Gopashtami Kab Hai: आज गोपाष्टमी का शुभ मुहूर्त कब है? नोट करें गो पूजन का विधि-विधान, ऐसे करें पूजा तो मिलेगा अक्षय पुण्य

LHC0088 2025-10-29 08:07:09 views 1067
  

Gopashtami 2025 Date, Gopashtami Kab Hai: गोपाष्टमी पर आज करें गो-पूजन, मिलेगा अक्षय पुण्य, संकटों से मुक्ति।



ललन तिवारी, भागलपुर। Gopashtami 2025 Date, Gopashtami Kab Hai कार्तिक मास का हर दिन धर्म और आस्था का दीप जलाता है, लेकिन गोपाष्टमी का यह पावन पर्व अक्षय पुण्य और आरोग्यता का विशेष फल प्रदान करने वाला माना गया है। 29 नवंबर, बुधवार को कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी का त्योहार मनाया जाएगा। इस दिन विधि-विधान से गो पूजन करने की परंपरा है। गो माता का आशीर्वाद मिलने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। संकटों से मुक्ति मिलती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

गोपाष्टमी 2025 का अध्यात्मिक महत्व

ज्योतिषाचार्य पंडित सचिन कुमार दूबे कहते हैं कि गो माता का अध्यात्म भी उतना ही सशक्त है जितना उनका वैज्ञानिक महत्व। पुराणों में गो को 33 कोटि देवी-देवताओं का निवास बताया गया है। नौ ग्रहों की ऊर्जा संतुलन में गाय की सूर्य-शक्ति धारक प्रकृति अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमारे यहां यह धारणा रही है कि गो-सेवा मनुष्य की आत्मा को मोक्ष के पथ की ओर ले जाती है। इसलिए गोपाष्टमी का यह पर्व केवल पूजा-अर्चना का दिन नहीं बल्कि धरा और जीवों के संरक्षण का संकल्प-दिवस है। इस दिव्य विरासत को मजबूत बनाए रखने के संकल्प का दिन है। गाय बचेगी तो जीवन, प्रकृति बचेगी जिससे भविष्य बचेगा।

कब और क्यों मनाते हैं गोपाष्टमी 2025

बूढ़ानाथ मंदिर के ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषिकेश पांडे बताते हैं कि कार्तिक शुक्ल अष्टमी को ही बालकृष्ण ने पहली बार गो-चारण की आज्ञा माता यशोदा से ली थी। नंगे पांव द्वारिका के गोपाल जब गौओं को लेकर जंगल की ओर बढ़े, तभी से गोविंद नाम की प्राप्ति मानी जाती है। हमारी शास्त्रीय मान्यता है कि गो माता में 33 कोटि देव-शक्तियों का वास होता है। इसलिए इस दिन गो-पूजन करने पर अक्षय पुण्य की प्राप्ति, सभी कष्टों और रोगों से रक्षा, संतान और परिवार की मंगलकामना पूर्ण, मातृ-प्रेम व स्नेह की वृद्धि जैसे फल प्राप्त होते हैं।

गोपाष्टमी 2025 : कैसे करें पूजन, क्या है शास्त्रों का विधान

ऋषिकेश पांडे ने बताया कि प्रातः काल में षोडशोपचार से गो-पूजन करें। गो को स्नान, तिलक, वस्त्र व फुल माला। धूप-दीप से आरती करें। गाय और उसके बछड़े के दर्शन अवश्य करें। गो को रोटी में गुड़, तिल व गंगा जल मिला कर अर्पित करने से रोग-व्याधि नष्ट होते हैं।

गो-संरक्षण का संदेश देता है गोपाष्टमी 2025

गोपाष्टमी केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भारतीय कृषि आधारित संस्कृति का मूल है। गो हमारी अन्न–ऊर्जा की जननी, ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़, पर्यावरण की संरक्षिक है। इसीलिए यह पर्व आधुनिक समाज को गो-संरक्षण और संवर्धन का संकल्प भी कराता है। गोपाष्टमी गोमाता की सेवा और अराधना का अवसर है। गाय अन्न, आरोग्य और आयू देती है।  

गोपाष्टमी 2025 : मिट्टी, मानव और आत्मा, तीनों की संजीवनी है गोधन

वेदों में पूज्य और विज्ञान में प्रमाणित गो माता भारतीय जीवन पद्धति की वह शक्ति हैं, जो एक साथ आस्था, कृषि, पर्यावरण और स्वास्थ्य चारों स्तंभों को मजबूती देती हैं। गोपाष्टमी का यह पावन अवसर हमें स्मरण कराता है कि संसार की संपूर्ण सृष्टि का पोषण करने वाली गाय स्वयं प्रकृति की संजीवनी है। भारतीय परंपरा में जहां गो को देवत्त्व का दर्जा प्राप्त है, वहीं आधुनिक विज्ञान इसे धरती, मिट्टी और मनुष्य के स्वास्थ्य की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी मानता है।

गोबर और गौमूत्र में सूक्ष्म पोषक तत्व

कृषि विज्ञानी बताते हैं कि गाय के गोबर और गौमूत्र में ऐसे सूक्ष्म पोषक तत्व होते हैं, जो भूमि की उपजाऊ शक्ति को प्राकृतिक रूप से बढ़ाते हैं। मिट्टी में जैविक कार्बन का स्तर स्थिर रखने और रसायनरहित खेती को बढ़ावा देने में गोधन की भूमिका सर्वोपरि है। बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के कुलपति डा. डी.आर. सिंह का कहना है कि कृषि के भविष्य का आधार अब देशी गाय आधारित टिकाऊ खेती बनती जा रही है। वे बताते हैं कि परंपरागत खेती जो कभी हमारी समृद्धि का आधार थी, अब वही कृषि विज्ञान के नए आयामों में फिर स्थापित हो रही है। इससे न केवल मिट्टी स्वस्थ होती है, बल्कि खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता में भी चमत्कारिक वृद्धि होती है।

मानव जीवन का संरक्षण करती है गाय

गाय न केवल खेत और धरा को जीवन देती है, बल्कि मानव स्वास्थ्य का संरक्षण भी करती है। गाय का दूध, घी और गो-उत्पाद संपूर्ण पोषण का स्त्रोत हैं। गाय जहां रहती है वहां का वातावरण स्वतः शुद्ध और रोगमुक्त बना रहता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि गो-सेवा में मानसिक शांति का अद्भुत प्रभाव होता है। गाय के पास रहने से तनाव, चिंता और कई मानसिक असंतुलन स्वतः समाप्त होने लगते हैं। यही कारण है कि गाय हमारे लिए किसान का संबल, रोगों की औषधि और पर्यावरण की रक्षा तीनों रूपों में कल्याणकारी है।

भागलपुर सहित पूरे पूर्वांचल में देशी नस्ल, खासकर गिर गाय के प्रति जागरूकता और आकर्षण तेजी से बढ़ा है। गिर नस्ल की खासियत यह है कि इसके शरीर के कूबड़ में उपस्थित सूर्यकेतु नाड़ी सूर्य की किरणों को सोखकर दूध में स्वर्ण तत्व और विटामिन-डी बढ़ाती है। यह दूध स्वास्थ्य संरक्षण में अत्यंत प्रभावी माना जाता है।

कृषि विज्ञान केंद्र सबौर में दर्जनभर गिर गायों के संरक्षण और पालन का कार्य किसानों के लिए प्रशिक्षण का जीवंत केंद्र बन गया है। पशुपालक इसे देखकर प्रेरित हो रहे हैं और देशी नस्ल की ओर उनका झुकाव लगातार बढ़ रहा है। बीएयू के पशुओं के विशेषज्ञ डा. राजेश कुमार का कहना है कि गिर गाय कम देखभाल में अधिक दूध उत्पादन देती है और इसकी प्रतिरोधक क्षमता भी विलक्षण है। इस नस्ल के विस्तार पर निरंतर कार्य किया जा रहा है और आने वाले वर्षों में यही नस्ल पशुपालकों की पहली पसंद बनेगी।
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