आइआइटी कानपुर का नवाचार, अब घरों की छत पर विंड टरबाइन से मिलेगी बिजली

deltin33 2025-11-26 06:36:08 views 347
  



अखिलेश तिवारी , जागरण, कानपुर। बड़े शहरों की ऊंची इमारतों के बीच अपने आप तैयार होने वाली विंड - टनल यानी हवा के गलियारों से भी बिजली बनाई जा सकेगी। आइआइटी कानपुर के विज्ञानियों ने ऐसा विंड टरबाइन माडल तैयार किया है जाे ऊर्ध्व यानी लंबवत धुरी पर घूमता है और हवा के हल्के झोंके (3.5 मीटर प्रति सेकंड की रफ्तार) पर भी बिजली उत्पादित कर सकता है। माडल का आकार छोटा होने की वजह से इस विंड टरबाइन को घरों की छत पर भी लगाया जा सकता है। इसे बनाने में फिलहाल 60 हजार रुपये का खर्च आ रहा है। व्यावसायिक उत्पादन शुरू होने से लागत में कमी आ सकती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें



आइआइटी के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग और सस्टेनबल एनर्जी इंजीनियरिंग के प्रो. देबोपम दास के नेतृत्व में शिवम श्रीभाटे और सिद्धार्थ ने यह विंड टरबाइन माडल तैयार किया है। ऊर्ध्व धुरी वाली विंड टरबाइन (वीएडब्ल्यूटी) का यह नया डिज़ाइन से विंड एनर्जी यानी वायु ऊर्जा के इस्तेमाल करने का पारंपरिक तरीका बदला जा सकता है। अभी तक विंड टरबाइन का प्रयोग बड़े स्तर पर बिजली उत्पादन के लिए किया जाता है लेकिन इस माडल की मदद से घरों, कार्यालयाें और शहरों के उन इलाकों से विंड एनर्जी पाई जा सकेगी जहां इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है।



आइआइटी कानपुर के शोधार्थी शिवम भाटे ने बताया कि इस डिज़ाइन की सबसे बड़ी विशेषता इसका अनोखा पिच - कंट्रोल मैकेनिज्म है। जो टरबाइन ब्लेड की उपयोगिता को सर्वाधिक स्तर पर पहुंचा देता है। टरबाइन ब्लेड को आटोमैटिकली एडजस्ट करने की विशेषता ऐसी है जिसमें हवा की बेहद धीमी गति पर टरबाइन ब्लेड घूमने लगता है। हवा की दिशा के अनुरूप यह ब्लेड अपने आप पोजीशन में भी बदलाव कर सकते हैं। इससे हवा की शक्ति का भरपूर इस्तेमाल संभव हो सका है। इसके परीक्षण में देखा गया है कि जिन विंड टरबाइन में ब्लेड की पोजीशन स्थिर है उनके मुकाबले हमारे नवाचार से टरबाइन की कार्यक्षमता में 42 प्रतिशत तक सुधार हुआ है।



आकार में छोटे और प्रयोग में आसान ढांचा होने की वजह से इस वीएडब्ल्यूटी को गांव और शहर दोनों इलाकों में बिल्डिंग की छतों पर लगाया जा सकता है। इसे सौर ऊर्जा सिस्टम से जोड़कर रात और दिन दोनों में बिजली प्राप्त की जा सकती है। नदी के किनारों , शहर की कालोनियाें में जहां हवा की दिशा और गति में तेजी से बदलाव होता है। वहां ऊर्ध्व धुरी विंड टरबाइन सबसे बेहतर ऊर्जा निर्माण साधन है। इससे प्रदूषण उत्सर्जन के बगैर ही बिजली पाई जा सकती है। छोटे माडल को अगर शहरों में लोगाें के मकान की छत या ऊंची बिल्डिंग पर लगाया जाए तो 12 मीटर प्रति सेकंड की हवा चलने पर हर रोज एक यूनिट और महीने में 60 यूनिट बिजली तैयार की जा सकती है। विंड टरबाइन के इस माडल को भारत सरकार का पेटेंट भी मिल चुका है।



आइआइटी के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग और सस्टेनबल एनर्जी इंजीनियरिंग के प्रो. देबोपम दास के नेतृत्व में शिवम शिरभाते और सिद्धार्थ ने यह विंड टरबाइन माडल तैयार किया है। ऊर्ध्व धुरी वाली विंड टरबाइन (वीएडब्ल्यूटी) का यह नया डिज़ाइन से विंड एनर्जी यानी वायु ऊर्जा के इस्तेमाल करने का पारंपरिक तरीका बदला जा सकता है। अभी तक विंड टरबाइन का प्रयोग बड़े स्तर पर बिजली उत्पादन के लिए किया जाता है लेकिन इस माडल की मदद से घरों, कार्यालयाें और शहरों के उन इलाकों से विंड एनर्जी पाई जा सकेगी जहां इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है।



आइआइटी कानपुर के शोधार्थी शिवम शिरभाते ने बताया कि इस डिज़ाइन की सबसे बड़ी विशेषता इसका अनोखा पिच - कंट्रोल मैकेनिज्म है। जो टरबाइन ब्लेड की उपयोगिता को सर्वाधिक स्तर पर पहुंचा देता है। टरबाइन ब्लेड को आटोमैटिकली एडजस्ट करने की विशेषता ऐसी है जिसमें हवा की बेहद धीमी गति पर टरबाइन ब्लेड घूमने लगता है। हवा की दिशा के अनुरूप यह ब्लेड अपने आप पोजीशन में भी बदलाव कर सकते हैं। इससे हवा की शक्ति का भरपूर इस्तेमाल संभव हो सका है। इसके परीक्षण में देखा गया है कि जिन विंड टरबाइन में ब्लेड की पोजीशन स्थिर है उनके मुकाबले हमारे नवाचार से टरबाइन की कार्यक्षमता में 42 प्रतिशत तक सुधार हुआ है।



आकार में छोटे और प्रयोग में आसान ढांचा होने की वजह से इस वीएडब्ल्यूटी को गांव और शहर दोनों इलाकों में बिल्डिंग की छतों पर लगाया जा सकता है। इसे सौर ऊर्जा सिस्टम से जोड़कर रात और दिन दोनों में बिजली प्राप्त की जा सकती है। नदी के किनारों , शहर की कालोनियाें में जहां हवा की दिशा और गति में तेजी से बदलाव होता है। वहां ऊर्ध्व धुरी विंड टरबाइन सबसे बेहतर ऊर्जा निर्माण साधन है। इससे प्रदूषण उत्सर्जन के बगैर ही बिजली पाई जा सकती है। छोटे माडल को अगर शहरों में लोगाें के मकान की छत या ऊंची बिल्डिंग पर लगाया जाए तो 12 मीटर प्रति सेकंड की हवा चलने पर हर रोज एक यूनिट और महीने में 60 यूनिट बिजली तैयार की जा सकती है। विंड टरबाइन के इस माडल को भारत सरकार का पेटेंट भी मिल चुका है।
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