संजय कुमार उपाध्याय, मोतिहारी। नेताजी अप्रसन्न हैं। खिन्न हैं। खिसियाए तो इतना कि इंटरनेट मीडिया पर आग उगल रहे। खुद को मैदान नहीं मिला तो दूसरों का खेल बिगाड़ने पर तुले हैं। कह रहे, अब मैं किसी भी दल के प्रभाव या दबाव में नहीं हूं। आज मैं पूरी तरह से स्वतंत्र हूं। मेरा एकमात्र उद्देश्य... जनता के अधिकारों, सम्मान और विकास के लिए हर परिस्थिति में मजबूती से खड़े रहना है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
पहले इंटरनेट मीडिया के इस पोस्ट के वाक्यांश समझ लीजिए। फिर जरा इस दूसरे पोस्ट की लाइन देखिए, मेरी फर्जी आइडी बनाकर एआइ का उपयोग कर कुछ गलत पोस्ट किए जा रहे अफवाहों पर ध्यान न दें। दरअसल, ये जो पोस्ट हैं, वह जिले की एक विधानसभा सीट से टिकट नहीं मिलने से नाराज एक दल के नेता के नाम की फेसबुक आइडी से है।
दूसरे एक और नेताजी ने अपने क्षेत्र की जनता के नाम सीधा संदेश जारी किया। लिखा, हर पंचायत, हर गांव, हर गली मेरा घर है। जब तक मेरे अंदर सांस है, मैं आपकी आवाज बनकर, आपके हक के लिए लड़ता रहूंगा।
नेताओं की ओर से इंटरनेट मीडिया पर इमोशनल पोस्ट खूब किए जा रहे। इंटरनेट मीडिया पर पोस्ट संयमित किए जा रहे, लेकिन नेताजी के समर्थक तरह-तरह का नारा दे रहे।
नेताजी के साथ-साथ समर्थक व मतदाता भी इंटरनेट मीडिया पर अपने तरीके से टिकट बंटवारे पर बात रख रहे। एक युवा यूजर ने लिखा है- ‘बिहार जातीय राजनीति के दलदल में इस तरह जकड़ा हुआ है कि आज भी अधिकतर दल अपनी पार्टी का टिकट जातीय आधार पर बांटते हैं। मुझे लगता है किसी कारण प्रत्याशी सम्मानजनक संख्या में वोट नहीं पा सके तो फिर कोई भी दल संबंधित को टिकट देने पर सोचने को मजबूर होगा।’
इस कमेंट के बाद संबंधित ने यह भी लिखा- यह मेरी व्यक्तिगत राय है। राजनीति के जानकार भी इस बात से सहमत होते हैं कि टिकट बंटवारे में जाति आधार है, लेकिन पूर्वी चंपारण में जिस तरीके से जाति के आधार पर टिकट बंटा है, उसमें सबका ध्यान रखने की कोशिश की गई है।
हालांकि कई स्तर पर इसमें कुछ को ज्यादा तो कुछ को काफी कम तवज्जो मिली है। ऐसे में विरोध का स्वर उठना स्वाभाविक है। यही कारण है कि जिनको मैदान में स्थान नहीं मिला वो दूसरे का खेल बिगाड़ने पर तुले हैं। खेल इस कारण बिगाड़ा जा रहा क्योंकि इस बार मैदान से बाहर हुए। यदि उसकी हार होती है तो पांच वर्ष बाद पार्टी फिर से विचार कर सकती है। |