Tulsi Chalisa Niyam: इस विधि से करें तुलसी चालीसा का पाठ, खुशियों से भर जाएगी झोली

Chikheang 2025-11-15 20:08:37 views 417
  

Tulsi Chalisa Path Vidhi: इस विधि से करें तुलसी चालीसा का पाठ (Image Source: AI-Generated)



धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में कई पेड़-पौधे पूजनीय हैं, जिनमें तुलसी का पौधा भी शामिल है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, रोजाना तुलसी पूजा करने से साधकों को मां लक्ष्मी कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। पूजा के दौरान तुलसी चालीसा का पाठ करना शुभ माना जाता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

तुलसी चालीसा (Tulsi Chalisa Lyrics in Hindi) के पाठ के दौरान नियम का पालन करना चाहिए। इससे घर में मां लक्ष्मी का वास होता है और देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि कब और कैसे करें तुलसी चालीसा का पाठ।
कब करें तुलसी चालीसा का पाठ

तुलसी चालीसा का पाठ रोजाना करना चाहिए, लेकिन गुरुवार और एकादशी के दिन इसका पाठ करना बेहद शुभ माना जाता है।

  

(Image Source: AI-Generated)
तुलसी चालीसा पाठ विधि (Tulsi Chalisa Path Vidhi in Hindi)

रोजाना सुबह नहाने के बाद सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए। इसके बाद तुलसी पौधे के पास देसी घी का दीपक जलाकर पूजा-अर्चना करें। सच्चे मन से तुलसी चालीसा का पाठ करें। तुलसी माता की आरती करें। 5 या 7 बार पौधे की परिक्रमा लगाएं। आखिरी में फल और मिठाई समेत आदि चीजों का भोग लगाएं। तुलसी माता से जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति के लिए कामना करें।
तुलसी चालीसा पाठ के नियम (Tulsi Chalisa Path Ke Niyam)

  • तुलसी चालीसा पाठ के दौरान किसी के बारे में गलत न सोचें।
  • किसी से वाद-विवाद न करें।
  • काले रंग के कपड़े न पहनें।
  • तुलसी पूजन साफ-सफाई वाली जगह पर करना चाहिए।
  • पूजा के समय किसी तरह की जल्दबाजी न करें।
  • मन शांत होना चाहिए।

तुलसी चालीसा पाठ के फायदे (Tulsi Chalisa Path Benefits)

  • घर में सुख-समृद्धि और खुशियों का आगमन होता है।
  • मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
  • आर्थिक तंगी से छुटकारा मिलता है।
  • धन की प्राप्ति होती है।
  • ग्रह दोष दूर होता है।
  • करियर और कारोबार में सफलता मिलती है।
     
तुलसी चालीसा लिरिक्स (Tulsi Chalisa Lyrics in Hindi)


॥ दोहा ॥

जय जय तुलसी भगवती,सत्यवती सुखदानी।

नमो नमो हरि प्रेयसी,श्री वृन्दा गुन खानी॥

श्री हरि शीश बिरजिनी,देहु अमर वर अम्ब।

जनहित हे वृन्दावनी,अब न करहु विलम्ब॥

॥ चौपाई ॥

धन्य धन्य श्री तुलसी माता। महिमा अगम सदा श्रुति गाता॥

हरि के प्राणहु से तुम प्यारी। हरीहीँ हेतु कीन्हो तप भारी॥

जब प्रसन्न है दर्शन दीन्ह्यो। तब कर जोरी विनय उस कीन्ह्यो॥

हे भगवन्त कन्त मम होहू। दीन जानी जनि छाडाहू छोहु॥

सुनी लक्ष्मी तुलसी की बानी। दीन्हो श्राप कध पर आनी॥

उस अयोग्य वर मांगन हारी। होहू विटप तुम जड़ तनु धारी॥

सुनी तुलसी हीँ श्रप्यो तेहिं ठामा। करहु वास तुहू नीचन धामा॥

दियो वचन हरि तब तत्काला। सुनहु सुमुखी जनि होहू बिहाला॥

समय पाई व्हौ रौ पाती तोरा। पुजिहौ आस वचन सत मोरा॥

तब गोकुल मह गोप सुदामा। तासु भई तुलसी तू बामा॥

कृष्ण रास लीला के माही। राधे शक्यो प्रेम लखी नाही॥

दियो श्राप तुलसिह तत्काला। नर लोकही तुम जन्महु बाला॥

यो गोप वह दानव राजा। शङ्ख चुड नामक शिर ताजा॥

तुलसी भई तासु की नारी। परम सती गुण रूप अगारी॥

अस द्वै कल्प बीत जब गयऊ। कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ॥

वृन्दा नाम भयो तुलसी को। असुर जलन्धर नाम पति को॥

करि अति द्वन्द अतुल बलधामा। लीन्हा शंकर से संग्राम॥

जब निज सैन्य सहित शिव हारे। मरही न तब हर हरिही पुकारे॥

पतिव्रता वृन्दा थी नारी। कोऊ न सके पतिहि संहारी॥

तब जलन्धर ही भेष बनाई। वृन्दा ढिग हरि पहुच्यो जाई॥

शिव हित लही करि कपट प्रसंगा। कियो सतीत्व धर्म तोही भंगा॥

भयो जलन्धर कर संहारा। सुनी उर शोक उपारा॥

तिही क्षण दियो कपट हरि टारी। लखी वृन्दा दुःख गिरा उचारी॥

जलन्धर जस हत्यो अभीता। सोई रावन तस हरिही सीता॥

अस प्रस्तर सम हृदय तुम्हारा। धर्म खण्डी मम पतिहि संहारा॥

यही कारण लही श्राप हमारा। होवे तनु पाषाण तुम्हारा॥

सुनी हरि तुरतहि वचन उचारे। दियो श्राप बिना विचारे॥

लख्यो न निज करतूती पति को। छलन चह्यो जब पारवती को॥

जड़मति तुहु अस हो जड़रूपा। जग मह तुलसी विटप अनूपा॥

धग्व रूप हम शालिग्रामा। नदी गण्डकी बीच ललामा॥

जो तुलसी दल हमही चढ़ इहैं। सब सुख भोगी परम पद पईहै॥

बिनु तुलसी हरि जलत शरीरा। अतिशय उठत शीश उर पीरा॥

जो तुलसी दल हरि शिर धारत। सो सहस्र घट अमृत डारत॥

तुलसी हरि मन रञ्जनी हारी। रोग दोष दुःख भंजनी हारी॥

प्रेम सहित हरि भजन निरन्तर। तुलसी राधा में नाही अन्तर॥

व्यन्जन हो छप्पनहु प्रकारा। बिनु तुलसी दल न हरीहि प्यारा॥

सकल तीर्थ तुलसी तरु छाही। लहत मुक्ति जन संशय नाही॥

कवि सुन्दर इक हरि गुण गावत। तुलसिहि निकट सहसगुण पावत॥

बसत निकट दुर्बासा धामा। जो प्रयास ते पूर्व ललामा॥

पाठ करहि जो नित नर नारी। होही सुख भाषहि त्रिपुरारी॥


॥ दोहा ॥


तुलसी चालीसा पढ़ही,तुलसी तरु ग्रह धारी।

दीपदान करि पुत्र फल,पावही बन्ध्यहु नारी॥

सकल दुःख दरिद्र हरि,हार ह्वै परम प्रसन्न।

आशिय धन जन लड़हि,ग्रह बसही पूर्णा अत्र॥

लाही अभिमत फल जगत,मह लाही पूर्ण सब काम।

जेई दल अर्पही तुलसी तंह,सहस बसही हरीराम॥

तुलसी महिमा नाम लख,तुलसी सूत सुखराम।

मानस चालीस रच्यो,जग महं तुलसीदास॥

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।
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