भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (ISRO) के नाम जल्द की एक नई उपलब्धि जुड़ने वाली है। यह ऐसी कामयाबी है, जिसके बाद इस भारतीय संस्थान का नाम दुनिया के दिग्गजों में शामिल हो सकता है। 15 दिसंबर 2025 को भारत अमेरिका की एक सैटेलाइट को अंतरिक्ष में रवाना करने में मदद करेगा। भारतीय रॉकेट इस अमेरिकी सैटेलाइट को अंतरिक्ष में लेकर जाएगा।
इसरो 15 दिसंबर को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से 6.5 टन वजन वाला अमेरिकी सैटेलाइट ब्लूबर्ड-6 लॉन्च करेगा। इसे इसरो के सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (LVM3) हेवी-लिफ्ट लॉन्च व्हीकल से लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में भेजा जाएगा। यह इसरो के लिए एक ऐतिहासिक कमर्शियल मिशन होगा। एलवीएम3 को इसरो का ‘बाहुबलि’ रॉकेट भी कहा जाता है। इससे पहले, एलवीएम3 की मदद से 2 नवंबर को 4.4 टन वजनी भारत के सबसे भारी सीएमएस-03 सैटेलाइट को लॉन्च किया गया था।
अमेरिकी सैटेलाइट ब्लूबर्ड-6 को स्पेस-बेस्ड सेलुलर ब्रॉडबैंड नेटवर्क बना रही टेक्सास की कंपनी एएसटी स्पेस मोबाइल इंक ने डेवलप किया है। ब्लूबर्ड-6 को 19 अक्टूबर को अमेरिका से भारत भेजा गया था। इसके बाद इसे लॉन्च की तैयारियों के लिए श्रीहरिकोटा ले जाया गया, जिसमें फाइनल इंस्पेक्शन, फ्यूलिंग और एलवीएम3 लॉन्चर के साथ इंटीग्रेशन शामिल था। एक बार डिप्लॉय होने के बाद, ब्लूबर्ड-6 लो अर्थ ऑर्बिट में सबसे बड़ा कमर्शियल फेज्ड-एरे एंटीना होस्ट करेगा, जो लगभग 2,400 स्क्वायर फीट में फैला होगा। यह ब्लूबर्ड-1-5 के आकार से तीन गुना से भी ज्यादा है। इसकी डाटा क्षमता लगभग 10 गुना अधिक होगी। इसका मुख्य मकसद विश्व में इंटरनेट की समस्या को घटनाने में मदद करना है। इसके जरिए दूर-दराज और कम सुविधाओं वाले इलाकों में आम मोबाइल फोन पर सीधे हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड देने का प्रयास किया जाएगा।
वहीं, 640 टन के लिफ्ट-ऑफ मास वाला एलवीएम3 रॉकेट, तीन स्टेज वाला, 45.5 मीटर ऊंचा लॉन्च व्हीकल है जो लो अर्थ ऑर्बिट में 8,000 किलोग्राम तक और जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में 4,000 किलोग्राम तक का पेलोड ले जा सकता है। लॉन्च की देखरेख न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) करेगी, जो इसरो की व्यावसायिक ब्रांच है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लॉन्च सेवाओं की मार्केटिंग और सैटेलाइट कॉन्ट्रैक्ट्स से आय स्रजन करने के लिए जिम्मेदार है।
इससे पहले इसरो और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने जुलाई में संयुक्त परियोजना, नासा-इसरो ‘सथेटिक अपर्चर रडार (निसार) सेटेलाइट को लांच किया था। 1.5 अरब डालर की लागत वाला यह मिशन पृथ्वी की सतह की निगरानी में अभूतपूर्व बदलाव लाने वाला है। निसार हर 12 दिनों पर पूरी पृथ्वी की जमीन और बर्फीली सतहों को स्कैन करेगा। यह एक सेंटीमीटर स्तर तक की सटीक फोटो खींचने और प्रसारित करने में सक्षम है। इसमें नासा की तरफ से तैयार एल-बैंड और इसरो द्वारा विकसित एस-बैंड रडार लगाया गया है जिन्हें विश्व में सबसे उन्नत माना जा रहा है। यह तकनीक प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी विस्फोट, भूस्खलन व बाढ़ की रीयल-टाइम निगरानी में मदद करेगा।
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