Mahabharat story: क्यों भगवान श्रीकृष्ण ने शकुनि के साथ खेला था चौसर? पढ़ें महाभारत की यह अद्भुत कथा

Chikheang 2025-11-18 19:37:50 views 784
  

Mahabharat story भगवान श्रीकृष्ण और शकुनि के बीच कब हुआ चौसर का खेल?



धर्म डेस्क, नई दिल्ली। महाभारत की कथा के अनुसार, पांडवों और कौरवों के बीच द्यूतक्रीड़ा यानी चौसर खेला गया, जिसमें युधिष्ठिर ने अपनी सारी संपत्ति से लेकर अपने भाइयों और पत्नी द्रौपदी तक को दांव पर लगा दिया था। इस खेल में हारने के कारण ही पांडवों को 12 साल का वनवास और एक साल अज्ञातवास मिला था। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि अगर भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर के स्थान पर यह खेल खेला होता, तो क्या परिणाम होता। चलिए जानते हैं इस बारे में। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
इसलिए नहीं लिया खेल में भाग

भगवान श्रीकृष्ण चाहते, तो द्यूतक्रीड़ा को चुटकियों में जीत सकते थे। लेकिन उनके इस खेल में भाग न लेते के पीछे एक बहुत ही खास वजह थी। इसका कारण यह था कि पांडव यह नहीं चाहते थे, कि भगवान श्रीकृष्ण में इस खेल का हिस्सा न बनें। साथ ही वह मन-ही-मन श्रीकृष्ण से यह प्रार्थना कर रहे थे कि वह इस खेल का हिस्सा न बनें। इसी के चलते भगवान श्रीकृष्ण उस कक्ष में नहीं आए, जहा चौसर का खेल चल रहा था।

  

(AI Generated Image)
श्रीकृष्ण और शकुनि के बीच हुआ खेल

महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार, जब कुरुक्षेत्र का युद्ध अपने मध्य स्तर पर था, तब कौरवों को महसूस हुआ कि पांडवों की सेना उन पर भारी पड़ रही है और एक के बाद एक उनके पराक्रमी योद्धाओं की मृत्यु हो रही है। उस समय तक कर्ण भी अर्जुन के हाथों मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे। ऐसे में शकुनि को एक युक्ति सूझी और उसने भगवान श्रीकृष्ण को युद्ध की समाप्ति यानी सूर्यास्त के बाद अपने शिविर में चौसर खेलने के लिए आमंत्रित किया।

  
शकुनि ने रखी ये शर्त

शकुनी ने भगवान श्री कृष्ण के सामने यह शर्त रखी, कि अगर वह खेल जीत गया, तो बिना आगे लड़े युद्ध समाप्त हो जाएगा और पांडवों को उनका राजपाठ सौंप दिया जाएगा। वहीं अगर श्रीकृष्ण इस खेल को जीतते हैं, तो युद्ध जारी रहेगा। खेल शुरू हुआ और शकुनि ने अपनी चाल चली, लेकिन श्रीकृष्ण अपनी चाल शकुनि को ही देते गए। लेकिन फिर शकुनि ने भगवान श्रीकृष्ण पर यह जो दिया कि वह अपनी चाल चलें। जैसे ही भगवान श्रीकृष्ण ने चौसर के पासों को अपने हाथ में लिया, वह चूर-चूर होकर राख हो गए।

शकुनी यह देखकर हैरान रह गया और उसने भगवान श्रीकृष्ण से इसका मतलब पूछा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने शकुनी को बताया कि नकारात्मकता से भरे ये पासे मेरे स्पर्श मात्र से राख हो गए। ऐसे में अगर युधिष्ठिर की जगह मैं इस खेल को खेलता, तो यह युद्ध कभी नहीं होता।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।
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