सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अरावली पहाड़ियों को लेकर बहस छिड़ गई है। जागरण ग्राफिक्स
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के हाल के एक फैसले ने अरावली पहाड़ियों को लेकर पर्यावरणविदों और आम जनता के बीच बहस छेड़ दी है। इस फैसले को \“100-मीटर का फैसला\“ कहा जा रहा है, जिसमें यह साफ किया गया है कि अरावली इलाके में 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को अपने आप \“जंगल\“ के तौर पर क्लासिफाई नहीं किया जा सकता। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
लोगों का कहना है कि यह फैसला अरावली की सुरक्षा को कमजोर कर सकता है, जबकि कुछ लोग इसे कानूनी स्पष्टता की दिशा में एक कदम मान रहे हैं। अरावली, जो उत्तरी भारत में आखिरी प्राकृतिक बाधा का काम करती हैं, थार रेगिस्तान की धूल को दिल्ली तक पहुंचने से रोकती हैं और भूजल स्तर बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती हैं।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि किसी भूमि को वन घोषित करने का निर्णय उसके राजस्व रिकॉर्ड, सरकारी अधिसूचना और वास्तविक भौतिक स्थिति के आधार पर लिया जाएगा, न कि सिर्फ ऊंचाई या भौगोलिक स्थिति के आधार पर। मतलब, हर अरावली पहाड़ी को वन भूमि नहीं माना जाएगा।
इस फैसले के बाद राज्य सरकारों और स्थानीय प्रशासन को भूमि की प्रकृति तय करने में अधिक अधिकार मिल गए हैं। अब तक \“जंगल जैसे क्षेत्र\“ माने जाने वाले इलाकों को राजस्व भूमि या गैर-वन क्षेत्र घोषित किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने असल में क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि अरावली क्षेत्र में 100 मीटर से कम ऊंची पहाड़ियों को, जो दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है और 2.5 अरब साल पुरानी है, अपने आप \“जंगल\“ नहीं माना जाएगा। इसका मतलब है कि किसी पहाड़ी को सिर्फ इसलिए जंगल की ज़मीन घोषित नहीं किया जा सकता क्योंकि वह अरावली रेंज में है।
कोर्ट ने कहा कि जमीन के हर टुकड़े का क्लासिफिकेशन रिकॉर्ड, नोटिफिकेशन और जमीनी हकीकत के आधार पर तय किया जाएगा, न कि सिर्फ उसकी ऊंचाई के आधार पर।
पर्यावरण पर खतरा या विकास का रास्ता?
फैसले के बाद उठे विवाद का मुख्य कारण यह है कि इससे अरावली को धीरे-धीरे कमजोर करने का रास्ता खुल सकता है। खतरा फैसले में नहीं, बल्कि उसके दुरुपयोग में है। अगर भूमि रिकॉर्ड बदले गए, पर्यावरण प्रभाव आकलन को नजरअंदाज किया गया या विकास के नाम पर ढील दी गई, तो दिल्ली-एनसीआर की हवा और जहरीली हो सकती है, भूजल स्तर और नीचे जा सकता है साथ ही गर्मी अधिक बेरहम हो सकती है।
\“अरावली बचाओ\“ का अभियान करते पर्यावरण संरक्षक और स्थानीय ग्रामीण। सोशल मीडिया
बता दें कि अरावली का फैलाव गुजरात से राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली तक लगभग 800 किलोमीटर है। हरियाणा और राजस्थान में इसका बड़ा हिस्सा राजस्व भूमि के रूप में दर्ज है, जो अब तक संरक्षण प्राप्त कर रहा था। फैसले के बाद राज्य सरकारें तय करेंगी कि कौन-सी जमीन वन है और कौन-सी नहीं। इससे लोगों में संरक्षण के कमजोर होने का डर पैदा हो रहा है।
धूल बैरियर का क्या होगा?
अरावली एनसीआर के लिए एक प्राकृतिक डस्ट बैरियर है। अगर यहां खनन या वन कटाई बढ़ी, तो PM10 और PM2.5 जैसे प्रदूषक कणों में तेज बढ़ोतरी होगी और पहले से खराब AQI और बिगड़ेगा।
अध्ययनों के अनुसार, अरावली के नंगे हिस्सों से उड़ने वाली धूल सर्दियों की स्मॉग में बड़ा योगदान देती है। दिल्ली-एनसीआर में पहले से ही प्रदूषण की समस्या गंभीर है, और यह फैसला इसे और जटिल बना सकता है। पानी और जलवायु पर गंभीर खतराअरावली की चट्टानें बारिश के पानी को रोकती हैं और उसे धीरे-धीरे भूजल में पहुंचाती हैं।
हरियाणा-राजस्थान बेल्ट पहले से जल संकट से जूझ रहा है। अगर अरावली कमजोर हुई, तो बोरवेल और गहरे जाएंगे तथा ट्यूबवेल तेजी से सूखेंगे। साथ ही, अरावली को एनसीआर का प्राकृतिक कूलिंग सिस्टम कहा जाता है। कटाई बढ़ने से \“अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट\“ तेज होगा और गर्मियों में तापमान और ऊपर जाएगा।
“अरावली बचाओ“ अभियान सिर्फ दिखावा!
कुछ लोगों का मानना है कि यह “अरावली बचाओ“ अभियान कुछ लोगों का सिर्फ दिखावा है। उनका तर्क है कि इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। पिछले तीन-चार दशकों में लोगों ने अरावली रेंज को पहले ही बहुत नुकसान पहुंचाया है, तो अब इससे क्या फर्क पड़ेगा?
Save Aravalli का आज जो नैरेटिव सोशल मीडिया पर उछाला जा रहा है, वो अरावली को बचाने का आंदोलन कम और एक दोगलापन भरी नैतिक नौटंकी ज़्यादा है...अरावली कोई कल पैदा हुई पहाड़ी नहीं है जिसे आज अचानक बचाने की ज़रूरत पड़ गई हो..
इसे सबसे ज़्यादा नुकसान पिछले तीन–चार दशकों में हुआ जब… pic.twitter.com/mRtgEcZXg1 — Arjun bhatt (@Arjun_homecare) December 20, 2025
लोगों का मानना है कि यह फैसला जंगल कटने की गारंटी नहीं है, लेकिन यह एक दरवाजा जरूर खोलता है। अब सब कुछ राज्य सरकारों की नीति और नीयत पर निर्भर करेगा।
अरावली को बचाने के लिए जरूर लिखें ..!!
कर्ज और फर्ज को जरूर समझें।
अपने हक और अधिकार के लिए लिखो
7 बजे से..!!#अरावली_बचाओ #अरावली_पर्वतमाला_बचाओ #Arawali pic.twitter.com/MZrLQnGJ9d — Sangita Bishnoi (@SangitaBishnoi_) December 19, 2025
कोर्ट ने नियम स्पष्ट किए हैं, लेकिन उनका इस्तेमाल कैसे होगा, यह विकास और संरक्षण के संतुलन पर टिका है। पर्यावरण कार्यकर्ता \“सेव अरावली\“ अभियान के तहत इस फैसले पर नजर रखने की अपील कर रहे हैं, ताकि अरावली का भविष्य फाइलों में नहीं, बल्कि जमीन पर लिए जाने वाले फैसलों में सुरक्षित रहे।
उल्लेखनीय है कि अरावली का संरक्षण न केवल पर्यावरण के लिए जरूरी है, बल्कि दिल्ली-एनसीआर की लाखों जिंदगियों के लिए भी। सरकारों को अब साबित करना होगा कि यह फैसला स्पष्टता लाएगा या संकट।
अरावली बचाओ #save_arawali_hills #arawalihills#arawali pic.twitter.com/hCt2Au9Js0 — Vishram Meena (@Vishrammeena466) December 20, 2025 |