन, बाकला, चप्पन कद्दू, बेबीकार्न एवं सहजन पर भी शोध कार्य कर उत्पादन एवं सब्जी फ़सल सुरक्षा पर विस्तृत रूप से किया जा रहा है।



  

हाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किसानों को किया था काशी बौनी सेम 207 एवं लौकी की काशी सुभ्रा समर्पित : अभी हाल ही में संस्थान द्वारा विकसित सेम की काशी बौनी सेम 207 एवं लौकी की काशी सुभ्रा प्रजाति देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा राष्ट्र के किसानों को समर्पित किया गया था। वहीं जलवायु सहिष्णु कलमी साग की प्रजाति काशी मनु एवं टमाटर की काशी तपस देश को केन्द्रीय मंत्री शिव राजसिंह चौहान द्वारा देश के किसानों को समर्पित किया गया था, जो संस्थान के लिए एक सुखद अनुभव रहा है।



इन सब्जियों में प्रोटीन व स्टार्च का अच्छा मिश्रण : अल्प दोहित सब्जियों की दैनिक जीवन में महत्व को बताते हुए निदेशक डा. कुमार कहते हैं कि इन सब्जियों में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व पाये जाते है। इसमें प्रोटीन एवं स्टार्च का अच्छा मिश्रण होता है। इनकी ऊर्जा मूल्य कम होती है। साथ ही वसा की मात्रा भी कम पायी जाती है। अल्प दोहित सब्जियां रेशे की भी अच्छी स्रोत है। इसके अलावा इनमें प्रचुर मात्रा में खनिज तत्व पाये जाते है साथ ही साथ बहुत से औषधीय गुण भी पाये जाते हैं।



  

कलमी साग की देश की प्रथम प्रजाति काशी मनु इसी संस्थान से विकसित की गयी है जिसका उत्पादन वर्ष पर्यंत चलता रहता है। भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, 60 हेक्टेयर क्षेत्रफल पर फैला हुआ नलकूपों, भूमिगत एवं टपक सिंचाई प्रणाली और जल संचयन टंकियों से युक्त है। मुख्य परिसर में सृसज्जित ग्रीन हाउस, पालीहाउस, नेटहाउस एवं एक तापमान प्रवणता सुरंग उपलब्ध है। यह सुविधाएं संरक्षित वातावरण में खेती, कीट एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता की जाँच एवं बहुमूल्य आनुवांशिक सामग्रियों के गुणन एवं संरक्षण संबन्धित अनुसंधानों के लिए मंच प्रदान करता है।

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इसके अलावा प्रौद्योगिकियों के प्रदर्शन के लिए निर्देशन खण्ड, जीन बैंक, बीज भण्डारण और प्रसंस्करण इकाई, पुस्तकालय, कृषि ज्ञान प्रबंधन इकाई, कृषि प्रौद्योगिक सूचना केन्द्र, प्रशिक्षण के लिए उत्कृष्ट केन्द्र एवं सब्जियों पर अखिल भारतीय समन्वित परियोजना का कार्यक्रम भी संस्थान पर उपलब्ध जो देश भर फैले विभिन्न केन्द्रों को संचालित करता है। संस्थान आधुनिक तकनीकों के प्रयोग कर हाई टेक नर्सरी द्वारा स्वस्थ पौध उपलब्ध करते हुए सब्जी उत्पादन में ड्रोन के उपयोग से फ़सल सुरक्षा एवं फ़सल उत्पादन के विभिन्न आयामों को किसानों तक पंहुचा रहा है।



कम पानी में लहलहाने वाली भी सब्जियां

संस्थान में 42 सब्जियों की 6700 जननद्रव्य प्रविष्टियां संरक्षित है जो कि देश के विभिन्न शोध संस्थानों कों उपलब्ध कराये जा रहे हैं। संस्थान द्वारा अभी तक कुल 133 प्रजातियां 33 फसलों में विकसित की गयी है विकसित प्रजातियां देशभर के किसानों के द्वारा उगाई जा रही है। इसके अलावा संस्थान द्वारा विभिन्न उत्पादन तकनीकी जैसे बेहतर उत्पादकता और मृदा स्वास्थ्य के लिए पोषक तत्वों के पैकेज का विकास, सब्जियों के पोषक आवश्यकताओं का अनुकूलन होगा।  



पोषक तत्व दक्ष कृषि क्रियाएं, नत्रजन उपयोग दक्षता बढ़ाने हेतु कृषि क्रियाएं, जल संरक्षण के उपाय, विभिन्न सब्जी फसलों में पानी की बचत करने की तकनीकें, सुरक्षित सब्जियों के लिए जैविक खेती, जुताई और अवशेष प्रबंधन के माध्यम से ऊर्जा की बचत, तुड़ाई एवं मूल्यवर्धन जैसी उत्पादन तकनीकी विकसित की गयी है जिससे किसानों को अधिक लाभ मिल रहा है।

संस्‍थान ने मूल्यवर्धन तकनीकों का भी किया विकास :  



प्रचुर प्रोटीन युक्त सहजन सूप, सब्जी सूप, लौकी की खीर, लाल विलेयन, कार्नोबा मोम विलेयन जैसी मूल्यवर्धन तकनीकों का भी विकास किया है।

कीट एवं रोग प्रबंधन हेतु बैंगन के फल और तना बेधक के लिए समन्वित कीट प्रबंधन, बैंगन फल और तना बेधक के लिए एकीकृत प्रतिरोधिता प्रबंधन की रणनीतियां, कद्दूवर्गीय सब्जियों में फल मक्खी हेतु समन्वित कीट प्रबंधन, नाशीजीवों का जैविक प्रबंधन, कृषि क्रियाओं द्वारा कीट प्रबंधन, कीट प्रबंधन हेतु विभिन्न अंतर फसली पद्धतियों का प्रभावी संयोजन हो रहा है।

कीट प्रबंधन हेतु वानस्पतिक अर्क, सब्जियों में मृदा जनित व्याधियों का प्रबंधन, जीवाणु जनित रोगों हेतु समन्वित रोग प्रबंधन, पादन रोगों का आण्विक निदान, भिंडी में पीत पर्ण शिरा मोजैक रोग का प्रबंधन जैसी तकनीकी विकसित कर संस्थान देश में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।

साथ ही संस्थान द्वारा प्रौद्योगिकी का प्रसार करने हेतु वार्षिक राष्ट्रीय किसान मेला, प्रक्षेत्र दिवस, किसान गोष्ठी किये जाते है। विभिन्न परियोजनाओं के अन्तर्गत पोषण सुरक्षा हेतु गृह वाटिका पैकट का वितरण कर पोषण सुरक्षा हेतु कदम बढ़ा रहा है।

  

जीनोम एडिटिंग अनुसंधान पर भी काम कर रहे आइआइवीआर :

संस्थान द्वारा नवीनतम जैव- प्रौद्योगिकी तकनीक पर शोध करते हुए जीनोम एडिटिंग अनुसंधान प्रगति पर है। इन प्रयासों से भविष्य के लिए आवश्यक उत्पादों का विकास प्रारम्भ हो गया है। प्रमुख तकनीक जैसे टमाटर में क्रिस्पर कैस-9 मध्यस्थ जीनोम संपादन, चिरस्थायित्व प्रतिरोध के लिए जीन पिरामिडिंग, टमाटर में बहुरोग प्रतिरोधिता हेतु जीन पिरामिडिंग, अग्रगामी आनुवांशिकी पद्धति द्वारा मिर्च में जीव अनुरोपण से फायदा होगा।  

जैव प्रौद्योगिक उत्पाद द्वारा टमाटर की खेती में पानी की बचत के लिए प्रयास, बैंगन और टमाटर में फल बेधक का प्रबंधन, उच्च तापमान और नमी के प्रति सहिष्णु टमाटर किस्मों की पहचान और विकास, जल भराव के प्रभाव को कम करने के लिए ग्राफ्टिग जैसे आधुनिक एवं अद्यतन तकनी विकास संस्थान द्वारा किया जा रहा है जिससे देश की वर्तमान कृषि में सुनहरे पंख लगेंगे।

पूर्वोत्तर राज्यों में भी उत्पादन एवं पोषण सुरक्षा में भी भूमिका :

संस्थान ने केवल शोध बल्की प्रसार प्रभाग द्वारा अनुसूचित जाति एवं जनजाति परियोजना के अंन्तर्गत संबध किसानों को गुणवक्ता युक्त बीज के साथ विभिन्न प्रकार की सामाग्रियां उपलब्ध करा रहा है। इतना ही नहीं संस्थान अपने उच्च गुणवत्ता युक्त बीजों के साथ अनेक प्रकार की कृषि तकनीकों को सुदूर पूर्वोत्तर राज्यों में भी उत्पादन एवं पोषण सुरक्षा में अपनी भूमिका निभा रहा है।

संस्थान न केवल शोध एवं प्रसार में अग्रणी भूमिका निभा रहा है बल्की शिक्षा में भी अपना सहयोग प्रदान कर रहा है। वर्तमान में देश के कृषि विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों के 50 से अधिक शोध छात्र एवं छात्राएं विश्व स्तरीय शोध सुविधाओं से अपने शोध कार्य कर रहे है, जिससे आने वाले दिनों में देश को अच्छे वैज्ञानिक प्राप्त हो सकेगे।

अल्पदोहित एवं जलीय सब्जियों पर भी शोध

निदेशक डा. राजेश कुमार ने बताया कि प्रमुख सब्जी फसलों पर शोध के साथ ही साथ संस्थान द्वारा अल्पदोहित एवं जलीय सब्जियों पर शोध से इन सब्जियों की लोकप्रियता एवं क्षेत्रफल में वृद्धि से पोषण सुरक्षा एवं समाज के आर्थिक उत्थान के प्रति महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। इसके अलावा इन सब्जियों से रोजगार पैदा होने की भी प्रबल संभावना है। संस्थान द्वारा भविष्य की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए शोध कार्य किये जा रहे हैं जिससे भविष्य में न केवल संपूर्ण पोषण, खाद्य की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकेगी बल्कि किसानों की आय में भी वृद्धि हो सकेगी।

दुनिया के विभिन्न देशों के खान-पान में बदलाव को देखते हुए अल्पदोहित सब्जियों के निर्यात की भी प्रबल संभावना है जिसके लिए संस्थान तत्परता से कार्य कर रहा है। संस्थान की उपलब्धियों पर खुशी जताते हुए निदेशक डा. राजेश कुमार यह भी मानते है कि वर्तमान परिस्थितियों में कृषि में हो रहे बदलाव को देखते हुए भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी को अभी बहुत ऊंचाइयों की यात्रा पूरी करनी है जिसके लिए संस्थान आगे कदम बड़ा रहा है।

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