नीतीश सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री, उन्हीं के नेतृत्व में बनेगी अगली सरकार: केशव प्रसाद मौर्य

LHC0088 2025-10-18 23:38:44 views 1247
  

केशव प्रसाद मौर्य। (फाइल)



भारतीय जनता पार्टी और उससे पूर्व जनसंघ की सक्रियता बिहार विधानसभा के हरेक चुनाव में रही है। 1980 से पहले 1977 और 1962-67 के दौर में जनसंघ की सत्ता में आंशिक भागीदारी हुई थी, लेकिन उसके बाद वर्षों तक राजनीति की यह धारा राज्य की सत्ता से दूर रही। 1995 में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में आने के बाद से लगातार भाजपा का विस्तार हुआ। वह 2000 में सात दिनों के लिए और 2005 से 2025 के बीच करीब तीन साल छोड़कर लगातार सत्ता में भागीदार रही। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा बिहार विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन समझौते का पालन करते हुए उसने मुख्यमंत्री पद का दावा नहीं पेश किया। संख्या बल के हिसाब से तीसरे नंबर की पार्टी जदयू के नेता नीतीश कुमार को भाजपा ने मुख्यमंत्री बना दिया। हालांकि नीतीश कुमार इसके लिए राजी नहीं थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे एनडीए की सरकार का फिर से नेतृत्व करने का आग्रह किया। इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रयास है कि उसकी उपलब्धि सर्वश्रेष्ठ हो। इसके लिए वह पहले की तुलना में अधिक श्रम भी कर रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के अलावा देश के सभी प्रदेशों के अच्छे प्रचारक चुनाव मैदान में उतार दिए गए हैं। उन्हीं में से एक हैं उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य। वे यहां लगातार कैंप कर रहे हैं। वे बता रहे हैं कि 14 नवंबर को विधानसभा चुनाव का परिणाम आएगा तो एनडीए अब तक की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धियों के साथ सरकार बनाएगा। हां, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे।

बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा की प्रचार शैली, राज्य के विकास की अगली कार्ययोजना सहित कई मुद्दों पर उनसे बिहार ब्यूरो प्रमुख अरुण अशेष की लंबी बातचीत हुई। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश:
सबसे अधिक भ्रम इस विषय पर है कि क्या नीतीश कुमार ही अगली बार मुख्यमंत्री होंगे?

यह भ्रम मीडिया की ओर से फैलाया गया है। भाजपा और एनडीए के दूसरे घटक दलों के बीच इस मुद्दे पर कोई भ्रम नहीं है। चुनाव के बाद अगले कार्यकाल के लिए नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री होंगे। इसमें संदेह की कोई संभावना नहीं है। विपक्ष इसे अकारण उछाल रहा है।
लेकिन, गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि चुनाव के बाद विधायक दल की बैठक में नए नेता का चयन किया जाएगा। उन्होंने यह नहीं कहा कि नीतीश ही मुख्यमंत्री होंगे?

गृह मंत्री ने यह तो नहीं कहा कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री नहीं होंगे। उन्होंने लोकतंत्र में निर्वाचित प्रतिनिधियों की ओर से नेता चयन के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया का उल्लेख किया है। नेता चयन की यही प्रक्रिया है। सभी विधायक एक साथ बैठते हैं। नेता का चयन करते हैं। इस प्रक्रिया का पालन हरेक दल में किया जाता है। यह एक तरह की अनिवार्य औपचारिकता है। यह लोकतंत्र की सुंदरता भी है। नीतीश के नेतृत्व में चुनाव हो रहा है, इसलिए नेता भी वही होंगे।
भाजपा क्यों नहीं अपना मुख्यमंत्री चाहती है?

भाजपा के साथ नीतीश कुमार का लंबा और विश्वसनीय गठबंधन रहा है। उन्होंने अपनी कार्यशैली से प्रमाणित किया कि वे विकास और सुशासन के मामले में बिहार के अब तक के सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री हैं। सामाजिक परिवर्तन के लिहाज से लोकनायक कर्पूरी ठाकुर का कार्यकाल सर्वश्रेष्ठ रहा है। नीतीश कुमार ने सामाजिक परिवर्तन की कर्पूरी ठाकुर की ओर से शुरू की गई प्रक्रिया को आगे बढ़ाया। उसमें विकास को जोड़ा। सुशासन को जोड़ा। उनके शासन में राज्य के सभी वर्गों का विकास हुआ।

राज्य के लिए विकास में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजय का भी बड़ा योगदान है। प्रधानमंत्री साफ कहते हैं कि 2047 तक विकसित भारत बने, इसके लिए सभी राज्यों का विकसित होना जरूरी है। इसीलिए बिहार के विकास पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। सचमुच इस राज्य में डबल इंजन की सरकार का काम नजर आ रहा है। हम उम्मीद करते हैं कि 2025-30 के अगले कार्यकाल में राज्य और विकसित होगा। विकसित भारत के लक्ष्य को पूरा करेगा। विकसित भारत का लक्ष्य हरेक व्यक्ति की संपन्नता से पूरा होता है। बिहार इस दिशा में तेजी से बढ़ रहा है।
क्या आप बिहार के विकास से पूरी तरह संतुष्ट हैं?

संतुष्ट होने का प्रश्न अभी कहां है? संतोष का विषय यह है कि राज्य पटरी पर आ गया है। विकास का माहौल बन गया है। राज्य के हर नागरिक के मन में यह विश्वास जन्म ले चुका है कि इस राज्य में भी विकास संभव है। इसके लिए जरूरी आधारभूत संरचनाएं तैयार हो चुकी हैं। बिजली की अबाधित आपूर्ति हो रही है। राजधानी से राज्य के सुदूर गांव तक कम से कम समय में पहुंचा जा सकता है। राज्य में कुशल श्रमिक से लेकर योग्य तकनीकी विशेषज्ञ तक उपलब्ध हैं। उद्योगों के लिए सरकार भूखंड और जरूरी सुविधाएं उपलब्ध करा रही हैं।

औद्योगिक क्षेत्र में एक नई प्रवृत्ति विकसित हो रही है कि उद्यमी उत्तर के राज्यों में निवेश कर रहे हैं। इससे बिहार को भी लाभ होगा। बिहार में पिछले साल 14 लाख 80 हजार करोड़ रुपये के निवेश का प्रस्ताव आया था। उम्मीद की जा सकती है कि एनडीए सरकार के अगले कार्यकाल में ये प्रस्ताव जमीन पर उतर जाएंगे। निश्चित रूप से यह बदलाव एनडीए शासन में ही आया है। लालू प्रसाद के शासन काल में तो यह मान लिया गया था कि यहां कुछ हो ही नहीं सकता है।

दूसरे राज्यों से निवेश की बात तो बहुत दूर, राज्य के उद्यमी भी पलायन कर दूसरे राज्यों में चले गए थे। वे लौट आए हैं। लौट रहे हैं। यह बड़ी उपलब्धि है। हम लंबे समय से बिहार आ रहे हैं। हर बार कुछ परिवर्तन नजर आता है। यह एक कृषि प्रधान राज्य रहा है। उद्योग के अलावा कृषि पर ध्यान देने की जरूरत है। राज्य सरकार ने कृषि के विकास के लिए कई कारगर प्रयास किए हैं। कृषि रोड मैप के माध्यम से काफी काम हुआ है। इसका प्रभाव कृषि उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि के रूप में आता है। इस मोर्चे पर भी केंद्र और राज्य सरकार मिलकर काम कर रही है। कृषि के विकास के लिए समर्पित केंद्र सरकार की योजनाओं का भरपूर लाभ राज्य के किसानों को मिल रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं इससे जुड़े छोटे-छोटे अवयवों पर ध्यान दे रहे हैं। मखाना बोर्ड का गठन इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे पहले मखाना की खेती अलाभकारी मानी जाती थी। किसान इससे विमुख हो रहे थे। अब आधुनिक प्रणाली से मखाना की खेती हो रही है। इसके प्रसंस्करण की प्रक्रिया बदल रही है। आने वाले दिनों में मखाना की खेती से जुड़े किसानों की नगदी आमदनी बढ़ेगी। श्रमिकों का नियोजन बढ़ेगा।

राज्य के विकास में बाढ़ की विभीषिका की बड़ी घातक भूमिका रही है। केंद्र सरकार बाढ़ नियंत्रण के लिए ठोस प्रयास कर रही है। नदियों की उड़ाही, नदी जोड़ने का प्रबंध, तटबंधों की मरम्मत जैसे उपाय किए जा रहे हैं। राज्य के किसान बाढ़ के साथ-साथ सुखाड़ की समस्या से भी जूझते रहे हैं। राज्य सरकार किसानों को रियायती दर पर महज 50 पैसे प्रति यूनिट के दर से बिजली उपलब्ध करा रही है। इन सब प्रयासों का सकारात्मक प्रभाव खेती-किसानी पर पड़ रहा है। यह विकास में अहम भूमिका निभाएगा।
आपके अनुसार डबल इंजन की सरकार ने बहुत काम किया। फिर हर चुनाव में लालू प्रसाद का नाम क्यों लेना पड़ता है?

लालू प्रसाद बिहार की बर्बादी के लिए जिम्मेदार हैं। उनके शासनकाल का जंगलराज हमेशा याद रखा जाएगा। वह दौर इस राज्य का इतिहास है। इतिहास की गलतियों की याद दिलाना जरूरी होता है, ताकि लोग उसकी पुनरावृत्ति से बचें। कुछ लोग कहते हैं कि राज्य का अपेक्षा के अनुरूप विकास नहीं हुआ। यह कहने से पहले देखना होगा कि नीतीश कुमार को विरासत में कैसे राज्य मिला था। सड़क पर गड्ढा एक प्रतीक है। लालू-राबड़ी के शासनकाल को याद करें तो यह गड्ढा हरेक क्षेत्र में नजर आएगा।

सामाजिक सद्भाव में भी आप इसे देख सकते हैं, जब जाति के आधार पर यहां संघर्ष होता था। संहार होते थे। शिक्षा की हालत इतनी खराब थी कि विश्वविद्यालयों के सत्र पांच-पांच साल देर से चलते थे। शिक्षकों को समय पर वेतन नहीं मिलता था। उस दौर के एक शिक्षक बता रहे थे कि अनियमित वेतन के कारण उन्हें दुकानदार उधार नहीं देते थे। किराये पर मकान नहीं मिलता था। बिजली आ गई तो लोग उत्सव मनाते थे। संपन्न लोग घर नहीं बना पाते थे। बड़ी गाड़ियों का कारोबार समाप्त हो गया था। अपहरण से बचने के लिए संपन्न लोग अपने बच्चों को दूसरे राज्यों में पढ़ने के लिए भेजते थे। शाम ढलने के बाद अपराधियों के डर से लोग घर से नहीं निकल पाते थे। उद्योग धंधे पूरी तरह ठप हो गए थे। बिहार के लोग जब दूसरे राज्यों में जाते थे तो उन्हें लालू प्रसाद के कारण अपमान झेलना पड़ता था। यह स्थिति बदल गई है।

अब पूरे देश में बिहार के लोगों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। देश का कोई भी राज्य हो, बिहार के लोग सम्मान की जिंदगी जी रहे हैं। नई पीढ़ी के लोगों को यह सब जानना चाहिए कि राज्य की पूरी व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए एनडीए सरकार ने कितना प्रयास किया। एनडीए इसलिए नहीं लालू राज की चर्चा करता है कि लोग डरकर वोट कर रहे हैं। चर्चा इसलिए कर रहे हैं कि राज्य की जनता मतदान से पहले जब एनडीए की सरकार का मूल्यांकन करे तो उसमें इस पक्ष को भी जोड़े कि हमारी सरकार ने किस तरह हर क्षेत्र के गड्ढे को भरकर समतल किया है। इसी समतल भूमि पर राज्य का विकास हो रहा है। आगे भी इसे जारी रखा जाएगा। रोजी-रोटी के लिए प्रवासन इस राज्य की पुरानी व्यथा है।

राज्य सरकार ने बीते पांच वर्षों में 10 लाख लोगों को सरकारी नौकरी दी है। 40 लाख लोगों को रोजगार के नए अवसर उपलब्ध कराए गए हैं। एनडीए ने अगले पांच वर्षों में एक करोड़ लोगों को रोजगार और नौकरी देने का वादा किया है। कल्पना कीजिए, इस लक्ष्य को हासिल करने के बाद बिहार प्रवासन की पीड़ा से कितना मुक्त हो जाएगा। हमारी सरकार की यह विशेषता रही है- हम केवल आश्वासन नहीं देते हैं। आश्वासन देने से पहले उसे पूरा करने का प्रबंध करते हैं।
अपने नीतीश कुमार की बहुत प्रशंसा की है। इस सरकार की कोई ऐसी उपलब्धि बताइए, जिसे आप माडल के रूप में अपने राज्य उत्तर प्रदेश में लागू करना चाहेंगे?

निश्चित रूप से हम महिला सशक्तिकरण के बिहार माडल को उत्तर प्रदेश में लागू करना चाहेंगे। उत्तर प्रदेश में भी महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में बहुत काम हुआ है, लेकिन हम इसलिए बिहार से अभी पीछे चल रहे, क्योंकि यहां इसकी शुरुआत 2006 में ही हो गई थी। उत्तर प्रदेश में भाजपा को यह अवसर 2017 में मिला। उससे पहले की मायावती, मुलायम सिंह यादव और अखिलेश सिंह यादव की सरकारों ने इस मोर्चे पर कोई काम नहीं किया। अपराध और भ्रष्टाचार की बड़ी शिकार महिलाएं ही होती हैं।

बिहार में देखिए कि जीविका समूहों ने किस तरह महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार किया है। वह आर्थिक रूप से जैसे ही संपन्न हुईं, समाज में उनका सम्मान बढ़ा। आत्मविश्वास बढ़ा। सरकार इन महिलाओं को स्वरोजगार के लिए आर्थिक सहायता दे रही है। अभी 10 हजार रुपये दिए गए हैं। यह राशि दो लाख रुपये तक जाएगी।

सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों के अलावा त्रिस्तरीय पंचायतीराज संस्थाओं में भी महिलाओं को आरक्षण दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पुलिस बल में महिलाओं की बहुलता के लिए राज्य सरकार की प्रशंसा की है। सचमुच, बिहार का यह मॉडल हमारे लिए ही नहीं, देश के दूसरे राज्यों के लिए भी अनुकरणीय है।

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