GRAP में बदलावों को लेकर विशेषज्ञों ने जताया असंतोष, प्रदूषण के स्थायी समाधान पर फोकस करने की दी सलाह

cy520520 2025-11-27 10:07:42 views 808
  

दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण पर विशेषज्ञों ने दी सलाह।  



राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। ग्रेप के विभिन्न चरणों में किए गए नए बदलावों से पर्यावरणविद संतुष्ट नहीं हैं। उनका कहना है कि ग्रेप दिल्ली और एनसीआर के वायु प्रदूषण का स्थायी समाधान है ही नहीं। इसलिए इस पर फोकस करने के बजाए उन कारणों पर ध्यान एवं काम करना चाहिए, जो समस्या की जड़ हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
2017 से अबतक चार बदलाव

बता दें कि ग्रेप 2017 में लागू किया गया था। इसके बाद से इसमें चौथी बार बदलाव किया गया है। इन बदलावों को लेकर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है। विशेषज्ञों के अनुसार ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) में बदलाव गलत नहीं है। किसी भी चीज में सुधार की हमेशा गुंजाइश रहती है, लेकिन इसे स्थायी मान लेना गलत है। ग्रेप का मूल मकसद यह था कि इसे अधिक प्रदूषित दिनों में ही राहत दिलवाने के लिए लगाया जाएगा। लेकिन अब यह स्थायी होता जा रहा है।

सेंटर फार साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रायचौधरी के अनुसार ग्रेप को लेकर धारणा बन गई है कि सर्दियां आएगी तो ग्रेप भी आएगा। लेकिन इसे लेकर जो गंभीरता दिखनी चाहिए, वह नहीं दिख रही है।

इस बार ग्रेप-एक में ही व्यस्त व गैरव्यस्त घंटों में सार्वजनिक परिवहन का किराया अलग करने की बात शामिल है। यह पहले ग्रेप-दो में था। मेट्रो में यह किराया कम है, लेकिन सार्वजनिक परिवहन के अन्य साधनों में यह पहले भी लागू नहीं था।

अनुमिता रायचौधरी ने कहा, जरूरी है कि ग्रेप को मौसम विभाग के पूर्वानुमान के आधार पर लागू किया जाए और पूर्वानुमान सटीक हो। इससे प्रदूषण के अपने स्रोत हवा कम होने से पहले ही कम हो जाएंगे। साथ ही ग्रेप में कुछ ऐसे कदम भी किए जाने चाहिए जिससे जिन लोगों की आय प्रभावित हो रही है, उन्हें कुछ राहत मिल सके।

वारियर माम्स संस्था की प्रमुख भवरीन कंधारी ने बताया कि इन बदलावों का असर होना चाहिए। लेकिन यह भी साफ है कि ग्रेप को लेकर जो गंभीरता होनी चाहिए, वह नहीं दिख रही है। ग्रेप सर्दियों की एक आफत सा बन गया है। इसकी वजह से प्रदूषण में कमी आ रही है, ऐसा भी कोई अध्ययन नहीं है। न ही इसके नियमों का कहीं सख्ती से पालन होता दिख रहा है।
प्रदूषण के कणों के कम उत्सर्जन की करें कोशिश

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व अपर निदेशक डा. दीपांकर साहा ने बताया, स्मॉग के बीच कोशिश यह होनी चाहिए कि प्रदूषण के कणों का उत्सर्जन कम से कम हो। लेकिन यह तभी संभव है जब गाड़ियां कम चलें, कूड़ा न जले, निर्माण कार्यों में धूल न उडे़, सड़कें साफ रहें, पानी का छिड़काव हो। अधिक प्रदूषण के दिनों में ऐसे ही कदमों से राहत मिल सकती है। सार्वजनिक परिवहन की मजबूती पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। साथ ही ग्रेप में बदलाव के साथ उसका सख्ती से पालन भी जरूरी है।
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