काशी में सिर्फ रक्षाबंधन से दीवाली तक वाले त्योहार देते हैं लगभग 5000 करोड़ से अधिक का कारोबार

Chikheang 2025-10-3 23:36:32 views 1252
  त्योहार न केवल संस्कृति का संरक्षण करते हैं, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करते हैं।





मुकेश चंद्र श्रीवास्तव, वाराणसी। स्वदेशी वस्तुओं के अपनाने की ललक सबसे अधिक विगत वर्ष गलवन घाटी में भारतीय व चीनी सेना के बीच उपजे विवाद के बाद पैदा हुई थी। उसी समय से लोगों में गुस्सा घर कर लिया। इसके कारण काशी की ही बात की जाए तो काफी हद तक चीनी खिलौने, पिचकारी के साथ ही अन्य की मांग घट गए। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

चीनी रेशम पर से भी निर्भरता घटी। बाजार में अब स्वदेशी आइटम भरे हैं। इस बीच विगत माह अमेरिकी राष्ट्रपति ने 50 प्रतिशत टैरिफ लगा दी। इसके कारण भारतीय लोगों का स्वदेशी के प्रति झुकाव और बढ़ गया है। आम से खास तक व व्यापारी भी स्वदेशी अपनाने का संकल्प ले रहे हैं। इसका असर तीज-त्योहारों में भी दिखने लगा है। हमारे पर्व, त्योहार या अन्य उत्साह केवल धर्म ही नहीं बल्कि हमारी अर्थव्यवस्था के इंजन भी बन गए है।



सिर्फ रक्षा बंधन से दीवाली तक वाले त्योहारों को ही लिया जाए तो काशी में ये लगभग 5000 करोड़ से अधिक का कारोबार दे देते हैं। इसमें हमारे स्थानीय यानी स्वदेशी उत्पाद बनारसी साड़ी, अन्य वस्त्र, लकड़ी के खिलौने, गुलाबी मीनाकार, कालीन आदि का भी बड़ा योगदान। वैसे भी विभिन्न मंचों पर प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री द्वारा अक्सर ही काशी के उत्पादों को बढ़ावा दिए जाने के लिए ब्रांडिंग की जाती रही है। इसके कारण इन उद्योगों में बढ़ावा ही हुआ है।



भारतीय समाज में ‘संस्कृति और अर्थव्यवस्था का संगम’ हैं तीज-तयोहार

भारतीय समाज में तीज-त्योहार केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं हैं, बल्कि स्वदेशी के जीवंत उदाहरण और अर्थव्यवस्था को गति देने वाले अदृश्य इंजन भी हैं। सावन से लेकर दीपावली तक वाराणसी जैसे सांस्कृतिक-आध्यात्मिक नगरों में बाजारों की रौनक चरम पर होती है। पूजा-सामग्री, वस्त्र, सजावटी वस्तुएं, मिठाई, खिलौने, पटाखे और एमएसएमई उत्पादों की खपत बढ़ जाती है। ये न केवल संस्कृति का संरक्षण करते हैं बल्कि स्थानीय उत्पादन, एमएसएमई और छोटे व्यापारियों को जीवन भी देते हैं। इस प्रकार, तीज-त्योहार भारतीय समाज में ‘संस्कृति और अर्थव्यवस्था का संगम’ हैं।





पर्व में बाजार का भी त्योहार

सावन और हरियाली तीज के अवसर पर काशी में महिलाएं चूड़ियां, साड़ियां, मेहंदी और विभिन्न श्रृंगार-सामग्री की ख़रीदारी पर विशेष रूप से खर्च करती हैं, जिससे प्रति परिवार औसतन तीन से पांच हज़ार रुपये तक का व्यय होता है। इसके बाद रक्षाबंधन पर राखी, मिठाई और उपहारों का औसत खर्च प्रति परिवार ढाई से चार हजार रुपये तक पहुंचता है, और इस समय केवल वाराणसी में ही राखी व मिठाई का व्यापार लगभग 150 से 200 करोड़ रुपये तक हो जाता है।



जन्माष्टमी पर भी आर्थिक गतिविधि विशेष रूप से तेज़ हो जाती है, जब मूर्तियां, खिलौने, दूध-घी और प्रसाद सामग्री की खरीदारी से लगभग 80 से 100 करोड़ रुपये का व्यापार होता है। नवरात्रि और दुर्गापूजा के अवसर पर मूर्तिकारों, पंडाल-निर्माण, साड़ी-बाज़ार और सजावटी वस्तुओं से कुल मिलाकर लगभग 500 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। वहीं, दीपावली वाराणसी के लिए सबसे बड़ा पर्वीय व्यापारिक अवसर मानी जाती है, जहां पटाखों, मिठाई, इलेक्ट्रॉनिक्स और कपड़ों को मिलाकर अनुमानित 2,500 से 3,000 करोड़ रुपये तक का टर्नओवर दर्ज किया जाता है।



पर्व आधारित अर्थव्यवस्था की संरचना

पूजा सामग्री जैसे अगरबत्ती, दीया, फूल और मूर्तियां मुख्यतः स्थानीय कारीगरों तथा एमएसएमई इकाइयों से आती हैं और त्योहारी मांग को पूरा करती हैं। वस्त्र और सजावटी वस्तुओं में विशेष रूप से वाराणसी का साड़ी उद्योग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसका सालाना कारोबार लगभग 10,000 करोड़ रुपये का है और त्योहारी सीज़न में इसमें 20 से 25 प्रतिशत तक अतिरिक्त बिक्री दर्ज की जाती है। मिठाई और खाद्य पदार्थों की खपत भी इसी समय तेज हो जाती है, केवल दीपावली पर ही लगभग 300 से 400 टन मिठाई की खपत होती है। इसके साथ ही खिलौनों और पटाखों का व्यापार भी बनारस की गलियों और चौराहों पर छोटे दुकानदारों के माध्यम से फलता-फूलता है, जिससे लगभग 200 से 300 करोड़ रुपये तक का कारोबार हो जाता है।



एमएसएमई और स्थानीय उत्पादों की मांग

त्योहारों के समय उपभोग और मांग चरम पर होती है, जिससे छोटे दुकानदार और स्थानीय बाज़ार सक्रिय रहते हैं। वाराणसी में पंजीकृत 40,000 से अधिक एमएसएमई इकाइयां (साड़ी उद्योग, बुनकर, खिलौना, काष्ठकला, धातुकला) त्योहारी सीज़न में आर्डर दोगुने पाती हैं। आनलाइन प्लेटफार्म पर वाराणसी की साड़ियों, लकड़ी के खिलौनों और पीतल के दीपकों की मांग अंतरराष्ट्रीय बाज़ार तक पहुंचती है। “मेक इन इंडिया” और “वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट (ओडीओपी)” योजनाओं के कारण, त्योहारी समय में निर्यात आर्डर भी बढ़ते हैं।



स्वदेशी अर्थव्यवस्था को संबल भी देते हैं हमारे त्योहार

वाराणसी का अनुभव यह दर्शाता है कि तीज-त्योहार भारतीय अर्थव्यवस्था में सीजनल डिमांड इंजन की भूमिका निभाते हैं। 4,000–5,000 करोड़ रुपये का कारोबार, एमएसएमई का उत्थान और छोटे दुकानदारों की आजीविका इससे जुड़ी है। त्योहार भारतीय समाज में आस्था के साथ-साथ आर्थिक प्रवाह भी सुनिश्चित करते हैं। ये उपभोग, उत्पादन और रोजगार को सीधा जोड़ते हैं। तीज-त्योहार न केवल संस्कृति, बल्कि बाज़ार को भी बचाते हैं। भारतीय उपभोक्ता मानसून के बाद खेत-खलिहान से लेकर शहर के बाजार तक त्योहारी खर्च से मांग पैदा करता है। यही मांग एमएसएमई को जीवित रखती है और स्थानीय रोजगार बढ़ाती है। वाराणसी के तीज-त्योहार ‘स्वदेशी’ के जीवित प्रतीक हैं। यहां संस्कृति और अर्थव्यवस्था दोनों मिलकर यह संदेश देते हैं, ‘त्योहार मनाना सिर्फ धर्म का पालन नहीं, बल्कि स्वदेशी अर्थव्यवस्था को संबल देना भी है’। - प्रो. अनूप कुमार मिश्र, विभागाध्यक्ष, अर्थशास्त्र विभाग, डीएवी पीजी कालेज।



पर्व प्रति परिवार व्यय अनुमानित टर्नओवर

सावन व तीज 3000-500, रुपये 300 करोड़

रक्षा बंधन 2500-4000 रुपये 180 करोड़

जन्माष्टमी 2000-3500 रुपये 100 करोड़

नवरात्र 5000-8000 रुपये 6000 करोड़

दीपावली 8000-15000 रुपये 4000 करोड़

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