कभी फीकी नहीं पड़ती सोने की चमक (Picture Courtesy: Freepik)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। हाल ही में सोने की कीमतों (Gold Prices) ने नया रिकॉर्ड बनाया था, लेकिन अब इसमें लगातार गिरावट देखी जा रही है। बावजूद इसके, सोने की चमक कभी फीकी नहीं पड़ती।
यह सिर्फ एक धातु नहीं, बल्कि मानव सभ्यता के इतिहास, अर्थव्यवस्था और संस्कृति का स्वर्ण अध्याय है। आइए जानें कि सोने की यात्रा धरती पर कब और कैसे शुरू हुई (History of Gold) और भारत इसमें कैसे ‘सोने की चिड़िया’ बना। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
सोने का जन्म और शुरुआती खोज
भूगर्भ वैज्ञानिकों के अनुसार सोना सबसे पुराना धातु है, जो करीब 13 अरब साल पहले दो विशाल तारों की टक्कर के दौरान बने कणों से पैदा हुआ था। जब लगभग 4.6 अरब वर्ष पहले पृथ्वी का निर्माण हुआ, तभी से सोना इसका हिस्सा बन गया। इतिहास में इसकी पहली आधिकारिक खोज 4,600 ईसा पूर्व बुल्गारिया के वरना नेक्रोपोलिस में हुई थी। प्राचीन मिस्र, चीन, अमेरिका और यूरोप की सभ्यताओं ने इसे समृद्धि और शक्ति का प्रतीक माना।
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मिस्र से शुरू हुई खनन की परंपरा
मिस्र में 1900 ईसा पूर्व सोने का उल्लेख मिलता है और तूतनखामुन के दौर (1332 ईसा पूर्व) तक यह एक बड़े उद्योग के रूप में उभरा। नूबिया (आज का दक्षिणी मिस्र और सूडान) सोने का प्रमुख सोर्स था। मिस्र ने ही पहली बार इसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार की विनिमय मुद्रा के रूप में अपनाया।
भारत और सोने की चिड़िया की कहानी
भारत का सोने से रिश्ता बेहद पुराना है। 17वीं सदी तक भारत की वैश्विक जीडीपी में हिस्सेदारी 25% थी और उसके पास विशाल सोने-चांदी के भंडार थे। मुगलकाल में खजाने, सिक्के और आभूषणों में सोने का इस्तेमाल आम था। यही समृद्धि भारत को ‘सोने की चिड़िया’ कहे जाने का कारण बनी। लेकिन औपनिवेशिक काल में ब्रिटिश शासन ने व्यवस्थित रूप से भारत का सोना यूरोप पहुंचा दिया। 1765 से 1938 के बीच ब्रिटेन भारत से करीब 45 ट्रिलियन डॉलर मूल्य का धन ले गया, जिसमें बड़ी मात्रा में सोना और चांदी शामिल थे। इसके अलावा, नादिर शाह जैसे आक्रामकों ने भी भारत से खूब सारा सोना और चांदी लूटा।
सोने का विज्ञान और अर्थशास्त्र
साइंस में सोने को ‘नोबल मेटल’ कहलाता है, क्योंकि यह हवा, पानी या ऑक्सीजन से प्रतिक्रिया नहीं करता, इसलिए कभी जंग नहीं खाता। इसकी कंडक्टेबिलिटी इसे इलेक्ट्रॉनिक्स और मेडिकल डिवाइसेज के लिए भी उपयुक्त बनाती है। भारत में तो सोने का इस्तेमाल आयुर्वेदिक औषधियों तक में होता आया है।
कभी देशों की मुद्राओं की कीमत सोने के आधार पर तय की जाती थी, जिसे गोल्ड स्टैंडर्ड कहा गया। 19वीं सदी में ब्रिटेन ने इसकी शुरुआत की और 1944 के ब्रेटन वुड्स समझौते के तहत डॉलर को सोने से जोड़ा गया। हालांकि, 1971 में अमेरिका ने भी यह प्रणाली खत्म कर दी।
कीमतें और निवेश का गणित
आज सोने की कीमतें वैश्विक बाजारों में मांग और आपूर्ति के आधार पर तय होती हैं। लंदन बुलियन मार्केट एसोसिएशन रोजाना इसकी ‘स्पॉट प्राइस’ निर्धारित करती है। भारत में इंडियन बुलियन एंड ज्वैलर्स एसोसिएशन देशभर के ज्वेलर्स से डेटा लेकर दैनिक रेट तय करता है। जब शेयर बाजार कमजोर पड़ता है, तब निवेशक सोने को सुरक्षित विकल्प मानते हैं, जिससे इसकी कीमत बढ़ती है।
बरकरार रहेगी चमक
विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में सोने का उत्पादन घटेगा और मांग बढ़ेगी। यूएस जियोलॉजिकल सर्वे के अनुसार धरती पर अब तक 1,87,000 मीट्रिक टन सोना निकाला जा चुका है, जबकि करीब 57,000 मीट्रिक टन अब भी धरती की गोद में छिपा है। यानी कुल 2,44,000 मीट्रिक टन सोना ही इंसानों की पहुंच में है। यही वजह है कि सोने की कीमत आने वाले समय में बढ़ेगी।
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