प्रो. रामदरश मिश्र। जागरण
सतीश पांडेय, जागरण गोरखपुर। प्रो. रामदरश मिश्र के पैतृक गांव डुमरी में इस समय गहरा सन्नाटा पसरा है। इस गांव ने दो ऐसे रत्न खो दिए, जिनकी लेखनी ने भोजपुरी और हिंदी साहित्य को नई पहचान दी थी। सोमवार को भोजपुरी साहित्य के रचनाकार रामनवल मिश्र के पुत्र अरुण मिश्र का निधन हुआ था और शुक्रवार को उनके छोटे भाई, हिंदी के यशस्वी कवि व आलोचक प्रो. रामदरश मिश्र ने भी अंतिम सांस ली। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
अरुण मिश्र झंगहा कस्बे में मकान बनवाकर रहते थे और वहीं व्यवसाय करते थे। उनकी तेरहवीं की तैयारी चल रही थी, जिसमें शामिल होने के लिए दिल्ली से प्रो. रामदरश मिश्र की पुत्री और परिवार के सदस्य आने वाले थे। इससे पहले ही शुक्रवार को दिल्ली में प्रो. मिश्र के निधन की खबर आई तो गांव में फिर से मातम छा गया।
डुमरी गांव के तीनों भाई रामअवध मिश्र, रामनवल मिश्र और प्रो. रामदरश मिश्र जिले की साहित्यिक पहचान रहे हैं। सबसे बड़े भाई रामअवध मिश्र का निधन करीब 10 वर्ष पूर्व गांव में हुआ था। उनके तीन पुत्र रामनिवास मिश्र, श्रीनिवास मिश्र और प्रकाश चंद्र मिश्र असम व गुजरात में रहते हैं।
दूसरे नंबर के भाई रामनवल मिश्र भोजपुरी भाषा के प्रतिष्ठित साहित्यकार थे। वे पंचायत सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। उनका निधन पांच जून, 2015 में हो चुका है। उनके चार पुत्रों में श्रीप्रकाश मिश्र (अमहिया इंटर कॉलेज), जयप्रकाश मिश्र (गंगा प्रसाद स्मारक इंटर कॉलेज, चौरीचौरा), अरुण मिश्र (व्यवसायी, झंगहा) और अशोक मिश्र (पूर्व प्रोफेसर, आगरा विश्वविद्यालय) शामिल हैं।
परिवार का सबसे छोटा नाम था प्रो. रामदरश मिश्र। उनके तीन पुत्र हेमंत मिश्र, शशांक मिश्र, विवेक मिश्र के साथ ही बेटी अंजली व स्मिता दिल्ली में रहते हैं। |