Kali Puja 2025 Date: इस साल काली पूजा का त्योहार सोमवार, 20 अक्टूबर को मनाया जा रहा है।
ललन तिवारी, भागलपुर। Kali Puja 2025 Date, Kali Puja 2025 Kab Hai इस साल काली पूजा का त्योहार सोमवार, 20 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। रात्रि में 12 बजे निशा पूजा के साथ तंत्र सिद्धि का विधान है। इसके बाद मां काली को बलि देने की परंपरा है। अंग जनपद की प्राचीन धरती पर जब शरद ऋतु की निशा घिरती है, तो भागलपुर के गली-कूचों में दीपों की लौ नहीं, स्वयं मां काली का तेजोमय प्रभाव झिलमिलाने लगता है। यहां देवी की प्रतिमा सिर्फ मिट्टी से नहीं गढ़ी जाती, बल्कि पीढ़ियों की लोकश्रद्धा, तांत्रिक ऊर्जा और सांस्कृतिक संस्कारों से आकार लेती है। काली पूजा यहां महज अनुष्ठान नहीं, बल्कि अनादि काल से चली आ रही आध्यात्मिक परंपरा का जीवंत प्रवाह है, जिसमें भव्यता के साथ-साथ विरासत का वैभव भी समाहित है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
भागलपुर के कालीबाड़ी में काली पूजा का स्वरूप अद्वितीय है। यहां स्थापित होने वाली प्रतिमा में मां काली के विविध स्वरूपों का दिव्य दर्शन होता है। कहीं वे उग्र रूप में रौद्रावतार धारण किए दिखती हैं, तो कहीं करुणा और समृद्धि की अधिष्ठात्री के रूप में सुशोभित होती हैं। शहर के प्रमुख काली स्थानों में से कई ऐसे स्थान हैं की वहां कब से काली मां की आराधना हो रही है इसका सटीक अभिलेख किसी के पास नहीं, परंतु लोककथाओं में इन्हें सदियों पुरानी मान्यता प्राप्त है।
सोनापट्टी काली स्थान अपनी अद्वितीय परंपरा के लिए विख्यात है। यहां मां काली को स्वर्ण आभूषणों से अलंकृत किया जाता है। तकरीबन सौ वर्षों से लगातार पूजा हो रही है और मान्यता है कि जिनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, वे मां को सोने का आभूषण अर्पित करते हैं। मां का यह स्वर्णाभूषण श्रृंगार न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि भागलपुर की आर्थिक सम्पन्नता का भी संदेश देता है।
माणिक सरकार चौक के पास मां काली की तीन प्रतिमाएं और चंपानगर में एक स्थान पर मां काली की प्रतिमा बंगाल की संस्कृति का गहरा प्रभाव दर्शाती है। यहां पूजा विधि-विधान से लेकर ध्वनि, धूप और ढाक की ताल तक सब कुछ अंग-बंग की सांझी विरासत को प्रतिबिंबित करता है।
वहीं इशाकचक स्थित मां बुढ़िया काली स्थान अपनी अनोखी कथा के लिए प्रसिद्ध है। यहां मां काली खुले आकाश तले विराजमान हैं। कई बार मंदिर निर्माण का प्रयास हुआ, परंतु स्थानीय मान्यता है कि मां स्वयं छत स्वीकार नहीं करतीं। दो सौ वर्ष पुरानी यह परंपरा आज भी जस की तस है। 1972 में इस दरबार का जीर्णोद्धार अवश्य किया गया, परंतु छत लगाने का प्रयास आज तक सफल नहीं माना गया। इस स्थान के प्रति ग्रामीणों की अटूट आस्था इसे भागलपुर की आध्यात्मिक धुरी बनाती है।
विसर्जन शोभायात्रा का अलौकिक वैभव
भागलपुर की काली पूजा का चरम दृश्य वह होता है जब दर्जनों प्रतिमाएं एक साथ विसर्जन यात्रा में निकलती हैं। पारंपरिक वाद्ययंत्रों की थाप, जयघोषों की गूंज और श्रद्धालुओं का उमड़ा सैलाब इसे साधारण शोभायात्रा नहीं रहने देता। यह दृश्य आस्था और अनुशासन का ऐसा अद्भुत संगम होता है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से भक्त पहुंचते हैं। |