राकेट ले जाने के लिए केवल साइकिल थी कल...आज एयरक्राफ्ट भी हैं, प्रेरणा लेना चाहें तो इसरो के पास आएं

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केएल इंटरनेशनल में चल रही विक्रम साराभाई अंतरिक्ष प्रदर्शनी में इसरो यान के बारे में जानकारी देते वैज्ञानिक परेश व राहुल गर्ग । जागरण



जागरण संवाददाता, मेरठ। खगोल विज्ञान में भले ही सभी की रुचि न हो, लेकिन खगोलीय दुनिया के रहस्य, रोमांच और उपलब्धियां सभी को आकर्षित करती ही हैं और जोड़ती भी हैं। इसीलिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान यानी इसरो की ओर से देश की नई पीढ़ी से जुड़ने और उन्हें जोड़ने की विशेष पहल विक्रम साराभाई अंतरिक्ष प्रदर्शनी के जरिए चलाई जा रही है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

मेरठ में पहली बार केएल इंटरनेशनल स्कूल में तीन दिवसीय अंतरिक्ष प्रदर्शनी चल रही है। इसरो के वैज्ञानिकों और तकनीकी विशेषज्ञों की टीम में मेरठ में दिल्ली रोड पर दिल्ली चुंगी के निकट वीर नगर के रहने वाले राहुल गर्ग भी पहुंचे हैं।

कानपुर विश्वविद्यालय के मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक के बाद सीसीएसयू परिसर स्थित सर छोटूराम इंस्टीट्यूट आफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलाजी में दो वर्ष लेक्चरर पद पर सेवाएं भी दीं। अब इसरो के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर की दिल्ली शाखा में कार्यरत हैं। पेश है दैनिक जागरण के डिप्टी चीफ रिपोर्ट अमित तिवारी से उनकी बातचीत के प्रमुख अंश...

  

मेरठ से निकलकर इसरो के जरिए देश सेवा से जुड़ने के सफर के बारे में बताएं?
मैं वर्तमान में स्पेस एप्लीकेशन सेंटर के दिल्ली भू-केंद्र में कार्यरत हूं। मैंने कानपुर विश्वविद्यालय से बीटेक मैकेनिकल इंजीनियर्स से करने के बाद मेरा इसरो के राकेट्री क्वालिटी एस्सुरेंस डिवीजन में राकेट्री इंजीनियर के पद पर चयन हुआ। वहां से इसरो का सफर शुरू होने के बाद अहमदाबाद में स्पेस क्राफ्ट एनलिसिस विंग में पहुंचा। 19 वर्षों का करियर रहा है। वर्तमान में इलेक्ट्रानिक्स डिवीजन दिल्ली भू-केंद्र में मैकेनिकल आस्पेक्ट्स आफ ग्राउंड एंटीना देख रहा हूं। इसमें इंस्टालेशन, मेंटनेंस, ग्राउंड सेग्मेंट का इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट करने का कार्य देख रहा हूं।

इसरो की ओर से आयोजित इस विक्रम साराभाई अंतरिक्ष प्रदर्शनी में आप लोगों को युवाओं में किस तरह की प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है?
इसरो के जरिए हम युवा पीढ़ी व भविष्य के विज्ञानियों को जोड़ रहे हैं। इसमें इसरो के शुरुआती दिनों के संघर्ष से लेकर वर्तमान वैश्विक सफलतम अभियानों तक की जानकारी दे रहे हैं। इसरो का सफर बहुत ही प्रेरणादायक रहा है। जब इसरो के पास राकेट ले जाने के लिए केवल साइकिल हुआ करती थी। इस प्रदर्शनी में राकेट्री, स्पेस क्राप्ट, इंटर प्लानेटरी मिशन में मंगलयान व चंद्रयान के बारे में बताया जा रहा है। मेरठ से भी यदि युवा प्रेरित होकर इसरो तक पहुंचते हैं तो हमारा प्रयास सफल मानेंगे। प्रदर्शनी में उत्सुकता बहुत अधिक देखने को मिल रही है। अलग-अलग क्षेत्र से प्रश्न भी पूछ रहे हें।

खगोल विज्ञान या इसरो में करियर बनाने वाले युवाओं को अपनी तैयारी किस समय और कैसे शुरू करनी चाहिए?
इसरो में हर स्ट्रीम में पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी पहुंच सकते हैं। यह जरूरी नहीं है कि वह साइंस बैकग्राउंड का है तभी इसरो में चयन हो सकता है। संगठन के तौर पर इसरो में काम करने के लिए सभी को अवसर मिलता है। इसमें एडमिनिस्ट्रेशन सहित अन्य विभागों में अवसर हैं। विज्ञान वर्ग के विद्यार्थियों के लिए यहां पर हर तरह के वैज्ञानिक की जरूरत है। वह मैकेनिकल इंजीनियरिंग, एयरोनाटिक्स, इलेक्ट्रोनाटिक्स आदि से हो सकते हैं।

इसरो की सफलताओं का सफर कैसा रहा है अब तक का?
इसरो में साउंडिंग राकेट से शुरुआत हुई जिसका उद्देश्य केवल अपर एटमास्फेयर तक पहुंच जाना और स्टडी करना था। वहां से लेकिर चंद्रयान के जरिए चंद्रमा पर लैंडिंग की है। यह हमारे संघर्षमय सफर और उससे मिली सफलता को दर्शाता है। अब निकट भविष्य में देश के पहले मून मिशन गगनयान की तैयारियां चल रही हैं। इसके साथ ही चंद्रयान-4 व गगनयान पर कार्य तेजी से चल रहा है। इसके अलावा नई पीढ़ी के राकेट बन रहे हैं जिसमें रियूजेबल लांच व्हीकल, मार्क-3 का अगला वर्जन जो गगनयान को लेकर जाएगा। उसका नाम इसके साथ ही आदित्य एल-1 के जरिए सौर ग्रह के वातावरण को स्टडी करने की कोशिश की जा रही है।

इस क्षेत्र में करियर बनाने की इच्छा रखने वाले युवाओं के लिए क्या महत्वपूर्ण हैं?
जिस तरह मैंने बीटेक मैकेनिकल कर इसरो का सेंट्रलाइज्ड रिक्रूटमेंट एग्जाम दिया। लिखित परीक्षा के बार वैज्ञानिकों की टीम ने साक्षात्कार लिया। उसके बाद अंतिम चयन हुआ। इसके वैकेंसी की जानकारी समय-समय पर प्रसारित की जाती है। यह सरकारी उपक्रम है और यहां भी 60 वर्ष ही सेवानिवृत्ति होती है। विक्रम साराभााई, अब्दुल कलाम जैसे विद्वान वैज्ञानिकों से लेकर वर्तमान निदेशक नीलेश देशाई तक ने इसरो की उपलब्धियों में योगदान दिया है। देश के लिए वही योदान देने का जज्बा होने पर यह सफर आसार आसान हो जाता है।

इसरो की सैटेलाइट्स से देश को किन-किन क्षेत्रों में लाभ मिल रहा है?
खगोल विज्ञान की उपलब्धियों के अलावा कम्यूनिकेशन के क्षेत्र में इसरो का बहुत योगदान है। सभी डीटीएच सेवाएं उसी के जरिए चल रही हैं। इसके अलावा भुवन, निसार आदि सैटेलाइट, फिशरीज के लिए एक सैटेलाइट है, इसी तरह तमाम सेवाओं के लिए इसरो का योगदान देश के विभिन्न क्षेत्रों में मिल रहा है।

आप खुद भी मेरठ के हैं तो यहां के युवाओं को क्या मार्गदर्शन देना चाहेंगे?
जिन युवाओं को खगोलीय घटनाक्रमों में रुचि हैं, वे इसरो की वेबसाइट जरूर देखें। वेबसाइट पर इसरों के सभी लांचिंग व्हीकल, तमाम मिशन के बारे में पूरा विवरण दिया गया है। वीडियो भी देखने को मिल सकता है। इसके साथ ही भविष्य के मिशनों की जानकारी भी दी गई है। इसके अलावा इस प्रदर्शनी की तरह हम लोग विद्यार्थियों के बीच पहुंचकर उन्हें जानकारी दे रहे हैं।
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