कहानी गहनों की: मुगलों के काल से लेकर आज तक कायम है जड़ाऊ जूलरी का जादू, दिलचस्प है इसे बनाने की कला

LHC0088 2025-11-28 14:37:14 views 711
  

कैसे बनाई जाती है जड़ाऊ जूलरी?



लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। भारत में आपको एक नहीं कई तरह के गहनों के प्रकार मिल जाएंगे। इन्हीं में गहनों का एक बेहद खास प्रकार है जड़ाऊ जूलरी। भारत की पारंपरिक जूलरी में जड़ाऊ जूलरी (Jadau Jewellery) एक बेहद खास और विरासत वाली कला मानी जाती है। इसकी खूबसूरती, शिल्पकला और राजसी आभा इसे सदियों से दुल्हनों और जूलरी प्रेमियों की पहली पसंद बनाए है।  विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

लेकिन जड़ाऊ जूलरी को इतना अनोखा क्या बनाता है? इसका इतिहास (Jadau Jewellery History) क्या है, इसे कैसे बनाया जाता है और असली जड़ाऊ जूलरी की पहचान कैसे की जाए, ऐसे ही कई सवालों के जवाब हम इस स्पेशल सीरिज कहानी गहनों की में देने वाले हैं। आइए जानें इस बारे में।
जड़ाऊ जूलरी क्या होती है?

जड़ाऊ जूलरी एक प्राचीन भारतीय तकनीक है, जिसमें सोने (अधिकतर 22K या 24K) को एक फ्रेम की तरह तैयार किया जाता है और उसमें पोल्की, मोती, पन्ना, रूबी जैसे रत्नों को बिना किसी गोंद या आधुनिक सोल्डरिंग के जड़ा जाता है। इस जूलरी में कुंदन, पोल्की और मीनाकारी वर्क का खूबसूरत मेल देखने को मिलता है। हर जड़ाऊ पीस पूरी तरह हाथ से बनाया जाता है, इसी वजह से कोई भी दो पीस एक जैसे कभी नहीं होते।

  

(Picture Courtesy: Instagram)
जड़ाऊ जूलरी का इतिहास

जड़ाऊ कला की शुरुआत भारत में मुगल काल के दौरान हुई। मुगलों ने इस कला को भारत में परिचित कराया, लेकिन इसे ऊंचाई तक पहुंचाया राजस्थान के कारीगरों और गुजरात के शिल्पियों ने। इन दोनों राज्यों के कारीगरों ने इसे इतना रिफाइन किया कि आज भी ये क्षेत्र जड़ाऊ जूलरी के सबसे बड़े केंद्र माने जाते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी यह कला आगे बढ़ती रही है और आज भी शादियों, त्योहारों और खास मौकों पर सबसे लोकप्रिय पारंपरिक जूलरी मानी जाती है।
जड़ाऊ शब्द का मतलब क्या होता है?

‘जड़ाऊ’ शब्द हिंदी के ‘जड़’ से बना है, जिसका सीधा मतलब है रत्नों को सोने में जड़ना। यह नाम इसके बनाने की तकनीक को पूरी तरह परिभाषित करता है, जिसमें रत्नों को गर्म किए गए मुलायम सोने में हाथ से दबाकर फिट किया जाता है।

  

(Picture Courtesy: Instagram)
जड़ाऊ जूलरी कैसे बनाई जाती है?

जड़ाऊ जूलरी का निर्माण एक लंबी और बेहद महीन प्रक्रिया है, जिसमें अलग-अलग विशेषज्ञ कारीगर मिलकर काम करते हैं। इसे बनाने के मुख्य चरण इस प्रकार हैं-
बेस तैयार करना-

सबसे पहले शुद्ध 22K/24K सोने का एक फ्रेम बनाया जाता है। इसे घात कहते हैं। इसी फ्रेम पर आगे रत्न जड़े जाते हैं। यह काम चितेरिया कारीगरों द्वारा डिजाइन किया जाता है।
रत्न जड़ना-

सोने को हल्का गर्म करके मुलायम किया जाता है और फिर उसमें पोल्की, पन्ना, रूबी और मोती जैसे रत्नों को हाथ से दबाकर जड़ा जाता है। इस प्रक्रिया को जड़ाई कहा जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में कोई गोंद, क्लॉ या मॉडर्न सोल्डरिंग का इस्तेमाल नहीं होता। यह काम घारिया करते हैं।
मीना वर्क-

जड़ाऊ जूलरी की खासियत यह है कि इसके पीछे की तरफ भी खूबसूरत रंगीन मीनाकारी की जाती है। फूल-पत्तियों, ज्योमेट्रिक पैटर्न और राजस्थानी मोटिफ से इसे सजाया जाता है। इस प्रक्रिया को मीनाकारी कहा जाता है।
फिनिशिंग-

इसका सबसे आखिरी स्टेज होता है खिलाना और पकाई। इसमें जूलरी को पॉलिश कर उसके रंग, चमक और शाइन को उभारा जाता है। इस तरह एक पीस न सिर्फ फ्रंट से बल्कि बैक से भी रॉयल तरीके से बनकर तैयार होता है।
एक जड़ाऊ जूलरी पीस बनाने में कितना समय लगता है?

जड़ाऊ जूलरी बनाने में समय पीस के आकार और डिजाइन पर निर्भर करता है। छोटा पीस लगभग 2 से 7 दिनों में बन जाता है। किसी मध्यम डिजाइन में कुछ हफ्तों का समय लग सकता है। वहीं भारी ब्राइडल सेट या हैवी नेकलेस को बनाने में 2 से 3 महीने या उससे भी ज्यादा समय लग जाता है। इन जूलरी को बनाने का एक-एक स्टेप कारीगर अपने हाथों से बनाते हैं और यह बड़ी ही बारीकी का काम होता है। इसलिए इसे बनाने में काफी समय लगता है और यह भी एक कारण है कि इनकी कीमत इतनी ज्यादा होती है।

  

(Picture Courtesy: Instagram)
जड़ाऊ जूलरी इतनी महंगी क्यों होती है?

यह भारत की सबसे पुरानी और पारंपरिक जूलरी कला है। इसका इतिहास मुगलों के शाही घरानों से जुड़ा है, जो इसे अपने-आप में शाही बनाता है। इसके अलावा, जड़ाऊ जूलरी का हर पीस पूरी तरह हैंडमेड होता है। इन्हें बनाने में  22K–24K शुद्ध सोने का इस्तेमाल किया जाता है और इसके साथ कई बेशकीमती रत्नों का इस्तेमाल किया जाता है, जो इसे और मूल्यवान बनाता है। कोई भी जड़ाऊ पीस एक जैसा नहीं होता।  
असली जड़ाऊ जूलरी की पहचान कैसे करें?

जड़ाऊ जूलरी खरीदते समय इन बातों का ध्यान रखें-

  • सोने की शुद्धता जांचें- असली जड़ाऊ जूलरी हमेशा 22K या 24K सोने में बनाई जाती है। सोने के कम कैरेट का मतलब है यह असली जड़ाऊ नहीं।
  • मीनाकारी की खूबसूरती देखें- पीछे की तरफ सुंदर मीनाकारी होना असली जड़ाऊ की खास निशानी है।
  • रत्न जड़े हुए हों, चिपके नहीं- असली जड़ाऊ में रत्न सोने में दबाए जाते हैं, उन पर ग्लू या क्लॉ सेटिंग नहीं होती न ही सोल्डरिंग की जाती है।
  • वजन ज्यादा होगा- शुद्ध सोना और असली रत्नों के इस्तेमाल के कारण इन जूलरी का वजन थोड़ा ज्यादा होता है।   
  • विश्वसनीय ज्वैलर से खरीदें- हमेशा जूलरी खरीदने के बाद शुद्धता का प्रमाणपत्र लें।
    (Picture Courtesy: Instagram)   
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