दिल्ली में बेसहारा गोवंशों का संकट गहराया: गोशालाएं क्षमता से अधिक भरीं, नए का निर्माण 30 साल से लंबित

cy520520 2025-11-22 02:37:43 views 782
  

प्रतीकात्मक तस्वीर।



निहाल सिंह, नई दिल्ली। दिल्ली में फरवरी 2025 में भाजपा की नई सरकार बनी तो सरकार के गठन के करीब एक माह बाद मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने उस समय विभाग को आवारा पशुओं के संबंध में कड़े निर्देश दिए थे। वह भी तब जब उनके काफिले के सामने हैदरपुर फ्लाईओवर पर गायों का झुंड आ गया था। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
एक माह तक चला विशेष अभियान

उस दौरान सीएम ने नागरिकों से भी जहां-तहां बेसहारा पशुओं को खाना खिलाने वाले नागरिकों को भी टोका तो विभाग को भी इस दिशा में काम करने का निर्देश दिया था। परिणाम स्वरूप उस इलाके में करीब एक माह तक निगम का विशेष अभियान चला और वहां से 400 से ज्यादा गायों को उठाकर गोशाला भेज दिया लेकिन अब दिल्ली के नागरिकों के लिए गाय की समस्या और बढ़ गई है क्योंकि दिल्ली की वर्तमान गोशालाएं अपनी क्षमता से अधिक पर चल रही हैं और उन्हें अन्य गाय को लेने से इन्कार कर दिया है।
घूमती बेसहारा गाय गंदगी की वजह बन रही

समस्या इसलिए भी विकराल है क्योंकि जहां आज गोशालाओं के नाम कई प्राइवेट बड़े-बड़े स्टार्टअप शुरू हो रहे हैं वहां पर दिल्ली में नई गोशालाएं शुरू नहीं हो पा रही है। 1995 में आखिरी बार नई गोशाला बनी थी इसके बाद उल्टा एक गोशाला बंद हो गई है नई तो शुरू ही नही हुई जबकि दिल्ली में गली मोहल्लों में घूमती बेसहारा गाय गंदगी की वजह बन रही है।

जहां-तहां गोबर से मोहल्लों का स्वच्छता स्तर बेहद खराब हो गया है। इतना ही नहीं लोगों के लिए यह बेसहारा गाय जानलेवा हो रही है। कभी गाय गुस्से में आकर लोगों की जान पर बन आती है तो कभी सड़कों पर वाहनों के सामने आ जाने हादसे हो जाते हैं तो लोगों की जान चली जाती है।
क्यों गहरा गई है समस्या?

समस्या इसलिए भी विकराल है कि सिर्फ एक गोशाला में एक हजार ही गाय रखने की क्षमता बची है। बाकि शेष तीन गोशालाएं अपनी क्षमता से अधिक गोवंश को रखे हुए हैं। इसी वजह से गोशाला संचालकों ने नई गाय लेने से इन्कार कर दिया है। ऐसे में नई गोशालाएं जब तक नहीं खुलेगी तब तक इस समस्या का समाधान नहीं होगा।

साथ ही, दिल्ली के हालात बहुत भयावह हो जाएंगे। क्योंकि अवैध डेरी संचालक इस फायदा उठाकर और गाय रखने लग जाएंगे और दूध निकालने के बाद उन्हें सड़क पर छोड़ देंगे। निगम ने नवंबर की सदन की बैठक में पार्षद मुनेश देवी के एक सवाल के जवाब में खुद इस बात का उत्तर दिया है कि गोशाला संचालक नई गाय नही ले रहे हैं। दिल्ली में गौशालाओं में बेसहारा गाय को रखने की क्षमता 19,838 हैं लेकिन 21,860 गाय व गौवंशी इन गौशालाओं में हैं।
पड़ोसी राज्यों से बात करने का प्रस्ताव

दिल्ली मे नई गोशाला बनाने समय लग जाएगा। ऐसे में भाजपा के पार्षदों ने पिछले दिनों स्थायी समिति की एक बैठक में प्रस्ताव रखा था कि पड़ोसी राज्यों से इसके लिए बात की जा सकती है। भाजपा पार्षद जगमोहन मेहलावत ने कहा था कि यह समस्या गंभीर है। साथ ही, दुख की बात है कि गाय को दूध निकालने के बाद सड़क पर कचरा खाने के लिए छोड़ा जा रहा है। ऐसे में इस समस्या का समाधान किए जाने की जरुरत है। उन्होंने कहा कि पड़ोस में भाजपा की सरकार हैं ऐसे में उन सरकारों के साथ बात करके गोशालाओं का उपयोग निगम कर सकता है।
किस गौशाला में कितनी हैं गाय या गोवंशी
गौशालाक्षेत्रफल (एकड़ में)क्षमतावर्तमान में गोवंश की संख्या
गोपाल गौसदन (नरेला)1532704006
श्री कृष्ण गौशाला(नरेला)367848 8668
मानव गौसदन (नजफगढ़)16 3488 4593
डाबर हरेकृष्ण24 5232 4593


पशुपालन विभाग ले रहा कुंभकर्णी नीद

दिल्ली में बेसहारा गाय की समस्या के लिए एमसीडी के पशु चिकित्सा सेवाएं विभाग के अधिकारी ज्यादा जिम्मेदार हैं। क्योंकि पुलिस और एमसीडी की मिलीभगत से रिहायशी इलाकों में अवैध डेरी चल रही हैं। जहां पर गाय का दूध निकालने के बाद सड़क पर छोड़ दिया जाता है। इतना ही नहीं केवल बूढ़ी गाय को उठाकर गोशालाओं में भेजा जाता है। दुधारू गाय को डेरी मालिकों से मिलीभगत करके छापेमारी से पहले ही हटा लिया जाता है।
1995 के बाद से काम हो गया ठप्प

देशभर में नियम है कि पशुपालन विभाग को पशु की गणना करनी चाहिए साथ ही उनके कान पर टैग लगाना चाहिए लेकिन दिल्ली में ऐसे स्थिति नहीं दिखाई देती। पशुपालन विभाग की जिम्मेदारी है कि वह नई गोशालाएं खोले लेकिन 1995 में जो नई गोशालाएं बनी थी उसके बाद दिल्ली में कोई नई गोशाला यह विभाग बना नहीं पाया। यानी बीते 30 साल से नई गोशालाओं का निर्माण ही नहीं हो सका।
नहीं मिला कोई जवाब

इतना ही नहीं 2018 में गायों की मौत के चलते घुम्महेड़ा की आचार्य सुशील मुनि गोशाला को बंद कर दिया गया। बजट में इस गोशाला को शुरू करने के लिए 47 करोड़ रुपये के बजट की घोषणा दिल्ली सरकार ने की थी लेकिन यह घोषणा बैठकों से आगे नहीं बढ़ पाई है। जब इस मामले में दिल्ली सरकार के पशुपालन विभाग के निदेशक डाॅ. सत्यवीर से पक्ष मांगा गया तो उनका कोई उत्तर नहीं आया।

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