ग्रेप-4 लागू, फिर भी गाजियाबाद में धड़ल्ले से बिक रहा कोयला; शहर से देहात तक कोयले की दुकानें चालू

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डासना गेट के पास रमतेराम रोड के पास दुकानों में बिक रहा कोयला। जागरण



अभिषेक सिंह, गाजियाबाद। जिले में प्रदूषण की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है, लेकिन इसको रोकने के लिए अधिकारी गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं। शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 500 से अधिक दुकानों पर कोयले की बिक्री जारी है, जबकि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए ग्रेप का चौथा चरण लागू हो चुका है। कोयले के उपयोग पर प्रतिबंध ग्रेप के दूसरे चरण से ही लागू होता है। कोयले की बिक्री पर रोक लगाने की जिम्मेदारी खाद्य सुरक्षा विभाग और नगर निकायों की है, जबकि निगरानी का कार्य यूपीपीसीबी द्वारा किया जाता है। इसके बावजूद कोयले की दुकानों को बंद कराने में लापरवाही बरती जा रही है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
तीन लाख क्विंटल से अधिक कोयले की बिक्री

दुकानदारों के अनुसार, गाजियाबाद में दिल्ली के नरेला से ट्रक के माध्यम से कोयला पहुंचता है। एक दुकान पर औसतन 600 क्विंटल कोयले की सालाना बिक्री होती है, जिससे जिले के 500 दुकानों से साल में तीन लाख क्विंटल से अधिक कोयले की बिक्री होती है। वैवाहिक सीजन में कोयले की मांग में वृद्धि होती है और वर्तमान में कोयले की कीमत 40-50 रुपये प्रति किलो है।

बाजार में चार प्रकार के कोयले (हार्ड कोक, स्टीम कोक, चारकोल कोक और केमिकल कोक) बेचे जा रहे हैं। कोयले का उपयोग तंदूर, कपड़ों को प्रेस करने, ग्रीन पेस्टिसाइड, स्याही, कार्बन पेपर और पेंसिल बनाने में किया जाता है। कविनगर इंडस्ट्रियल एरिया एसोसिएशन के अध्यक्ष अरुण शर्मा ने बताया कि जिले की फैक्ट्रियों में कोयले के उपयोग पर पूरी तरह से रोक लग चुकी है।
रमते राम रोड पर कोयले की बड़ी दुकानें

रमते राम पर रोड पर कोयले की बिक्री की बड़ी दुकानें हैं। यहां से न केवल गाजियाबाद शहर बल्कि ग्रेटर नोएडा के कुछ स्थानों से आकर लोग कोयला खरीदते हैं। यहां पर लकड़ियों की भी बिक्री की जाती है। ट्रांस हिंडन क्षेत्र में चोरी छिपे, तो लोनी में खुलेआम कोयले की बिक्री की जा रही है। लोनी के इंद्रापुरी में दुकानदार ने बताया कि सर्दी बढ़ने से कोयले की बिक्री भी बढ़ी है।
15 प्रतिशत से अधिक घरों में चूल्हे पर पका रहा खाना

जिला पूर्ति विभाग द्वारा प्रत्येक घर में गैस कनेक्शन का दावा किया जाता है, लेकिन जिले के देहात क्षेत्र में 15 प्रतिशत घर ऐसे हैं, जहां चूल्हे पर खाना पकाया जाता है। इसमें लकड़ी और उपले का इस्तेमाल किया जाता है। डिडौली गांव में सात हजार की आबादी है, यहां पर 20 फीसद घर ऐसे हैं, जहां पर चूल्हे का इस्तेमाल किया जाता है। कुछ परिवार ऐसे हैं, जो विशेष आयोजन पर चूल्हे का इस्तेमाल करते हैं। लोनी के बदरपुर गांव में 538 परिवार में 30 अंत्योदय कार्ड धारक है। इस गांव में 15 से अधिक परिवार ऐसे हैं, जो कि उपले व लकड़ी जलाकर खाना पकाते हैं।
दिल्ली-मेरठ रोड पर ढाबों पर कोयले का इस्तेमाल

दिल्ली-मेरठ मार्ग पर मोदीनगर-मुरादनगर में ढाबे व होटल हैं, यहां पर रोटी पकाने के लिए तंदूर में कोयले का इस्तेमाल किया जाता है। तंदूर में लकड़ी का इस्तेमाल न के बराबर है। चाप की दुकानों में भी कोयले का इस्तेमाल किया जाता है।


“जिले में कोयले की बिक्री पर प्रतिबंध नहीं है, लेकिन प्रदूषण के मद्देनजर ग्रेप का दूसरा चरण लागू होने के बाद कोयले के इस्तेमाल पर रोक लग जाती है। कोयले का इस्तेमाल न हो, इसको रोकने की जिम्मेदारी खाद्य सुरक्षा विभाग व नगर निकायों की है। यूपीपीसीबी द्वारा मानिटरिंग की जाती है।“

-अंकित सिंह, क्षेत्रीय अधिकारी, यूपीपीसीबी


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