Diwali 2025 Shubh Muhurat: शाम 7:10 से 9:06 तक सर्वोत्तम मुहूर्त, दिवाली पर आज बन रहा दिव्य योग, लक्ष्मी पूजा से चमकेगा भाग्य

Chikheang 2025-10-20 07:36:47 views 660
  

Diwali 2025 Shubh Muhurat: दिवाली पर विशेष शुभ मुहूर्त में स्थिर वृष लग्न शाम 7:10 बजे से रात 9:06 बजे तक लक्ष्मी पूजन के लिए सर्वोत्तम माना गया है।



संवाद सहयोगी, भागलपुर। Diwali 2025 Shubh Muhurat दीपावली की पूर्व संध्या पर शहर की गलियों और बाजारों में केले के गाछों की खूब बिक्री होती दिखी। श्रद्धालु बड़े उत्साह से केला गाछ लाकर घरों में प्रतिष्ठित करते देखे गए। ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषिकेश पांडे ने बताया कि केला गाछ लक्ष्मी पूजा में इसलिए अत्यंत पवित्र माना जाता है क्योंकि इसमें भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और देवगुरु बृहस्पति का वास माना गया है। इसकी पूजा ग्रहदोष शांत करने के साथ-साथ सुख और स्थिरता का प्रतीक मानी जाती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

दीर्घकालिक समृद्धि लेकर आ रहा दीपोत्सव

कार्तिक अमावस्या का दीप पर्व आज सोमवार को होगा जो स्वयं में विशेष है क्योंकि सोमवार भगवान शिव और चंद्र देव का दिन माना जाता है। इस बार दीपावली सिर्फ रोशनी का नहीं, बल्कि ज्योतिषीय दृष्टि से भी अत्यंत फलदाई महायोग लेकर आई है।

कब करें दिवाली पर मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा

पुराेहितों के अनुसार दीपावली की पूजा सोमवार को दिन से लेकर देर रात तक कभी भी की जा सकती है। विशेष शुभ मुहूर्त में स्थिर लग्न वृष शाम 7:10 से रात 9:06 बजे तक और सिंह लग्न रात 2:34 से तड़के 4:05 बजे तक पूजन के लिए सर्वोत्तम माना गया है।

तीन बार गिरी मंदिर की दीवारें, चौथी बार पुजारी की मृत्यु

मां काली की महिमा और चमत्कार का ऐसा जीवंत उदाहरण शायद ही कहीं और मिले, जैसा भागलपुर के बहवलपुर में देखा जा सकता है। यहां देवी की प्रतिमा किसी भव्य मंदिर में नहीं, बल्कि एक पुराने पीपल के पेड़ तले स्थापित है। क्योंकि स्वयं माता ने यही स्थान अपना निवास के लिए चुना था। यह कथा कोई दशक-दो दशक पुरानी नहीं, बल्कि शताब्दियों पूर्व की है। जब एक ब्राह्मण पुजारी द्वारा यहां मंदिर निर्माण का कार्य शुरू किया गया था, तब मां काली ने स्वप्न में आदेश दिया मैं मंदिर में नहीं, पेड़ तले ही निवास करूंगी।

ग्रामीणों ने इसे महज भ्रम समझकर मंदिर निर्माण जारी रखा। लेकिन चमत्कारिक ढंग से मंदिर की दीवारें बनते ही भरभरा कर गिर गईं। पुजारी ने इसे स्वप्न से जोड़कर चेतावनी दी, फिर भी ग्रामीणों ने हिम्मत नहीं हारी। दूसरी बार निर्माण शुरू हुआ तो माता पुनः स्वप्न में प्रकट हुईं । इस बार तीखे स्वर में अपनी इच्छा दोहराई । फिर भी लोग न माने।

तीसरी बार निर्माण शुरू हुआ तो इस बार सिर्फ दीवारें ही नहीं गिरीं, बल्कि उसी ब्राह्मण पुजारी की मृत्यु भी हो गई। इसके बाद गांव में भय और आस्था दोनों फैल गए। मंदिर निर्माण हमेशा के लिए रोक दिया गया। तब से आज तक मां काली उसी पीपल के पेड़ तले प्रतिष्ठित होती हैं और उनकी पूजा तांत्रिक पद्धति से होती है।

मुगलकालीन ईंटों में छिपा है प्रमाण

बताया गया कि इस कथा को किंवदंती मानने की भूल नहीं करनी चाहिए, क्योंकि मुगलकालीन पतली लखोरिया ईंटों का मलबा आज भी वहीं मौजूद है, जिसे बाद में बने हनुमान मंदिर की नींव में रखा गया है। यह इस परंपरा की प्राचीनता का साक्षात प्रमाण है। यहां की प्रतिमा भी अद्भुत है। बताया जाता है कि 32 फीट ऊंची काली माता की प्रतिमा कहीं और नहीं है।

भागलपुर जिले में जहां 100 से अधिक स्थानों पर प्रतिमाएं स्थापित होती हैं, वहीं महाकाल रूपी यह भव्य प्रतिमा केवल इसी बहवलपुर में स्थापित होती है। कर्णगढ़ की ऐतिहासिक धरती से सटे इस स्थान पर श्रद्धालुओं का तांता रात-दिन लगा रहता है। यही वजह है कि यह स्थल शक्ति उपासकों के लिए अद्वितीय तीर्थ माना जाता है।
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