महादेव ने क्यों दी थी शनिदेव को सजा? (Image Source: AI-Generated)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म ग्रंथों में भगवान शिव और शनिदेव के बीच गुरु और शिष्य का संबंध माना गया है। लेकिन, एक समय ऐसा भी आया जब महादेव को अपने ही शिष्य को कड़ी सजा देनी पड़ी। स्कंद पुराण में वर्णित एक बेहद रोचक कथा के अनुसार, जब शनिदेव को अपनी अजेय \“वक्र दृष्टि\“ पर अहंकार हो गया और उन्होंने स्वयं महादेव पर अपनी दृष्टि डालने की घोषणा कर दी। तब, ब्रह्मांड के रचयिता ने उन्हें कर्म और मर्यादा का पाठ पढ़ाने के लिए एक अद्भुत लीला रची। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
इस पौराणिक घटना के दौरान, शनिदेव के तर्क और उनकी निर्लज्जता से क्रोधित होकर भगवान शिव ने उन्हें उनके पैरों से पकड़कर एक पीपल के पेड़ से उल्टा लटका दिया था। शनिदेव पूरे 19 वर्षों तक इसी कठिन अवस्था में लटके रहे और महादेव की तपस्या करते रहे। यही वह समय था जिसने शनिदेव को \“अहंकारी\“ से \“न्यायप्रिय\“ बनाया। संसार को यह संदेश दिया कि समय और न्याय की सत्ता से कोई भी ऊपर नहीं है, चाहे वह स्वयं ईश्वर ही क्यों न हों।
स्कंद पुराण के काशी खंड के अनुसार, जानते हैं क्यों भगवान शिव ने शनिदेव को दी यह कठोर सजा?
1. शनिदेव की कठोर दृष्टि का अहंकार कथा के अनुसार, शनिदेव को अपनी शक्तियों और अपनी \“वक्र दृष्टि\“ पर थोड़ा अहंकार हो गया था। उन्हें लगता था कि पूरे जगत में ऐसा कोई नहीं है जो उनकी दृष्टि के प्रभाव से बच सके। एक बार शनिदेव कैलाश पहुंचे और महादेव से बोले, “हे प्रभु! मैं कल आप पर अपनी दृष्टि डालने वाला हूं, मेरी साढ़े साती से देवता, दानव और मनुष्य कोई नहीं बच सकता, यहां तक कि आप भी नहीं।“
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2. महादेव की लीला और छिपने का प्रयास महादेव ने शनिदेव के अहंकार को शांत करने और संसार को यह बताने के लिए एक लीला रची कि समय और न्याय से ऊपर कोई नहीं है। अगले दिन जब शनिदेव की दृष्टि पड़ने वाली थी, तब महादेव मृत्युलोक (पृथ्वी) पर आए और एक पीपल के पेड़ के पीछे छिप गए। कुछ कथाओं के अनुसार, उन्होंने स्वयं को एक हाथी के रूप में बदल लिया था ताकि शनि की दृष्टि उन पर न पड़े।
3. शनिदेव की चतुराई और महादेव का क्रोध अगले दिन जब शनिदेव वापस आए, तो महादेव ने मुस्कुराते हुए कहा, “देखा शनि, मैं तुम्हारी दृष्टि से बच गया और मुझे कुछ नहीं हुआ।“ तब शनिदेव ने बड़ी विनम्रता और चतुराई से कहा, “प्रभु! आप मेरी दृष्टि से नहीं बचे। मेरी दृष्टि का ही प्रभाव था कि ब्रह्मांड के स्वामी को एक पीपल के पेड़ के पीछे छिपना पड़ा या एक पशु का रूप धारण करना पड़ा। यही तो मेरी साढ़े साती का फल था।“
4. 19 वर्षों की सजा महादेव शनिदेव के इस तर्क और उनके द्वारा दी गई मानसिक पीड़ा (अपमान महसूस होना) से क्रोधित हो गए। उन्होंने शनिदेव को उनके अहंकार और धृष्टता के लिए दंड देने का निश्चय किया। महादेव ने शनिदेव को उनके पैर पकड़कर पीपल के पेड़ से उल्टा लटका दिया। शनिदेव इसी अवस्था में 19 वर्षों तक लटके रहे।
5. शनिदेव की तपस्या और वरदान उल्टा लटके हुए ही शनिदेव ने भगवान शिव की कठिन तपस्या की और अपनी गलती का प्रायश्चित किया। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें मुक्त किया और उन्हें \“न्याय का देवता\“ घोषित किया। महादेव ने यह भी वरदान दिया कि जो व्यक्ति पीपल के पेड़ की पूजा करेगा और शनिवार को वहां दीया जलाएगा, उस पर शनि का अशुभ प्रभाव कम होगा।
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