जम्मू-कश्मीर में सालों से न्याय और सहारे का इंतजार कर रहे आतंक पीड़ित परिवारों के लिए शुक्रवार का दिन उम्मीद की नई किरण बनकर आया। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कश्मीर डिवीजन में आतंकवाद से प्रभावित 39 परिवारों के परिजनों ‘नेक्स्ट ऑफ किन्न’ (NoKs) को नियुक्ति पत्र सौंपे। इन परिवारों के लिए आज इंसाफ के लंबे इंतजार का अंत हुआ है। इस मौके पर एलजी मनोज सिन्हा ने कहा कि सरकार ने पुनर्वास के लिए ठोस कदम उठाए हैं, ताकि इन परिवारों को सम्मान मिले और सिस्टम पर उनका भरोसा फिर से कायम हो सके। उन्होंने कहा कि आतंकवाद ने सिर्फ लोगों की जान ही नहीं ली, बल्कि पूरे-के-पूरे परिवारों को तोड़ दिया। कई बेगुनाह घर दशकों तक चुप्पी, बदनामी और गरीबी में जीने को मजबूर हो गए। हर आतंकी हत्या के पीछे एक ऐसा परिवार होता है जो कभी पूरी तरह संभल नहीं पाता और ऐसे बच्चे होते हैं जो माता-पिता के बिना बड़े होते हैं।
आतंक पीड़ितों के 41 परिजनों को एलजी ने सौंपे नियुक्ति पत्र
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने माना कि लंबे समय तक सिस्टम ने इन परिवारों के दर्द को नजरअंदाज किया। आतंकवाद के असली पीड़ितों और सच्चे शहीदों को आतंकी नेटवर्क से जुड़े लोगों ने परेशान किया। उन्होंने कहा कि एक तरफ ओवर ग्राउंड वर्कर्स (OGWs) को सरकारी नौकरियां दी गईं, जबकि दूसरी तरफ आतंकवाद पीड़ित परिवारों के परिजनों को अपने हाल पर छोड़ दिया गया। उन्होंने आगे कहा कि पीढ़ियों से इन मामलों को वह प्राथमिकता नहीं मिली, जिसके ये परिवार हकदार थे। अब सरकार पीड़ितों की आवाज़ को मज़बूत कर रही है और यह सुनिश्चित कर रही है कि उन्हें उनके पूरे अधिकार और सम्मान मिलें। साथ ही, अपराधियों को जल्दी और सही सज़ा दिलाने के लिए भी सरकार पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
आतंकियों को सख्त संदेश
लेफ्टिनेंट गवर्नर ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई सिर्फ सरकार की नहीं, बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी है। हमें एकजुट होकर, धैर्य और मजबूत इरादों के साथ इस बुराई से लड़ना होगा और दुश्मनों की हर साजिश को नाकाम करना होगा। आतंकवाद को लेकर सरकार की नीति बिल्कुल साफ है। आतंकवाद के किसी भी रूप को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। जम्मू-कश्मीर को आतंकवाद से मुक्त बनाने के लिए सरकार हर उपलब्ध संसाधन और हर ज़रूरी तरीका अपनाएगी। जो लोग आतंकवादियों को पनाह देते हैं, छिपने की जगह देते हैं या किसी भी तरह की मदद करते हैं, उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।
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20 साल पुराने जख्मों को मिला मरहम
आतंकवादियों की हर बेरहमी से की गई हत्या के पीछे एक ऐसे परिवार की दर्दभरी कहानी होती है, जो कभी पूरी तरह संभल नहीं पाता। कई बच्चे ऐसे हैं जो माता-पिता के बिना बड़े हुए। अनंतनाग की रहने वाली पाकीजा रियाज, जिनके पिता रियाज अहमद मीर को 1999 में आतंकियों ने मार दिया था, और श्रीनगर के हैदरपोरा की शाइस्ता, जिनके पिता अब्दुल रशीद गनई की 2000 में हत्या हुई थी, अब उन्हें सरकारी नौकरी के नियुक्ति पत्र मिल गए हैं। इससे उनकी न्याय और आर्थिक स्थिरता की लंबी प्रतीक्षा आखिरकार खत्म हो गई है।
बीएसएफ के बहादुर जवान अल्ताफ हुसैन के बेटे इश्तियाक अहमद को भी सरकारी नौकरी मिली है। अल्ताफ हुसैन करीब 19 साल पहले एक आतंकी मुठभेड़ में शहीद हुए थे। इस नौकरी से उस परिवार को सहारा मिला है, जिसने अपने पिता के बलिदान के बाद कई मुश्किलें झेली हैं। इसी तरह काज़ीगुंड के दिलावर गनी और उनके बेटे फ़ैयाज़ गनी के परिवार को भी आखिरकार इंसाफ़ मिला है। 4 फरवरी 2000 को दोनों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। उस दिन फ़ैयाज़ की छोटी बेटी फोजी ने अपनी ज़िंदगी के दो बड़े सहारे खो दिए। जिस घर में कभी प्यार और हंसी होती थी, वह अचानक खामोशी, डर और दुख से भर गया, और परिवार लंबे समय तक उसी दर्द के साथ जीता रहा। |
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