search

भगवान गणेश का अनोखा मंदिर, जहां बिना सिर के होती है उनकी पूजा

deltin33 2025-12-28 23:27:12 views 831
  



नितिन जमलोकी, जागरण गौरीकुंड: भगवान शिव की भूमि केदारपुरी के प्रवेश द्वार पर स्थित मुण्डकटिया गणेश मंदिर अपनी पौराणिक महत्ता और विशिष्ट धार्मिक पहचान के बावजूद आज भी आधुनिक सुविधाओं के अभाव में उपेक्षित पड़ा हुआ है। यह वही पवित्र स्थल है, जहां प्रथम पूज्य भगवान गणेश की ऐसी दुर्लभ आराधना होती है, जो भारतवर्ष में कहीं और देखने को नहीं मिलती। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मां पार्वती ने अपने प्रथम ऋतु स्नान के दौरान गौरीकुंड में पुरुष जाति के प्रवेश को रोकने के लिए अपने उबटन से भगवान गणेश की रचना की थी। यही कारण है कि केदार क्षेत्र में गणेश पूजन को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है।

स्कंद पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, भगवान शिव ने स्वयं माता पार्वती से कहा था कि जो भी तीर्थयात्री केदार क्षेत्र में प्रवेश करे, उसे सर्वप्रथम मुण्डकटिया गणेश की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि यहां पूजन से सभी विघ्नों का नाश होता है। बिना पूजा के की गई तीर्थयात्रा अधूरी मानी जाती है।

सोनप्रयाग से तीन किमी की दूरी पर स्थित यह ऐतिहासिक स्थल धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहीं से तीन किमी आगे मां गौरी मंदिर गौरीकुंड स्थित है। इसी गौरीकुंड से बाबा केदारनाथ की पैदल यात्रा का शुभारंभ होता है। इस पावन स्थल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां भगवान गणेश के सिर कटे स्वरूप की पूजा की जाती है।

भारत में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां मुण्डकटिया गणेश के रूप में आराधना होती है। मंदिर के पुजारी विमल जमलोकी ने बताया कि केदारखंड में इस स्थान का विशेष उल्लेख मिलता है और इसके दर्शन के बाद ही तीर्थ यात्रा को पूर्ण माना जाता है।

स्थानीय ग्रामीण अनुसूया प्रसाद गोस्वामी ने कहा कि शासन-प्रशासन और पर्यटन विभाग की उपेक्षा के कारण आज तक इस स्थल का समुचित विकास नहीं हो पाया है। उन्होंने बताया कि मंदिर में नित्य पूजा-अर्चना होती है, लेकिन केदारनाथ यात्रा के दौरान भी बहुत कम श्रद्धालु इस स्थान की पौराणिक महत्ता से परिचित होकर यहां पहुंच पाते हैं। यदि शीतकाल में इस स्थल का प्रचार-प्रसार किया जाए तो श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि हो सकती है।

वहीं व्यापार संघ अध्यक्ष रामचंद्र गोस्वामी ने मांग की कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की शीतकालीन यात्रा में मुण्डकटिया गणेश को भी शामिल किया जाना चाहिए। इससे न केवल इस पौराणिक धरोहर को पहचान मिलेगी, बल्कि स्थानीय ग्रामीणों और व्यापारियों के लिए रोजगार व आजीविका के नए अवसर भी सृजित होंगे।
पौराणिक मान्यता

मान्यता है कि जब पांडव गोहत्या और ब्रह्महत्या के पाप से अत्यंत व्याकुल हो गए थे, तब उन्होंने महर्षि वेदव्यास से मार्गदर्शन मांगा। व्यास जी ने उन्हें शिव क्षेत्र में जाकर तप करने की सलाह दी। भगवान शिव पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे और केदार क्षेत्र की ओर प्रस्थान कर गए। इसी दौरान माता पार्वती ने गणेश को द्वारपाल के रूप में नियुक्त किया।

यहीं शिव और गणेश के मध्य भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। यह जानकर माता पार्वती अत्यंत क्रोधित और व्यथित हो गईं तथा गणेश को पुनर्जीवित करने की हठ करने लगीं। माता के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव ने हाथी का सिर लाकर गणेश के धड़ से जोड़ दिया, जिसके बाद गणेश गजानन के रूप में विख्यात हुए।
like (0)
deltin33administrator

Post a reply

loginto write comments
deltin33

He hasn't introduced himself yet.

1310K

Threads

0

Posts

3910K

Credits

administrator

Credits
399498

Get jili slot free 100 online Gambling and more profitable chanced casino at www.deltin51.com