Bihar Chunav : RJD के गढ़ में खिल उठा कमल, सारण में कैसे पलट गए सारे चुनावी समीकरण ?

cy520520 2025-11-14 23:43:17 views 1235
  

छोटी कुमारी एवं डॉ. करिश्‍मा। जागरण आर्काइव  



जागरण संवाददाता, सारण। सारण जिले में इस बार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने सभी राजनीतिक अनुमान बदल दिए। पिछले दो चुनावों में जहां सारण को राजद का मजबूत गढ़ माना जाता था, वहीं इस बार समीकरण पूरी तरह उलट गए। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

वर्ष 2015 में राजद ने जिला की 10 में से 8 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि 2020 में पार्टी ने सात सीटें अपने नाम की थीं। लेकिन इस चुनाव में राजद को केवल तीन सीटों पर ही संतोष करना पड़ा है।  

जिले की 10 विधानसभा सीटों में से इस बार एनडीए गठबंधन को सात और महागठबंधन को मात्र तीन सीटें मिलीं। यह परिणाम पिछले चुनाव के ठीक विपरीत रहा।

भाजपा ने छपरा, अमनौर, तरैया, बनियापुर और सोनपुर में जीत दर्ज कर अपनी पकड़ मजबूत की। वहीं जदयू ने एकमा और मांझी सीट पर कब्जा जमाया।

दूसरी ओर राष्ट्रीय जनता दल केवल मढ़ौरा, परसा और गड़खा सीटें ही बचा सका। इन नतीजों ने न सिर्फ स्थानीय राजनीतिक संतुलन बदल दिया है, बल्कि यह भी संकेत दिया है कि सारण की जनता ने इस बार पुराने समीकरणों को दरकिनार कर नए नेतृत्व और नए विकल्पों को चुना है।  
एकमा में जेडीयू का दबदबा, धूमल सिंह की प्रचंड जीत

एकमा विधानसभा क्षेत्र में इस बार जनता ने जदयू पर पूरा भरोसा जताते हुए पार्टी उम्मीदवार मनोरंजन सिंह उर्फ धूमल सिंह को भारी समर्थन दिया।

उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी और राजद प्रत्याशी श्रीकांत सिंह को निर्णायक अंतर से पराजित किया। दिलचस्प बात यह रही कि श्रीकांत सिंह वर्तमान विधायक थे और पिछली बार पहली बार चुनाव जीतकर सदन पहुंचे थे, लेकिन इस बार जनता का रुख उनके खिलाफ रहा।

स्थानीय लोगों में उनके प्रति नाराजगी की चर्चा पूरे चुनाव के दौरान बनी रही। मतदाताओं का आरोप था कि जीत के बाद श्रीकांत सिंह लंबे समय तक कोलकाता में ही रहे और क्षेत्र की समस्याओं से दूरी बनाए रखी।

पिछले चुनाव में धूमल सिंह की पत्नी सीता देवी उम्‍मीदवार थीं, उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इस बार धूमल सिंह ने खुद चुनाव अभियान की कमान संभाली और जीत दर्ज कर ली।

धूमल सिंह एकमा से तीसरी बार विधायक चुने गए हैं। इससे पहले वे बनियापुर विधानसभा क्षेत्र से भी चुनाव लड़ते रहे हैं और उल्लेखनीय यह है कि उन्होंने जिस भी चुनाव में हिस्सा लिया, विजय ही हासिल की।
मांझी में जदयू का परचम, रणधीर सिंह ने महागठबंधन को दी मात

मांझी विधानसभा क्षेत्र में इस बार मतदाताओं ने महागठबंधन को स्पष्ट रूप से नकार दिया और जदयू उम्मीदवार रणधीर कुमार सिंह चुनाव जीत गए।  

रणधीर कुमार सिंह, पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह के पुत्र हैं, और इस बार जदयू के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे।  उन्होंने निकटतम प्रतिद्वंद्वी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी तथा विधायक डा. सत्येंद्र कुमार यादव को हराया है।

उधर रणधीर सिंह की राजनीतिक यात्रा भी काफी रोचक रही है। वे पहले छपरा विधानसभा से राजद के टिकट पर उपचुनाव जीत चुके हैं।

बाद में उन्होंने दो बार और चुनाव लड़ा, लेकिन भाजपा उम्मीदवार डा. सीएन. गुप्ता से पराजित हो गए। इस बार उन्होंने राजद छोड़कर जदयू का दामन थामा और यह फैसला उनके लिए जीत का रास्ता बना।  

मांझी में चुनावी मुकाबला शुरुआत से ही दिलचस्प बना रहा। युवा और पारंपरिक मतदाताओं के बीच भी रणधीर सिंह को अच्छा समर्थन मिला।

लोगों ने स्थानीय मुद्दों, विकास और क्षेत्र की सियासी परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए नया नेतृत्व चुनने का निर्णय लिया। इस परिणाम को महागठबंधन के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि यह क्षेत्र वर्षों से उनके प्रभाव में रहा है।

बनियापुर में केदारनाथ सिंह का दम


बनियापुर विधानसभा सीट पर इस बार का चुनाव बेहद रोमांचक रहा, जिसमें अंततः भाजपा के प्रत्याशी केदारनाथ सिंह ने जीत का परचम लहराया।

वे पहले राजद के विधायक रह चुके हैं और समय के अनुरूप राजनीतिक परिवर्तन करते हुए उन्होंने भाजपा का दामन थामा था।

पहली बार भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ते हुए उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी राजद की चांदनी देवी को हराया। चांदनी देवी पहली बार चुनाव लड़ रही थीं और वे मशरक के दिवंगत पूर्व विधायक अशोक कुमार सिंह की पत्नी हैं।

केदारनाथ सिंह का राजनीतिक सफर काफी दिलचस्प रहा है। वे पूर्व में जदयू और राजद दोनों पार्टियों के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं। पिछले चुनाव में राजद से विधायक बने थे और इस बार भाजपा में शामिल होकर चौथी बार जीते।  
तरैया में फिर चमके जनक सिंह, भाजपा की लगातार दूसरी जीत

तरैया विधानसभा सीट पर इस बार भी मुकाबला कड़े उतार-चढ़ाव से भरा रहा, लेकिन अंत में भाजपा प्रत्याशी और वर्तमान विधायक जनक सिंह ने एक बार फिर जीत हासिल कर ली।

उन्होंने राजद उम्मीदवार शैलेंद्र प्रताप सिंह को पराजित किया।शैलेंद्र प्रताप पहली बार राजद के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे। पिछले चुनाव में वे निर्दलीय के रूप में मैदान में थे, लेकिन इस बार पार्टी समर्थन के बावजूद वे जीत नहीं पाए।  

पूरे चुनाव में दोनों प्रत्याशियों के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली। हर राउंड में बढ़त का उतार-चढ़ाव चलता रहा, जिससे परिणाम को लेकर मतगणना केंद्र पर लगातार रोमांच का माहौल बना रहा।
गड़खा में फिर सुरेंद्र राम ने बरकरार रखी सीट  

गड़खा विधानसभा सीट पर इस बार भी राजद ने अपना किला बचाए रखा है। पार्टी प्रत्याशी सुरेंद्र राम ने लगातार दूसरी बार विजय हासिल करते हुए लोजपा (रामविलास) उम्मीदवार सीमांत मृणाल को हराया।

यह सीट सुरक्षित वर्ग में आती है और सीट बंटवारे के दौरान एनडीए ने इसे लोजपा के खाते में दिया था।सीमांत मृणाल ने पूरी ताकत से मुकाबला किया, लेकिन वे जीत नहीं सके।
छपरा में खेसारी लाल की हार, भाजपा की छोटी कुमारी ने रचा इतिहास

छपरा विधानसभा सीट इस चुनाव का सबसे चर्चित केंद्र रही, क्योंकि यहां भोजपुरी सुपरस्टार खेसारी लाल यादव राजद के टिकट पर मैदान में उतरे थे।

लेकिन लोकप्रियता और चमक-दमक के बावजूद उन्हें भाजपा प्रत्याशी छोटी कुमारी ने करारी शिकस्त दी। छोटी कुमारी सारण जिला परिषद की पूर्व अध्यक्ष रह चुकी हैं।

पहली बार ही उनका मुकाबला एक सेलिब्रिटी उम्मीदवार से हुआ, लेकिन उन्होंने मजबूत चुनाव प्रबंधन और क्षेत्रीय पकड़ की बदौलत बड़ी जीत दर्ज की।

छपरा की राजनीतिक पृष्ठभूमि हमेशा एनडीए के पक्ष में रही है। वर्ष 2005 से लेकर अब तक यहां केवल एक बार उपचुनाव में राजद प्रत्याशी रणधीर कुमार सिंह विजयी हुए थे।   
मढ़ौरा में फिर चला जितेंद्र राय का जादू, लगातार चौथी बार जीत

मढ़ौरा विधानसभा सीट पर एक बार फिर राजद प्रत्याशी एवं पूर्व मंत्री जितेंद्र कुमार राय ने अपनी जीत का परचम लहराया।

उन्होंने जनसुराज पार्टी के उम्मीदवार नवीन कुमार सिंह उर्फ अभय कुमार सिंह को कड़े मुकाबले में पराजित किया। इस सीट पर एनडीए की प्रत्याशी सीमा सिंह का नामांकन रद्द होने के बाद निर्दलीय अंकित कुमार को समर्थन दिया, लेकिन इसका विशेष लाभ उन्हें नहीं मिल सका।  
अमनौर से मंटू सिंह फिर विजयी, भाजपा ने मजबूत की पकड़

अमनौर विधानसभा क्षेत्र से बिहार सरकार के मंत्री कृष्ण कुमार सिंह मंटू ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की। उन्होंने राजद प्रत्याशी सुनील कुमार राय को एक कड़े और उतार-चढ़ाव भरे मुकाबले में मात दी।

चुनावी शुरुआत में मंटू सिंह को स्थानीय कुछ नाराजगी की वजह से चुनौती का सामना करना पड़ा, लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आया, स्थितियां सामान्य हुईं और मतदाता उनके पक्ष में संगठित होते गए।

मंटू सिंह वर्ष 2020 में पहली बार भाजपा टिकट पर जीते थे। इससे पहले वर्ष 2010 में वे जदयू के उम्मीदवार के रूप में पहली बार अमनौर के विधायक बने थे।

क्षेत्र में उनकी पहचान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और सारण सांसद राजीव प्रताप रुडी के करीबी नेता के रूप में भी है। इस चुनाव में भी उनका केंद्रीय कार्यालय सांसद रुडी के आवास पर संचालित रहा।  

परसा में करिश्मा राजा की धमाकेदार एंट्री, राजद को मिली बड़ी जीत


परसा विधानसभा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा प्रसाद राय की पोती और पूर्व मंत्री चंद्रिका राय की भतीजी डा. करिश्मा ने शानदार जीत दर्ज की। उन्होंने जदयू प्रत्याशी छोटेलाल राय को पराजित किया।  

छोटेलाल राय पहले राजद से विधायक थे, लेकिन चुनाव से ठीक पहले उन्होंने जदयू का दामन थाम लिया। पार्टी बदलने के इस फैसले का असर वोट बैंक पर साफ दिखा और उन्हें परसा की जनता ने इस बार नकार दिया।

दूसरी ओर करिश्मा ने पहली बार चुनाव मैदान में उतरते हुए मजबूत चुनाव संचालन, सघन जनसंपर्क और घर-घर पहुंचकर लोगों का विश्वास जीता।

चुनाव अभियान के दौरान उनका युवा जोश और साफ-सुथरी छवि क्षेत्र की जनता को खूब भाया। मुकाबला शुरू से ही रोचक रहा, लेकिन मतदान के रुझानों से स्पष्ट हो गया था कि जनता करिश्मा को मौका देने के मूड में है।   

सोनपुर में भाजपा के विनय सिंह की बड़ी जीत, राजद की हैट्रिक रोकी


सोनपुर विधानसभा सीट इस बार बेहद दिलचस्प मुकाबले का केंद्र रही। मतगणना के दौरान कई बार बढ़त बदली, लेकिन अंततः भाजपा प्रत्याशी विनय कुमार सिंह विजयी रहे।

उन्होंने वर्तमान विधायक और राजद प्रत्याशी डा. रामानुज प्रसाद को हराकर उनकी हैट्रिक की उम्मीदों पर विराम लगा दिया।  

विनय कुमार सिंह का इस सीट से लंबा राजनीतिक सफर रहा है। वे वर्ष 2010 में यहां राबड़ी देवी को चुनाव हरा चुके हैं और तब से लगातार भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ते आ रहे थे।

हालांकि जीत उनसे दूर रही, लेकिन इस बार जनता ने उन्हें पूरा समर्थन दिया। चुनाव अभियान के दौरान विनय सिंह ने क्षेत्र के विकास, केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं तथा अपने लंबे संघर्ष को मुद्दा बनाया।

यह रणनीति कारगर रही और अंतिम राउंड में उनकी बढ़त तय हो गई। वहीं राजद के डा. रामानुज प्रसाद लगातार दो बार यहां से विजयी रहे थे, लेकिन इस बार वे मतदाताओं की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर सके।
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