पल-पल छलकीं आंखें, रज को माथे से लगाया... सुध बुध खो बैठे धीरेंद्र शास्त्री, सनातन एकता पदयात्रा के भावुक क्षण

Chikheang 2025-11-17 14:37:06 views 706
  

सनातन एकता यात्रा के दौरान दंडवत हुए संत।



राजा तिवारी, जागरण, मथुरा। यह एक संत का समर्पण है। पदयात्रा में अपार जनसमूह उनके पीछे था और आगे-आगे वह चल रहे थे। कोई उन्हें छूने को व्याकुल, कोई प्रणाम करने को। अपने प्रति ब्रज में मिला असीम प्यार देख बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की आंखों से बार-बार यह दुलार पानी बहकर बहता। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

जब वृंदावन की धरा पर कदम रखा तो दंडवत हो गए। ब्रज रज को माथे से लगाया और शरीर पर समेटा। यह देख पदयात्रियों की पनीली आंखों में भावनाएं उतर आईं।
वृंदावन की धरा पर दंडवत हो लगाया बांकेबिहारी का जयकारा


यह धीरेंद्र शास्त्री के लिए क्या किसी के लिए भी भावुक पल हो सकता है कि एक आवाज पर हजारों हजार लोग पीछे चल पड़े। कोई पेड़ पर चढ़कर उन्हें देखने को व्याकुल है, तो कोई ऊंची अटारी पर चढ़कर। रास्ते में जिस ओर से आवाज आई, पदयात्रा करते धीरेंद्र शास्त्री की निगाहें उसी ओर मुड़ गईं। सबका अभिवादन करने की कोशिश की। रविवार को जैंत से वह पदयात्रा लेकर वृंदावन के लिए बढ़े, तो छटीकरा से कुछ पहले ऊंचे मकानों की छतों पर चढ़े लोग उन्हें देख नारे लगाने लगे।

मंच पर बार-बार भावुक होते रहे बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर


  

धीरेंद्र शास्त्री ने उनकी ओर देखा और फिर हाथ हिलाया। फिर खुद ब्रजवासियों के हाथ जोड़ने लगे। आंखों से आंसू बहे। फिर कदम आगे बढ़े। थोड़ा चले तो छटीकरा से वृंदावन मार्ग पर मुड़े। यहां मेरो वृंदावन का द्वार था। बांके की नगरी की रज ही ऐसी है कि इसे हर कोई छूने को उतावला रहता है। फिर धीरेंद्र शास्त्री तो उसी रज में आए थे। उन्होंने कथावाचक आचार्य पुंडरीक गोस्वामी और अन्य के साथ दंडवत हो गए। ब्रज की रज को अपने माथे से लगाया और फिर कुछ रज अपने शरीर पर मली। फिर ठाकुर बांकेबिहारी का जयकारा लगा आगे बढ़ चले। साथ में पदयात्री थे, जब संत की आंखों मेें पानी देखा तो वह भी रोने लगे।



ब्रजवासियों का आभार जताते बहे आंसू


  

समापन कार्यक्रम में मंच पर जब वह ब्रजवासियों का सहयोग के लिए आभार जता रहे थे, तो अपने आंसू नहीं रोक सके। गला रुंध गया। फिर फफके और ब्रजवासियों को मंच पर ही दंडवत होकर प्रणाम किया। उनके अनुयायी मध्य प्रदेश के छतरपुर निवासी वीरेंद्र सिंह उनके संबोधन को सुन रहे थे और दोनों हाथ जोड़े थे। फिर जब संत को रोता देखा तो खुद रो पड़े। बोले, बहुत दयालु हैं।
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