सीएम नीतीश कुमार। फाइल फोटो
दीनानाथ साहनी, पटना। नीतीश सरकार ने उच्च शिक्षा विभाग का गठन जिस उद्देश्य को लेकर किया है, उस लक्ष्य की प्राप्ति को लेकर नवगठित विभाग तेजी से सक्रिय हो चुका है। सरकार ने उच्च शिक्षण संस्थानों को वैश्विक दृष्टि से समग्रता में सुधार लाने पर जोर दिया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
उच्च शिक्षा में गुणवत्ता व शोध कार्य को बढ़ावा और संस्थागत स्तर पर प्रदर्शन में सुधार तथा रैंकिंग में उछाल लाकर संस्थानों को निखारने की प्राथमिकता तय कर दी है। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु सरकार ने कदम बढ़ाते हुए पांच वर्षीय योजना तैयार करके उसपर शत-प्रतिशत अमल करने का संकल्प लिया है।
उच्च शिक्षा सचिव राजीव रौशन ने बताया कि सरकार ने उच्च शिक्षा में बड़े बदलाव लाने के लिए जो प्राथमिकताएं तय की हैं, उसपर कार्य योजना बनाकर उच्च शिक्षण संस्थानों में तेजी से अमल कराया जाएगा। इस कार्य में सभी उच्च शिक्षण संस्थानों का सहयोग आवश्यक है।
राष्ट्रीय रैकिंग में पिछड़ रहे संस्थानों की होगी सर्जरी
उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मानें तो शिक्षण संस्थानों पर हर साल करीब छह हजार करोड़ रुपये उच्च खर्च हो रहे हैं। फिर भी राष्ट्रीय रैंकिंग में अधिकांश विश्वविद्यालय और अंगीभूत महाविद्यालय पिछड़ते जा रहे हैं।
अब ऐसे विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में व्याप्त खामियों की पड़ताल की जाएगी और फिर जरूरत के हिसाब से सर्जरी भी की जाएगी, संबंधित विश्वविद्यालयों में जिम्मेदार पदाधिकारियों की जवाबदेही तय होगी और सख्ती से कार्रवाई भी।
इसके बिना विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों को निखारने की पहल सफल नहीं हो पाएगी। इसलिए अब कार्य योजना बनाकर विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में सुधार लाने की अहम पहल शुरू की गई है, उनमें इन्हें लेकर अल्पकालिक और दीर्घकालिक योजनाएं बनाई जाएंगी। जिनका उद्देश्य राज्य के तमाम उच्च शिक्षण संस्थानों को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर के विश्वविद्यालयों के मुकाबले खड़ा करना है।
उच्च शिक्षा के सकल नामांकन अनुपात को बढ़ाने पर भी जोर
केंद्र सरकार ने वर्ष 2035 तक देश के उच्च शिक्षा के सकल नामांकन अनुपात (जीइआर) को 50 प्रतिशत तक करने का लक्ष्य तय किया है। यह देश को विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा होने के लिए भी जरूरी है।
इसके मद्देनजर शिक्षा मंत्रालय ने राज्यों को भी उच्च शिक्षा के सकल नामांकन अनुपात को तेजी से बढ़ाने को कहा है। अभी बिहार में उच्च शिक्षा का सकल नामांकन अनुपात 20 प्रतिशत के करीब है, जो राष्ट्रीय लक्ष्य से बहुत कम है।
हालांकि उच्च शिक्षा विभाग ने तमाम विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में नामांकन दर बढ़ाने का निर्देश दिया है, लेकिन इसकी रफ्तार धीमी है। फिर भी सरकार के स्तर से उच्च शिक्षा में नामांकन बढ़ाने पर में जोर दिया जा रहा है।
अब नए-नए पाठ्यक्रम जल्द होंगे शुरू
शिक्षा विभाग का मानना है कि उच्च शिक्षा महकमा का गठन का उद्देश्य ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 (एनईपी) की बाकी पहलों को उच्च शिक्षण संस्थानों में लागू कराना है।
इनमें किसी कोर्स को बीच में बीच में कभी भी छोड़ने और शुरू करने, उद्योगों की मांग के आधार पर नए-नए कोर्सों को शुरू करने, शोध व नवाचार की गतिविधियों को बढ़ाने, रोजगार आधारित पाठ्यक्रम को जोड़ने, एक साथ दो कोर्सों की पढ़ाई करने जैसी पहल शामिल है।
एनईपी के तहत अभी इन पहलों को लागू करने में उच्च शिक्षण संस्थानों ने ज्यादा रुचि नहीं दिखाई है। अब प्रत्येक विश्वविद्यालय और महाविद्यालय को अपनी-अपनी कार्य योजना बनाकर एनईपी की पहलों पर अमल करने को प्राथमिकता देनी होगी।
स्थानीय स्तर पर मांग के आधार पर भी लागू होंगे कोर्स
शिक्षा विभाग से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि सकार की होनेवाली प्लानिंग में उच्च शिक्षण संस्थानों की क्षमता बढ़ाने, साथ ही ऐसे कोर्सों को शुरू जिनकी स्थानीय स्तर पर मांग है। यानी कोई संस्थान यदि ऐसे क्षेत्र में स्थित है, जहां पर्यटन की गतिविधियां ज्यादा हैं, तो उन्हें पर्यटन से जुड़े नए कोर्स डिजाइन करने के सुझाव दिए जा सकते हैं।
इसी तरह जिन क्षेत्रों में कृषि आधारित उद्योग पनपने की संभावना प्रबल है तो उस क्षेत्र के विश्वविद्यालय या उच्च शिक्षण संस्थान एग्रीकल्चर बेस्ड नए कोर्स डिजाइन करने के सुझाव देंगे। इसे लेकर उच्च शिक्षा विभाग प्रत्येक क्षेत्र की मैपिंग भी करायएगी। |