एक ही आंगन से निकले तीन प्रत्याशी, मैदान में त्रिकोणीय मुकाबला
नूतन चंद्र त्रिवेदी, रक्सौल (पूच)। बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Election 2025) के द्वितीय चरण में रक्सौल सीट (Raxaul Seat Election 2025) पर होने वाले मतदान की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, चुनावी तापमान का पारा चढ़ने लगा है। मतदाता अब अपने मन की पार्टी तय करने लगे हैं। कोई विकास को प्राथमिकता दे रहा है तो कोई “जंगलराज की वापसी” नहीं होने देने के मूड में है। जातीय समीकरणों और राजनीतिक रणनीतियों के बीच इस बार रक्सौल में मुकाबला त्रिकोणीय माना जा रहा है।
जनता के बीच चर्चा है कि इस बार भाजपा के वर्तमान विधायक प्रमोद कुमार सिन्हा, कांग्रेस प्रत्याशी श्याम बिहारी प्रसाद और जन सुराज पार्टी के कपिलदेव प्रसाद के बीच मुकाबला दिलचस्प रहेगा। खास बात यह है कि तीनों प्रत्याशी कभी जदयू (जनता दल यूनाइटेड) के ही कार्यकर्ता रह चुके हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव से पूर्व प्रमोद कुमार सिन्हा ने जदयू छोड़कर भाजपा का दामन थामा था और टिकट पाकर विजयी हुए थे। वहीं, कांग्रेस प्रत्याशी श्याम बिहारी प्रसाद ने भी टिकट मिलने से पहले जदयू से नाता तोड़ा था। इसी कड़ी में जन सुराज पार्टी के प्रत्याशी कपिलदेव प्रसाद ने प्रदेश पदाधिकारी पद से त्यागपत्र देकर चुनावी मैदान में उतरने का फैसला लिया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
चुनाव में सरगर्मी कम, मतदाता खामोश
टिकट वितरण को लेकर शुरू में ऊहापोह की स्थिति बनी रही, लेकिन अब चुनावी उलटी गिनती के साथ प्रत्याशियों की भागदौड़ तेज हो गई है। बावजूद इसके, इस बार आमजन में उतनी सरगर्मी नहीं दिख रही जितनी पिछले चुनाव में थी। निर्वाचन आयोग की सख्ती के चलते भी माहौल अपेक्षाकृत शांत है।
विकास, पलायन, महंगाई और रोजगार जैसे मुद्दों पर इस बार चुनावी जंग लड़ी जा रही है। हालांकि टिकट नहीं मिलने से कोई बड़ा बागी उम्मीदवार मैदान में नहीं है, लेकिन परदे के पीछे से भीतरघात की आशंका बनी हुई है।
सीमा क्षेत्र का चुनाव हमेशा रहता है चर्चा में
भारत-नेपाल सीमा से सटे इस विधानसभा क्षेत्र का चुनाव हमेशा सुर्खियों में रहता है। यहां एक-दूसरे को मात देने के लिए राजनीतिक दल हर संभव तिकड़म भिड़ा रहे हैं।
बुद्धिजीवियों और व्यवसायियों का गढ़ माने जाने वाले रक्सौल के अधिकांश मतदाता इस बार खामोश हैं। वे न तो खुलकर किसी उम्मीदवार के पक्ष में आ रहे हैं और न ही किसी के विरोध में। एक ओर पार्टी की प्रतिबद्धता और विकास का मुद्दा है, तो दूसरी ओर मतदाता अपना वोट ‘वेस्ट’ नहीं करना चाहते। इसलिए अधिकांश लोग ‘वेट एंड वॉच’ की नीति पर अमल कर रहे हैं।
नेता इस बार सीधे संपर्क अभियान पर जोर दे रहे हैं, लेकिन मतदाताओं में उत्साह की कमी साफ झलक रही है। विकास का मुद्दा कितना असर दिखा पाएगा, यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी। भीतरघात और रणनीतिक चुप्पी के बीच रक्सौल का यह चुनाव इस बार चुनौतीपूर्ण और दिलचस्प दोनों नजर आ रहा है।
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