कभी थोक भाव से टिकट बांटते थे, आज एक अदद टिकट के लिए तरस रहे हैं पशुपति कुमार पारस

LHC0088 2025-10-11 20:36:28 views 819
  

जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस



राज्य ब्यूरो, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के पहले ही राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस बेचारे बन गए हैं। बड़े भाई रामविलास पासवान के जीते जी वे लोजपा में खूब पूछे जाते थे। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में लोजपा के टिकट बंटवारे में उनकी मुख्य भूमिका रहती थी। लोजपा में विभाजन हुआ तो वे एक गुट के राष्ट्रीय अध्यक्ष तो बन गए। लेकिन, चुनावी टिकट के लिए दूसरों के मोहताज भी हो गए। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

  

  

2024 के लोकसभा चुनाव में उन्हें उस भाजपा से एक अदद सीट भी नहीं मिली, जिसके लिए उन्होंने लोजपा में विभाजन कराया था। पार्टी के छह में से पांच सांसदों के साथ नरेंद्र मोदी की सरकार के समर्थन में खड़े हुए थे। अंतत: वह लोकसभा चुनाव नहीं लड़ पाए। आज किसी सदन के सदस्य नहीं हैं।

  

छोटी मांग भी पूरी नहीं



ताजा हालत यह है कि कभी थोक भाव में टिकट बांटने वाले पारस आज अपने बेटे यशराज पासवान के लिए एक अदद टिकट की आस में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद पर आश्रित हो गए हैं। उनके भतीजे पूर्व सांसद प्रिंस पासवान के लिए एक अदद विस टिकट का जुगाड़ नहीं हो रहा है। राजद ने रालोजपा को महागठबंधन का पार्टनर तो बना दिया, अब टिकट देने से इंकार कर रहा है। राजद की शर्त है कि रालोजपा के एक दो नेता राजद के सिंबल पर चुनाव लड़ लें।पारस इसके लिए राजी नहीं है।

  

  

  

पारस की दिली इच्छा है कि उनका पुत्र खगड़िया जिला के अलौली विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने। पारस स्वयं छह बार बिहार विधानसभा में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। उनकी यह मांग पूरी नहीं हो रही है, क्योंकि 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद के रामवृक्ष सदा चुनाव जीते थे। सदा मुसहर बिरादरी के हैं। राजद में इस बिरादरी के वे इकलौते विधायक हैं।  

  

साथी छोड़ कर जा रहे



पारस के साथ नई परेशानी यह है कि उनके मजबूत साथी एक-एक कर उनका साथ छोड़ रहे हैं। पूर्व सांसद सूरजभान भी उनसे अलग हो गए।सूरजभान की पत्नी वीणा देवी और भाई चंदन सिंह क्रमश: बलिया और नवादा से लोजपा के सांसद रह चुके हैं। लेकिन, आज की तारीख में पारस इस हैसियत में नहीं रह गए हैं कि सूरजभान के स्वजनों को कहीं से टिकट दिला सकें। टिकट की आस में पारस से जुड़े लोग धीरे-धीरे उनके अलग हो रहे हैं।
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